ऑस्ट्रेलिया में धूम मचा रहा लखनऊ का जैविक कपड़ा, रंग लाई तीन साल की मेहनत
तीन साल की मेहनत के बाद काम शुरू किया। इंदिरानगर के सेक्टर-आठ से दूर इटौंजा में जैविक सूत कातने का प्लांट लगाया।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। लखनवी चिकन के लिए दुनिया में मशहूर लखनऊ की बेटी ने कमाल कर दिया। उन्होंने जैविक अनाज की तर्ज पर जैविक कपड़ा बनाकर मल्टीनेशनल कंपनियों को चुनौती देते हुए इसे ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचा दिया है। हम बात कर रहे हैं इंदिरानगर सेक्टर-आठ निवासी ऋचा सक्सेना की।
2018 में प्राकृतिक ऊर्जा में एमएससी करने के बाद अब वह इसी विषय से पीएचडी कर रही हैं। इससे पहले 2015 में ऋचा ने प्रोडक्शन ट्रेड से बीटेक किया। प्रेक्टिकल के दौरान उन्हें ऑर्गेनिक अनाज की भांति कपड़ा बनाने का फामरूला समझ में आया। फिर उसी पर ध्यान केंद्रित कर दिया। तीन साल की मेहनत के बाद काम शुरू किया।
इंदिरानगर के सेक्टर-आठ से दूर इटौंजा में जैविक सूत कातने का प्लांट लगाया। यहां हाथ से चलने वाले चरखे से कताई होती है। यह सूत बाराबंकी के बड़ा गांव में लगाए गए हैंडलूम में जाता है। यहां कपड़े की बुनाई होती है। पावरलूम के बजाय हाथ से बुनाई होने से प्योर कॉटन का जैविक कपड़ा तैयार होता है। बाराबंकी से कपड़े की बुनाई होने बाद वापस इटौंजा में कपड़े की सफाई होती है। यहां से कपड़ा प्रदेश व देश के विविध हिस्सों में मांग के अनुरूप भेजा जाता है। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के बाद वह इस वर्ष कपड़ा फ्रांस भेजने की तैयारी कर रही हैं। 200 से अधिक कामगार उनके साथ जुड़कर 10 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह की कमाई कर रहे हैं।
गर्मी में ठंडी और जाड़े में गर्मी का अहसास
कपास से तैयार यह कपड़ा गर्मी में शीतलता और जाड़े में गर्मी का अहसास करता है। हालांकि, अन्य कॉटन के कपड़ों से यह 10 से 20 फीसद महंगा है। गुलाबी, नीला समेत छह जैविक रंगों का प्रयोग इसे रंगने में किया जाता है। खादी ग्रामोद्योग भी इसे खादी परिधान में शामिल करने की तैयारी कर रहा है।