लोहिया संस्थान में स्टाफ की लापरवाही से मरीज की मौत, घंटों इंतजार के बावजूद नहीं पहुंचे डाक्टर

लोहिया संस्थान में रविवार को डॉक्टरों की सफेद वर्दी उस वक्त दागदार हो गई जब परिवारजन मरीज को देखने के लिए काफी देर से डॉक्टर बुलाने की अपील करते रहे लेकिन वार्ड में मौजूद स्टाफ ने मोबाइल में बैलेंस नहीं होने की बात कहकर डॉक्टर को नहीं बुलाया।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 12:13 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 07:28 AM (IST)
लोहिया संस्थान में स्टाफ की लापरवाही से मरीज की मौत, घंटों इंतजार के बावजूद नहीं पहुंचे डाक्टर
मृतक के बेटे ने लोहिया संस्थान के स्टाफ और डाक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। लोहिया संस्थान में रविवार को डॉक्टरों की सफेद वर्दी उस वक्त दागदार हो गई, जब परिवारजन मरीज को देखने के लिए काफी देर से डॉक्टर बुलाने की अपील करते रहे, लेकिन वार्ड में मौजूद स्टाफ ने मोबाइल में बैलेंस नहीं होने की बात कहकर डॉक्टर को नहीं बुलाया। किसी तरीके से मृतक के बेटे डॉक्टरों को ढूंढते हुए उनके केबिन तक पहुंचे। देर तक हाथ जोड़कर अपील करने के बाद डॉक्टर आए, लेकिन तब तक 45 मिनट की  देर हो चुकी थी। इस बीच मरीज की धड़कन और सांसे थम चुकी थी। तीन चार डाक्टरों की टीम ने मरीज को सीपीआर देने का प्रयास किया, लेकिन उनकी कोई भी कोशिश काम नहीं आई। इसके बाद परिवारजन ने अस्पताल से शव ले जाने से इंकार कर दिया। काफी देर तक समझाने बुझाने के बाद वह राजी हुए। मगर उन्होंने इस लापरवाही के खिलाफ शिकायत करने की बात कही।

सुल्तानपुर शहर निवासी व पूर्व बैंक मैनेजर राजेंद्र प्रताप सिंह को किडनी में दिक्कत थी जिसके चलते उन्हें 10 सितंबर को लोहिया संस्थान के पोस्ट कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया था। मृतक के बेटे दिवाकर सिंह रघुवंश का आरोप है कि काफी देर से डॉक्टर बुलाने के लिए गिड़गिड़ा रहा था। मगर स्टाफ ने एक नहीं सुनी। कहने लगे कि मेरे मोबाइल में बैलेंस नहीं है। जब पिता की सांसे उखड़ती महसूस हुई तो डॉक्टरों को ढूंढते हुए खुद उनके पास पहुंचा। जब तक डॉक्टर आए उस दौरान पिता की सांसें थम चुकी थी। अगर स्टाफ ने समय से डॉक्टर को बुला दिया होता तो मेरे पिता की जान नहीं जाती।

मरीजों की दवाइयां चुराते हैं स्टाफ: दिवाकर सिंह समेत वार्ड में भर्ती कई अन्य मरीज के तीमारदारों का आरोप है की स्टाफ मरीजों की दवाइयां भी चुरा ले जाते हैं। घरवाले यह सोचकर कुछ नहीं कहते कि मरीजों को कोई दिक्कत ना कर दें। दिवाकर सिंह का कहना है कि उन्होंने कई बार पिता के लिए लाई दवाइयों को स्टाफ को ले जाते हुए देखा। बावजूद कुछ भी नहीं कहा। ताकि इसकी वजह से उनके पिता को कोई दिक्कत ना होने पाए। कई दिनों से वह रात दिन अस्पताल में ही डटे रहते थे। उनका कहना है कि खुद रात में जाकर कई बार पिता को चेक किया करता था। मगर स्टाफ लापरवाह बना रहता था।

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