प्री-मैच्योर बेबी को चाहिए खास देखभाल, बरतें ये सावधानी Lucknow News

प्री-मैच्योर बच्चों को चाहिए खास देखभाल। बालरोग विशेषज्ञ से प्री मैच्योर बच्चों को लेकर खास बातचीत।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 18 Nov 2019 03:04 PM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 08:07 PM (IST)
प्री-मैच्योर बेबी को चाहिए खास देखभाल, बरतें ये सावधानी Lucknow News
प्री-मैच्योर बेबी को चाहिए खास देखभाल, बरतें ये सावधानी Lucknow News

लखनऊ [कुसुम भारती]। प्री-मैच्योर बेबी यानी समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु कई बार गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान व प्री-मैच्योर डिलीवरी के बाद महिलाओं को विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। वहीं, कुछ मामलों में मां व बच्चे की जान तक चली जाती है। लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 17 नवंबर को वल्र्ड प्री-मैच्योरिटी डे मनाया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान सावधानी बरतकर प्री-मैच्योर शिशुओं की जान बचाई जा सकती है।

प्री-मैच्योरिटी डिलीवरी में 40 फीसद नवजात खो देते हैं जान

क्वीन मेरी अस्पताल में प्रवक्ता व स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. स्मृति अग्रवाल कहती हैं, हर महीने अस्पताल में करीब 800 डिलीवरी होती हैं जिनमें करीब 200 प्री-टर्म डिलीवरी होती हैं। इनमें 40 फीसद नवजातों की प्री-मैच्योरिटी डिलीवरी के कारण मौत हो जाती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए।

प्री-टर्म बच्चे नहीं सह पाते टेंपरेचर

क्वीन मेरी में प्रो. रेखा सचान कहती हैं, प्री-टर्म डिलीवरी के बाद नवजात में टेंपरेचर सहने की क्षमता नहीं होती जिससे वे हाइपोथरमिया व हाइपोग्लेसिमिया में चले जाते हैं। बच्चों में सांस लेने की दिक्कत होती है। उनके फेफड़े ठीक से विकसित न हो पाने के कारण कई बार मौत तक हो जाती है। अत: जन्म के बाद माताएं रेगुलर बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाएं व सलाह लेते रहीं।

डफरिन में दो से तीन फीसद प्री-मैच्योर डिलीवरी

डफरिन अस्पताल की एसआइसी डॉ. नीरा जैन कहती हैं, 37 सप्ताह से पहले या पांच से आठ माह के बीच का समय प्री-टर्म या प्री-मैच्योर बेबी कहते हैं। यहां हर महीने लगभग 750 डिलीवरी होती है जिनमें दो से तीन फीसद प्री-मैच्योर डिलीवरी होती है। ऐसे बच्चों में हाइपोथरमिया, इंफेक्शन व फीडिंग की समस्या होती है।

स्टीरॉयड इंजेक्शन से विकसित होते हैं नवजात के फेफड़े

बाल विभाग, केजीएमयू में एसोसिएट प्रो. डॉ. शालिनी त्रिपाठी कहती हैं, 34 हफ्तों से पहले डिलीवरी होने पर मां को स्टीरॉयड इंजेक्शन लगाने से नवजात के फेफड़े विकसित होते हैं। मां नवजात को छाती से चिपकाकर कंगारू केयर दे, इससे नवजात को हाइपोथरमिया नहीं होता है। शिशु को मां जल्दी-जल्दी दूध पिलाए।

प्री-मैच्योर डिलीवरी के कारण जुड़वां बच्चों की डिलीवरी। पेशाब या वेजाइना में संक्रमण। मां में डायबिटीज या बीपी बढ़ा होना। झटके आना, ज्यादा ब्लीडिंग होना। बच्चे का पेट में विकसित न होना। पेट में पानी ज्यादा होना व आनुवांशिक। ऐसे करें बचाव संक्रमण होने पर विशेषज्ञ से चेकअप कराएं। ओवर स्ट्रेस न लें, सामान्य कामकाज करते रहें। पौष्टिक आहार लें। 

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