World Photography Day 2021: शब्दों के जरिए दिल की बात बयां करने का बेहतरीन विकल्प है फोटोग्राफी, देखिए लखनऊ के बेस्ट फोटो
इतिहासकारों के मुताबिक कई साल पहले 9 जनवरी 1839 को दुनिया की सबसे पहली फोटोग्राफी प्रक्रिया का आविष्कार हुआ था। इस प्रक्रिया का नाम था डॉगोरोटाइप जिसे जोसेफ नाइसफोर और लुइस डॉगेर नाम के 2 वैज्ञानिकों ने अविष्कार किया था।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए 19 अगस्त बेहद खास दिन है। इतिहासकारों के मुताबिक कई साल पहले 9 जनवरी, 1839 को दुनिया की सबसे पहली फोटोग्राफी प्रक्रिया का आविष्कार हुआ था। इसी दिन से विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाने लगा। यह दिवस उन लोगों के लिए खास महत्व रखता है, जो किसी भी खूबसूरत चीज या नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लेना पसंद करते हैं । विश्व फोटोग्राफी दिवस उन सभी फोटोग्राफर्स को समर्पित है जिन्होंने अपनी कला से दुनिया की खूबसूरती को कैमरा में कैद किया है। फोटोग्राफी और कुछ नहीं बल्कि लोगों के लिए अपनी हुनर दिखाने का एक मौका है, जो लोग अपनी बात शब्दों के जरिए बयां नहीं कर पाते उनके लिए फोटोग्राफी कई बार बहुत अच्छा विकल्प बन जाता है। इस खास दिन पर देखें लखनऊ दैनिक जागरण के छायाकारों की कुछ खास तस्वीरें:
04 जून, हरा कफन : दृश्य देखकर एकबारगी हैरानी होती है कि बीच मैदान में ये नाव क्या कर रही है। फिर ध्यान जाता है वनस्पति पर तो समझ आता है कि ये घास का मैदान नहीं बल्कि जलकुंभी से पटी नदी है। मेहंदी घाट पर गोमती का यह नजारा डराने वाला है। मानो नदी के अस्तित्त्व पर इस हरे कफन का कब्ज़ा हो चुका है।
05-जून, हरी गुफा...: दृश्य देखकर चकित न हों, यह हरी गुफा कहीं दूर की नहीं, सफेदाबाद-बाराबंकी रोड की है। अगर आप इस मार्ग से गए होंगे, तो सड़क के दोनों ओर छायी हरियाली ने आपको सुकून जरूर दिया होगा। हरे-भरे ये वृक्ष फल और छाया के साथ हमें प्राणवायु भी देते हैं तो इस पर्यावरण दिवस पर क्यों न हम सभी इन्हें सहजने के संकल्प के साथ नए पौधे भी रोपें। ताकि ऐसी प्राकृतिक गुफा में हमारी आने वाली पीढ़ी सुकून से सफर करे।
06-जून, कपडे़ साफ, आंचल मैला...: पर्यावरण दिवस पर हरियाली भरी तस्वीर देखना सुखद अनुभव होता है, लेकिन वास्तविकता से भी आंख नहीं मूंद सकते। कोरोना कफ्र्यू में दी जा रही ढील के दौरान होटलों व अन्य संस्थानों के खुलने की तैयारियों के मद्देनजर दैनिक उपयोग में आने वाले कपड़ों को कुड़ियाघाट के निकट लाकर धुले जा रहे हैं। इन कपड़ों को साफ करने के लिए गोमती की नीली चादर को बड़ी बेपरवाही से मैली की जा रही है। नदी संरक्षण को तार-तार करते इन पैबंदों को लहराते हुए आप भी देखिए।
10 जून, इनकी लापरवाही का जिम्मेदार कौन... : संक्रमण की विभीषिका में न जाने कितने लोग काल-कलवित हो गए। बहुत से अब भी इस महामारी से लड़ रहे हैं। संक्रमित होने वालों की संख्या में कमी आई तो सरकार ने कोरोना कफ्र्यू खत्म कर दिया, लेकिन कुछ लोग अज्ञानतावश इसे संक्रमण की समाप्ति मान बैठे हैं। खुद की छोडि़ए, अपने कलेजे के टुकड़े तक की चिंता नहीं है, जबकि तीसरी लहर में बच्चों के संक्रमित होने का अंदेशा जताया जा रहा है। अब इस लापरवाही का जिम्मेदार उन बच्चों को ठहराया जाए, जो नासमझी में बिना मास्क के घूम रहे हैं या उन अभिभावकों को जिन्होंने इन्हें ऐसे जाने दिया।
