Reality Check of Dainik Jagran: रिसेप्शनिस्ट ने पहना एप्रन और बन गई सिस्टर, डाक्टर मौजूद नहीं; चला रहे ट्रामा सेंटर

दैनिक जागरण की टीम रायबरेली रोड पर पहुंची तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। तकरीबन 11 किलोमीटर के दायरे में दर्जनों अस्पताल ऐसे मिले जो ट्रामा सेंटर के नाम पर लोगों को लूट रहे हैं। ट्रामा का ड्रामा ऐसा कि छोटे-छोटे कमरों को वार्ड घोषित कर दिया गया है।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Tue, 20 Jul 2021 11:34 AM (IST) Updated:Tue, 20 Jul 2021 01:43 PM (IST)
Reality Check of Dainik Jagran: रिसेप्शनिस्ट ने पहना एप्रन और बन गई सिस्टर, डाक्टर मौजूद नहीं; चला रहे ट्रामा सेंटर
रायबरेली रोड पर बेसमेंट में चल रहे अस्पताल, तीमारदारों से लूट खसोट।

लखनऊ ज्ञान बिहारी मिश्र। आपने रंगमंच पर तो कपड़े के साथ किरदार बदलते देखे होंगे, लेकिन ट्रामा के नाम पर चल रहे ड्रामे में भी यह आम बात है। यहां रिसेप्शन पर बैठी लड़की चंद मिनट में एप्रन पहनकर नर्स बन जाती है। वार्ड ब्वाय गले में आला लटकाकर डाक्टर बन जाता है तो पोछा लगा रही आया इंजेक्शन लगा देती है। ऐसे कुछ अजब-गजब किरदार ट्रामा सेंटरों की पड़ताल की कड़ी में नजर आए। दैनिक जागरण की टीम रायबरेली रोड पर पहुंची तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। तकरीबन 11 किलोमीटर के दायरे में दर्जनों अस्पताल ऐसे मिले, जो ट्रामा सेंटर के नाम पर लोगों को लूट रहे हैं। ट्रामा का ड्रामा ऐसा कि छोटे-छोटे कमरों को वार्ड घोषित कर दिया गया है।

जागरण टीम आशी ट्रामा सेंटर पहुंची तो यहां मौजूद ओमेंद्र ने खुद को फिजीशियन बताया। कहा कि ट्रामा के मरीजों को वह खुद देखते हैं। आइसीयू, वेंटीलेटर समेत सारी सुविधाओं का दावा किया, लेकिन अस्पताल में ट्रामा का कोई डाक्टर मौजूद नहीं था। इसके बाद टीम सूर्या सिटी हॉस्पिटल पहुंची। यहां पर बेटी का इलाज कराने आए गोसाईगंज के गंगागंज निवासी रमेश ने बताया कि अभी तक डाक्टर नहीं आए हैं। इलाज के नाम पर मरीजों को भर्ती कर बिल बढ़ाया जा रहा है। अस्पताल के बाहर आइसीयू, वेंटीलेटर और डायलिसिस की व्यवस्था का बोर्ड भी लगा था। गली में खुले इस अस्पताल के बाहर एंबुलेंस भी नहीं दिखी। इसके बाद टीम ऑक्सफोर्ड हॉस्पिटल पहुंची। दुर्घटना में घायल मरीज को दिखाने की बात की गई तो रिसेप्शन पर बैठी युवती ने कहा कि अभी डाक्टर नहीं हैं। आप मरीज ले आइए जरूरत पड़ेगी तो डाक्टर को बुला लेंगे।

हेरिटेज अस्पताल में स्टाफ के नाम पर एक रिसेप्शनिस्ट दिखी। भीतर के कमरे में एक डाक्टर बैठे थे। दवाई के काउंटर पर एक युवक। अस्पताल में ट्रामा की कोई सुविधा नहीं थी। एक लड़का मरीजों का पर्चा बनाने के साथ दवाएं भी दे रहा था। पूछने पर उसने अपना नाम योगेन्द्र बताते हुए कहा कि दफ्तर में काम करता हूं। हैरानी हुई कि वह ऑफिस ब्वाय मरीजों को दवा भी बांट रहा था। उसे बताया गया कि मरीज का एक्सीडेंट हुआ है आइसीयू या वेंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती है तो उसने कहा कि यह सब यहां नहीं है, मगर कम गंभीर मरीज हो तो लाइए डाक्टर देख लेंगे। कहा कि अभी जो डाक्टर हैं, यही सब कुछ देखते हैं। इसके बाद दवा बांट रहे योगेन्द्र से कहा गया कि मुझे तो न्यूरो के डाक्टर को दिखाना है। तब उसने कहा कि मरीज लाइये... यहां रायबरेली एम्स के न्यूरो के डाक्टर प्रमोद कुमार आते हैं, मगर वह 500 से अधिक फीस लेते हैं वहीं, रिसेप्शनिस्ट नीता मरीज को दिखाने के बाद एप्रन पहनकर सिस्टर बन गई और मरीजों को देखने चल पड़ी।

डायलिसिस रूम में सूख रहे थे कपड़े: यहां डायलिसिस रूम में कपड़े सूख रहे थे। इसके बाद टीम विद्यावती अस्पताल पहुंची। यहां अस्पताल के बाहर 15 से 20 डाक्टरों के नाम लिखे हुए थे, मगर इमरजेंसी में जाने पर कोई भी डाक्टर नहीं था। डाक्टर के एप्रन में एक लड़की मिली उसने बताया कि मैं डाक्टर नहीं हूं। हमने कहा कि एक रिश्तेदार को ट्रक ने टक्कर मार दी है। इस पर उसने कहा- लेकर आइए, मरीज भर्ती हो जाएगा। आर्थो या न्यूरो के डाक्टर का नाम पूछने पर कहा कि वह सब मरीज भर्ती होने के बाद बुलाए जाते हैं। आपको बात करना हो तो आफिस में त्रिवेदी सर से मिला दूं। इतने में वहां आइसीयू में भर्ती मरीज तेलीबाग के चंद्रिका तिवारी के बेटे से हमारी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि पिताजी को ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी कि आइसीयू में रखना पड़े, मगर रोजाना हजारों रुपये का बिल बन रहा। आइसीयू का सिर्फ छह हजार बताते हैं। यहां सबसे बड़ी समस्या है कि चाय भी पीजिए तो अस्पताल की। बिस्किट खरीदिए तो अस्पताल के अंदर से। दवाएं तो बाहर से ला ही नहीं सकते। इसके बाद हेमलता के तीमारदार ने बताया कि यहां जमकर लूट होती है। मरीज आ गया तो उसको निचोड़ लेते हैं।

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