नौ दिन में मिलेगी दिमागी टीबी से राहत, PGI ने बनाई इलाज की नई गाइडलाइन Lucknow News

लखनऊ के संजय गांधी पीजीआइ ने देश में पहली बार स्थापित की भारतीय गाइडलाइन। ब्रेन टीबी में लंबे समय तक नस से स्टेरॉयड देने की बाध्यता खत्म सस्ता होगा इलाज।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 19 Sep 2019 06:52 PM (IST) Updated:Sat, 21 Sep 2019 10:50 PM (IST)
नौ दिन में मिलेगी दिमागी टीबी से राहत, PGI ने बनाई इलाज की नई गाइडलाइन Lucknow News
नौ दिन में मिलेगी दिमागी टीबी से राहत, PGI ने बनाई इलाज की नई गाइडलाइन Lucknow News

लखनऊ [कुमार संजय]। जानलेवा दिमागी टीबी के आसान इलाज का रास्ता खोज लिया गया है। इसके तहत संजय गांधी पीजीआइ के तंत्रिका रोग विशेषज्ञों ने स्टेरॉयड थेरेपी की इंडियन गाइडलाइन तय कर दी है। अब मरीजों को अस्पताल में 28 दिन तक भर्ती कर इंट्रावेनस स्टेरॉयड देने की बाध्यता नहीं रहेगी। लक्षण की गंभीरता कम होने के साथ ओरल स्टेरॉयड पर उन्हें शिफ्ट कर महज नौ दिन में छुट्टी दी जा सकेगी। इस कारण मरीजों का खर्च काफी हद तक घट जाएगा। साथ अस्पताल में होने वाले अन्य संक्रमण से भी मरीज बच जाएंगे। स्टेरॉयड को लेकर यह भारत का पहला शोध है।

अब तक दिमागी टीबी (ट्यूबर कुलर मेनिनजाइटिस) के मरीजों को नस के जरिये (इंट्रावेनस) स्टेरॉयड देने के लिए यूरोपियन गाइडलाइन अपनाई जाती थी। दिमागी टीबी के मरीजों को लक्षण की गंभीरता के आधार पर एक से 28 दिन तक नस के जरिए स्टेरॉयड दवा दी जाती है। इसके लिए लंबे समय तक मरीजों को भर्ती रखना पड़ता है। इससे सेकेंड्री इंफेक्शन की आशंका व एंटीबायोटिक सहित तमाम खर्च बढ़ जाते हैं।

पीजीआइ में ऐसे हुआ शोध 

भारत में दिमागी टीबी के रोगी लगातार बढ़ रह रहे हैं। अस्पतालों में उनके ठहराने से लेकर महंगा इलाज भी समस्या बना हुआ है। इस स्थिति को देख पीजीआइ में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विमल पालीवाल ने इंट्रावेनस की जगह ओरल (खाने वाली) स्टेरॉयड देने के विकल्प पर टीबीएम ग्रस्त 98 मरीजों पर शोध किया। उन्होंने पाया कि ऐसे मरीजों को नौ दिन इंट्रावेनस स्टेरॉयड देने के बाद ओरल स्टेरॉयड पर शिफ्ट कर अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। प्रो. पालीवाल के मुताबिक, टीबीएम ग्रस्त 32 मरीजों के शरीर ने ओरल स्टेरॉयड दो से चार दिन में ही स्वीकार कर लिया। जबकि 66 मरीजों को ओरल और इंट्रावेनस दोनों तरीके से स्टेरॉयड देना पड़ा। इस प्रक्रिया को मेडिकल ओवरलैप ग्रप भी कहते हैं। इनमें भी दोनों तरीके से देकर कम दिनों में केवल ओरल दवाओं पर शिफ्ट कर मरीज को जल्दी छुट्टी दी जा सकती है। शोध को अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाईजीन ने स्वीकार किया है। साथ ही कहा है कि यह गरीब मरीजों का खर्च कम करने में काफी अच्छा शोध है। 

क्या है दिमागी टीबी?

दिमागी टीबी को चिकित्सकीय भाषा में ट्यूबरकुलर मैनेंजाइटिस (टीबीएम) कहते हैं। टीबी का बैक्टीरिया दिमाग के खास हिस्से में जगह बना लेता है। धीरे-धीरे वहां पर चकत्ता बन जाता है। इससे दिमाग की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में रुकावट तक पैदा हो सकती है।

ऐसे घटेगा खर्च 

अभी तक दिमागी टीबी के मरीजों का अस्पताल में औसतन खर्च दो हजार रुपये रोजाना आता है। 28 दिन रुकने पर यह करीब 56 हजार बैठता है। सिर्फ नौ दिन में छुट्टी होने पर खर्च घटकर सिर्फ 18 हजार रुपये रह जाएगा।

chat bot
आपका साथी