15 जून, बारिश में मस्ती...: बारिश का आनंद वही समझ सकता है, जिसने बचपन में इसके पानी में कागज की नाव चलाई हो। समय व उम्र के साथ हर्ष के तरीके बदल गये हैं, पर मन का मेघ बरसता जरूर है। राजधानी में दो दिनों से हो रही बारिश ने कुछ परेशानियां बढाई हैं, तो कुछ लोगों को उत्सव मनाने के अवसर भी दिए घंटाघर के सामने हुए जलभराव के बीच मस्ती में साइकिल चलाता युवक मौसम की इस बहार का लुफत उठा रहा है।
16- जून, पेड़ इमली का, फल नारियल के...: शहीद स्मारक के पास की यह तस्वीर किसी को एक पल के लिए हैरत में डाल सकती है। नजारा है ही ऐसा कि जिसे देख कोई भी चकरा जाए। यहां इमली के पेड़ पर नारियल के फल लटकते देख कोई भी अचरज में पड़ सकता है। दरअसल, यह कोई अजूबा नहीं बल्कि नारियल पानी बेचने वाले दुकानदार की ये तरकीब है, जिससे उसने नारियल पानी की दुकान पर अपने लिए आराम करने की जगह बनाई है।
17 जून, नाले में घर या घरों में नाला : आज भले ही लोग कुकरैल को नाले के रूप में जानते हों लेकिन कभी यह नदी थी। समय के साथ बढ़ते प्रदूषण और अवैध कब्जों ने इसे समेटकर रख दिया है। कुकरैल बाईपास से गुजरते समय किनारे नजर जाती है तो पता ही नहीं चलता कि नाले में घर बने हैं या नाला उफनाकर घरों में घुस गया है । नोट : ऊपर सभी फोटो छायाकार रंगनाथ तिवारी की हैं।
आषाढ़ में फाल्गुन... राजधानी में मानसून आ चुका है, लेकिन सक्रिय नहीं हो पाया। मंगलवार दोपहर ढाई बजे धूल भरी आंधी चली तो आषाढ़ का मौसम फाल्गुन सा नजर गया। फैजुल्लागंज बंधा रोड पर धूल का गळ्बार उठा तो राहगीरों की रफ्तार थम सी गई।
राष्ट्रीय पर्व का उल्लास : स्वतंत्रता दिवस न सिर्फ हमें उपनिवेशवाद से मुक्ति का एहसास कराता है, बल्कि देशप्रेम का भाव भी जगाता है। नेहा सिंह मिश्रा, प्रेरणा विश्वकर्मा, आरती बघेल, मानसी मिश्रा, प्रीतम दास जब दिलकुशा गार्डेन में पहुंचे तो उनके जेहन में तिरंगे के प्रति सम्मान और मन में राष्ट्रीयता का मान बढ़ाने का संकल्प भी था। राष्ट्रीय ध्वज के साथ वे जैसे-जैसे कदम आगे बढ़ा रहे थे, गर्व से उनके चेहरे की चमक भी बढ़ती जा रही थी। छायाकार : पंकज ओझा
विश्व फोटोग्राफी दिवस का इतिहास : इतिहासकारों के मुताबिक कई साल पहले 9 जनवरी, 1839 को दुनिया की सबसे पहली फोटोग्राफी प्रक्रिया का आविष्कार हुआ था। इस प्रक्रिया का नाम था डॉगोरोटाइप जिसे जोसेफ नाइसफोर और लुइस डॉगेर नाम के 2 वैज्ञानिकों ने अविष्कार किया था। डागोरोटाइप टेक्निक फोटोग्राफी की पहली प्रक्रिया थी, इस टेक्निक के आविष्कार का ऐलान फ्रांस सरकार ने 19 अगस्त, 1839 में किया। इसी की याद में विश्व फोटोग्राफी दिवस हर साल 19 अगस्त को मनाया जाता है। आधिकारिक तौर पर इस दिन की शुरुआत 2010 में हुई थी। आस्ट्रेलिया के एक फोटोग्राफर ने अपने साथी फोटोग्राफरों के साथ मिलकर इस दिन इकट्ठा होने और दुनियाभर में इसका प्रचार प्रसार करने का फैसला किया। अपने साथी फोटोग्राफरों के साथ मिलकर उनकी तस्वीरें आनलाइन गैलरी के जरिए लोगों के सामने पेश कीं। इस आनलाइन गैलरी को लोगों ने खूब पसंद किया इसके बाद से फोटोग्राफरों का डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए अपनी कला का प्रदर्शन करने का यह सिलसिला शुरू हो गया जो आज भी जारी है।