World Environment Day 2021: सूबे में अत्याधिक दोहन से खत्म हो रहा नदी-भूजल का रिश्ता
World Environment Day 2021 भूजल भंडारों से नदियों में पहुंचने वाले प्राकृतिक प्रवाह में 60 फीसद तक की कमी। भूजल स्तर नीचे जाने से प्राकृतिक प्रवाह बेहद कम हो गया। नतीजतन छोटी नदियां तालाब -पोखर भूजल से पोषित न होने के कारण सूखते गए।
लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। World Environment Day 2021: प्रदेश के गंगा बेसिन क्षेत्र में बड़ी संख्या में मौजूद तालाब, पोखरों, झील और छोटी व सहायक नदियों का समूचा पारिस्थितिकीय तंत्र (ईको सिस्टम) संकट में है। यहां बिखरे इन सतही जल स्रोतों व भूजल के 'कनेक्टेड ईको सिस्टम' का पारस्परिक रिश्ता बेहिसाब दोहन, चौतरफा अतिक्रमण व संरक्षण कार्यों की अनदेखी के चलते धीरे-धीरे टूटता जा रहा है।
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. वेंकटेश दत्ता बताते हैं कि 1970 के दशक से शुरू सिंचाई नलकूप क्रांति ने प्रदेश में भूजल दोहन को अप्रत्याशित ढंग से बढ़ा दिया, जिसके चलते भूजल स्तर प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में बहुत तेजी से नीचे चला गया। इसका नतीजा यह हुआ कि गंगा बेसिन कि ज्यादातर छोटी नदियां, वेटलैंड जो मानसूनी वर्षा के साथ-साथ मुख्य रूप से भूजल भंडारों से होने वाले प्राकृतिक डिस्चार्ज (बेस फ्लो) पर ही निर्भर हैं, का भूजल स्तर नीचे जाने से प्राकृतिक प्रवाह बेहद कम हो गया। नतीजतन छोटी नदियां, तालाब -पोखर भूजल से पोषित न होने के कारण सूखते गए।
गोमती नदी सहित गोमती बेसिन की करीब 26 में से 20 सहायक नदियां इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। डा. दत्ता बताते हैं कि प्रदेश में भूजल स्रोतों के अंधाधुंध दोहन के कारण मध्य और निचले गंगा बेसिन में भूजल से नदियों में पहुंचने वाला बेस फ्लो 60 फीसद तक कम हो गया है। उन्होंने बताया कि बारहमासी नदियों का प्रवाह भी भूजल पर बहुत अधिक निर्भर करता है। कई छोटी-बड़ी सहायक नदियों का पानी गंगा नदी में मिलकर इसके प्रभाव को बढ़ाता है। एक अध्ययन के अनुसार, गोमती नदी का ही जल प्रवाह भूजल से पोषण रुक जाने के कारण करीब 45-50 फीसद घट गया है। कई स्थानों पर तो गोमती नदी पूरी तरह से अपना नैसर्गिक प्रवाह खो चुकी है।
उधर, गोमती बेसिन में ही करीब छह हजार तालाब, वेटलैंड ऐसे हैं जो संरक्षण की अनदेखी के कारण सूख गए हैं। डा. दत्ता कहते हैं कि तमाम छोटी-छोटी नदियां, तालाब-पोखर हमारे राजस्व रिकार्ड से गायब हो चुके हैं जो प्रदेश के ईको सिस्टम का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा थे। दरअसल, छोटी नदियां और उनके साथ जुड़ी हुई झीलें, वेटलैंड और तालाबों की श्रंखला नदियों को एक कनेक्टेड ईको सिस्टम के जरिए जीवित रखती है, लेकिन अनियोजित विकास से प्रदेश का समूचा जलतंत्र बेहद प्रभावित हुआ है। कई छोटी और बड़ी नदियां अब सीवेज ले जाने वाली नहर बनकर रह गई हैं।
गंगा बेसिन का लगभग 3.6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सिंचित है जो भारत के कुल ङ्क्षसचित क्षेत्र का लगभग 57 प्रतिशत है। शायद यही वजह है कि भूजल स्रोतों के अंधाधुंध दोहन होने से तमाम छोटी नदियां या तो सूख चुकी हैं या फिर सूखने की कगार पर आ गई हैं। यही नहीं, गंगा बेसिन के कुल सतही व भूजल भंडारों में 64 फीसद हिस्सेदारी भूजल की है।