Oxygen Crisis in Lucknow: आक्सीजन व सीएमओ के रेफरेंस लेटर के बिना लखनऊ में मर रहे मरीज
Oxygen Crisis in Lucknow आक्सीजन की बड़ी-बड़ी खेप आने के बावजूद अस्पतालों में कमी बरकरार। विभिन्न अस्पतालों में बेड खाली होने के बावजूद मरीज नहीं हो पा रहे भर्ती। आक्सीजन की सबसे ज्यादा संकट 30 से 50 बेड के छोटे निजी अस्पतालों में हैं।
लखनऊ, जेएनएन। Oxygen Crisis in Lucknow: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मैराथन प्रयास के बाद बेड की किल्लत भले ही काफी हद तक दूर हो गई हो, मगर खाली पड़े बेड अभी भी अव्यवस्था के चलते मरीजों को नहीं मिल पा रहे हैं। हालत यह है कि डीआरडीओ के 505 बेडों के अस्पताल समेत केजीएमयू, पीजीआइ समेत अन्य बड़े निजी अस्पतालों में सैकड़ों की संख्या में आक्सीजनयुक्त बेड खाली पड़े हैं। बावजूद वह सीएमओ के रेफरेंस लेटर के चक्कर में मरीजों को नहीं मिल पा रहे हैं। इधर, मरीजों की हालत भर्ती नहीं हो पाने से लगातार गंभीर होती जा रही है। कई मरीज बेड नहीं मिलने से दम तोड़ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ छोटे कोविड अस्पतालों में आक्सीजन की किल्लत बरकरार है।
निजी अस्पतालों में सबसे ज्यादा आक्सीजन संकट: होम आइसोलेशन के मरीजों को भी आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। इसके लिए उन्हें आठ से 10 घंटे लाइन में भी लगना पड़ रहा है। बावजूद आक्सीजन नहीं मिल पा रही। आक्सीजन की सबसे ज्यादा संकट 30 से 50 बेड के छोटे निजी अस्पतालों में हैं। मरीज लगातार बेहाल हो रहे हैं और इसकी कमी से दम तोड़ रहे हैं। खपत के मुताबिक आक्सीजन नहीं मिलने से लोकबंधु, आरएसएम व बलरामपुर अस्पताल में भी आक्सीजन की किल्लत बनी हुई है। इन अस्पतालों में महज कुछ घंटे का ही स्टाक शेष है। वहीं कई निजी अस्पताल आक्सीजन नहीं होने से मरीजों की भर्ती बंद कर चुके हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के ड्रग इंस्पेक्टर बृजेश कुमार कहते हैं कि आक्सीजन को लेकर स्थिति पहले से काफी बेहतर है।
खत्म नहीं हो रहा रेफरेंस लेटर का फरमान: सीएम योगी के निर्देश के बावजूद अस्पतालों में बेड के लिए सीएमओ का रेफरेंस लेटर नहीं बनने से मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। दरअसल मरीजों की भर्ती का कोविड कमांड कंट्रोल रूम का सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। सीएमओ डा. संजय भटनागर व उनके ऊपर के अधिकारी डा. जीएस बाजपेई समेत अन्य तीन वरिष्ठ अधिकारियों का फोन नहीं उठता है। सीएमओ कार्यालय में तैनात एक दर्जन से अधिक एसीएमओ स्तर के अधिकारी भी अधिकांशत: फोन नहीं उठाते, जिन्होंने फोन उठा भी लिया वह कहते हैं कि यह व्यवस्था मैं नहीं देख रहा। इससे मरीजों को भर्ती करने की मुश्किलें बनी हुई हैं।