सात वर्ष की उम्र में हर बच्चे की आर्थोडॉन्टिक जांच जरूरी, दांतों की मजबूूती के लिए अपनाएं ये उपाय
बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक में अच्छी सेहत के लिए स्वस्थ और मजबूत दांतों का होना बेहद जरूरी है। मगर चाकलेट टाफी अधिक मिठाई वाली वस्तुएं च्विंगम पॉपकॉर्न पिज्जा इत्यादि से बच्चों के दांत शुरू में ही खराब होने लगते हैं।
लखनऊ, [धर्मेन्द्र मिश्र]। बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक में अच्छी सेहत के लिए स्वस्थ और मजबूत दांतों का होना बेहद जरूरी है। मगर चाकलेट, टाफी, अधिक मिठाई वाली वस्तुएं, च्विंगम, पॉपकॉर्न, पिज्जा इत्यादि से बच्चों के दांत शुरू में ही खराब होने लगते हैं। स्लम क्षेत्रों में रहने वाले बहुत से बच्चों के दांत तो ब्रश नहीं करने व तंबाकू उत्पादों को खाने से बेकार हो जाते हैं। ऐसे सभी बच्चों के दांतों में कीड़े लग जाने से उनके दांत कमजोर व बीमारू हो जाते हैं। समय पर इलाज नहीं कराने पर इसका दंश उन्हें आगले चलकर पूरी उम्र भर झेलना पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि समय पर जांच और इलाज शुरू कर दिया जाए तो दांतों को टेंढ़ा-मेढ़ा होने, कीड़े लगने व खराब होने से बचाया जा सकता है। इसके लिए सात वर्ष तक की उम्र के प्रत्येक बच्चे में आर्थोडॉन्टिक जांच कराना जरूरी है।
केजीएमयू में दंत रोग विभाग के प्रो. डा. अमित नागर कहते हैं कि सात वर्ष की उम्र बच्चों के दूध के दांत गिरने व नए दांतों के निकलने की होती है। इस दौरान आर्थोडॉन्टिक समस्याओं का पता लग जाने से उसका निदान आसानी से संभव हो पाता है। उदाहरण के लिए ऊपर नीचे के जबड़े में असमानता को भी कम उम्र में ठीक किया जा सकता है। ऐसे वक्त में सभी दांतों के निकलने का इंतजार नहीं करना चाहिए। दांत ही चेहरे को खूबसूरत व आकर्षक बताते हैं। टेंंढ़े-मेढ़े और बाहर उभरे हुए दांत चेहरे का आकर्षण कम करने के साथ ही साथ खाना चबाने और बातचीत करने में भी बाधा पैदा करते हैं।
वहीं, यदि दूध के दांत जल्दी या देर से गिरें, खाने को चबाने, निगलने व काटने में दिक्कत हो, दांतों का आपस में तालमेल सही न हो पा रहा हो, दांत टेंढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़ या आपस में किटकिटाते हैं तो इन सभी का इलाज आर्थोडॉन्टिक में संभव है। बच्चों को बहुत अधिक चाकलेट, च्विंगम, बर्फ, टाफी इत्यादि वस्तुएं नहीं देनी चाहिए। दांतों की नियमित साफ-सफाई करनी चाहिए।