डा योगेश प्रवीन ने अवध और लखनऊ के गौरवशाली इतिहास से लोगों को कराया रूबरू, गलियों में बसी तहजीब की तलाश में खर्च कर दी उम्र
पद्मश्री डा योगेश प्रवीन ने मुगल काल से अंग्रेजी जमाने तक लखनऊ की गलियों में बसने वाली तहजीब की तलाश और उस पर शोध करके संकलित करने में योगेश प्रवीन ने अपनी उम्र का अच्छा खासा हिस्सा खर्च कर दिया।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। डा योगेश प्रवीन ने लखनऊ का नाम दुनिया में रोशन किया है। यूं तो आम लोगों की नजरों में लखनऊ एक नगर मात्र था जिसकी नवाबी काल की टूटी चिटकी धरोहरों और विरासतों तथा उनके इतिहास से कम ही लोग परिचित थे। योगेश प्रवीन ने लखनऊ की गलियों में बसने वाले अवध और लखनऊ के गौरवशाली इतिहास के जानकारों की तलाश की। टाट के पर्दों वाले घरों में रह रहे उन बुजुर्गों से मिले जिन्हें लखनऊ के अतीत की जानकारी थी और नवाबी जमाने से रूबरू हुए।
उन्होंने इन बुजुर्गों को गलियों के फरिश्ते नाम देते हुए लिखा-
लखनऊ है महज गुम्बजो-मीनार नहीं
यह सिर्फ शहर नहीं कूंचा औ बाजार नहीं
इसके दामन मे मुहब्बत के फूल खिलते है
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं
मुगल काल से अंग्रेजी जमाने तक लखनऊ की गलियों में बसने वाली तहजीब की तलाश और उस पर शोध करके संकलित करने में योगेश प्रवीन ने अपनी उम्र का अच्छा खासा हिस्सा खर्च कर दिया। यहां की हर गली कूंचे से जुड़ी हस्तियों के बारे में तहकीकात, लखनवी रवायतों, मेल मिलाप के तौर तरीके, बात चीत में शीरीं जुबान के इस्तेमाल और अंदाजे बयां के साथ पहले आप की नजाकत और नफ़ासत भरी तहजीब और तमद्दुन को अपनी कालजयी कलम से कागज के पन्नों पर समेटा। अपने संकलित अनुभवों से सजाकर इस अवध और लखनऊ की गंगा-जमनी तहजीब को किताबों की शक्ल देकर सुरक्षित कर दिया ताकि उनके बाद आने वाली पीढियां लखनऊ और अवध के इतिहास को जान सकें।
आने वाली पीढियों के लिए अवध और लखनऊ संबंधी जानकारी योगेश प्रवीन ने जिन पुस्तकों में संचित की उनकी संख्या दर्जनों में है। दास्ताने अवध,साहबे आलम, कंगन से कटारा,दास्ताँने लखनऊ, बहारें अवध, डूबता-अवध, ताजदारे अवध, गुलिस्ताने अवध, अवध के भित्ति चित्रांकन, अवध के धरा अलंकरण, लक्षमणपुर की आत्मकथा, आपका लखनऊ, मुहब्बत नामा, हिस्ट्री ऑफ लखनऊ कैंट, लखनऊ की शायरी जहान की जुबान पर,लखनऊ का इतिहास, लखनऊ के मुहल्ले और उनकी शान आदि । वह ताजिन्दगी लिखते रहे और अपना सारा,ज्ञान किताबों के रूप में लोगों से साझा करते रहे।
गद्य और पद्य दोनो पर उनकी समान पकड़ और समान गति थी। जहां,गद्य में कंचनमृग (कहानी संग्रह),पत्थर के स्वप्न, अंक विलास, अग्नि वीणा के तार लिखी और पीली कोठी जैसा उपन्यास लिखा वहीं पद्य में मयूरपंख, शबनम, बिरह-बांसुरी, सुमनहार जैसे काव्य संग्रह लिखे।श्री राम चरित मानस पर आधारित अपराजिता उनका रचित महाकाव्य है।
उनके मन का दर्द और भावुकता उनके काव्य में झलकती है। उन्हें शेरों शायरी का भी बड़ा शौक था। उन्होंने शायरों का इतिहास लिखा तो शायरी की परिभाषा भी बयां की। वह पेशे से शिक्षक थे और विद्यांत कालेज में लेक्चरर थे। लखनऊ से अपनी आशिकी और उसके लिए लिखने को उन्होने अपने शिक्षक के पेशे के आड़े नहीं आने दिया। पेशे के प्रति ईमानदारी के कारण वे राष्ट्रीय स्तर के शिक्षक के रूप में अपनी पहचान बनाने मे सफल हुए । उन्हें 1999 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार भी मिला। शिक्षक के दायित्व का निष्ठा से निर्वहन करते हुए वह लखनऊ पर लिखते रहे। उन्हें पढ़ने व सुनने वाले उन्हें लखनऊ का इनसाइक्लोपीडिया, अवध इतिहासविद् कहते थे पर उनके व्यक्तित्व में कवि,गीतकार,कहानीकार,उपन्यास कार, नाटककार, निबन्ध लेखक, पटकथा लेखक, अनुवादक, सम्पादक, समीक्षक और वक्ता सभी समाए थे।