प्रो. निशीथ राय पर भ्रष्टाचार के आठ आरोप सही, मांगा गया जवाब

सीएम की अध्यक्षता में हुई डॉ. शकुंतला मिश्र यूनिवर्सिटी की सामान्य परिषद। जिन कॉलेजों को संबद्धता दी उनमें से 11 कॉलेजों की संबद्धता जांच के बाद हो चुकी है खत्म। विदेश यात्रा में विवि के तीन लाख कर दिए खर्च।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 17 Jan 2019 11:00 AM (IST) Updated:Thu, 17 Jan 2019 11:00 AM (IST)
प्रो. निशीथ राय पर भ्रष्टाचार के आठ आरोप सही, मांगा गया जवाब
प्रो. निशीथ राय पर भ्रष्टाचार के आठ आरोप सही, मांगा गया जवाब

लखनऊ, जेएनएन। डॉ. शकुंतला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कार्य विरत कुलपति प्रो. निशीथ राय पर भ्रष्टाचार के आठ आरोप सही पाए गए हैं। बुधवार को विश्वविद्यालय की सामान्य परिषद की बैठक सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई। इसमें सेवानिवृत्त जज शैलेन्द्र सक्सेना की जांच रिपोर्ट रखी गई। रिपोर्ट में एक साथ दो-दो पदों पर काम करने व जन्मतिथि को बदलने सहित अन्य आरोप सही पाए गए। प्रो. राय को 23 तक अपना जवाब देने को कहा गया है। 25 जनवरी को फिर से बैठक होगी। शकुंतला विवि के कुलपति प्रवीर कुमार ने कहा कि जांच रिपोर्ट में प्रो. निशीथ राय दोषी पाए गए हैं। जवाब मिलने के बाद आगे की कार्रवाई होगी।

ये आरोप लगे है

प्रो. निशीथ 28 जनवरी 2014 को शकुंतला यूनिवर्सिटी के कुलपति बने इस दौरान वह लखनऊ विवि में क्षेत्रीय नगर एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र के निदेशक भी थे। माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी हाईस्कूल की मार्कशीट में जन्मतिथि एक अक्टूबर 1960 है जबकि प्रो. राय ने जो मार्कशीट लगाई उसमें जन्मतिथि एक अक्टूबर 1963 है। डीन एकेडमिक के पद पर भर्ती के साथ शिक्षकों व कर्मचारियों की भर्ती में मनमाने तरीके से काम किया। उन्हें बीत वर्ष 23 फरवरी को कुलपति पद से कार्य विरत कर दिया गया था। 

प्रो. निशीथ ने कॉलेजों को संबद्धता और पीएचडी दाखिले में किया खेल

प्रो. निशीथ राय ने कुलपति पद पर रहते हुए डिग्री कॉलेजों को संबद्धता देने में नियमों को ताक पर रख दिया। किराए के भवन में बिना शिक्षकों के चल रहे कॉलेज को मान्यता दी। यही कारण है कि बीते अक्टूबर 2018 में इनके द्वारा पूर्व में जिन 14 डिग्री कॉलेजों को स्नातक व परास्नातक कोर्सेज चलाने की मान्यता दी गई थी उनमें से 11 कॉलेजों की संबद्धता खत्म कर दी गई। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने गलत ढंग से संबद्धता देने के मामले की शिकायत होने पर जांच करवाई तो वह खुद हैरान रह गया। इलाहाबाद, मिर्जापुर व अन्य शहरों में वह लोग कॉलेज चलाने की मान्यता पा गए, जिनके पास न तो बिल्डिंग थी, न ही लैब का कोई सामान और न ही शिक्षक।

दाखिलों में भी नियमों का नहीं किया पालन

पीएचडी दाखिले में भी नियमों का पालन नहीं किया। पीएचडी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से दाखिला लेने की बजाए अपने चहेतों के सीधे आवेदन लेकर दाखिला दे दिया। जर्मनी यात्र में विश्वविद्यालय के खाते से तीन लाख रुपये खर्च किए। यही नहीं गलत ढंग से भर्ती किए गए शिक्षकों को वेतन देने से जब तत्कालीन वित्त अधिकारी ने मना किया तो उन्हें गलत ढंग से कार्यमुक्त कर दिया। यही नहीं रजिस्ट्रार को भी बात न मानने पर गलत ढंग से कार्यमुक्त किया। फिलहाल उनकी मुसीबतें बढ़ गई हैं।

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