पर्यावरण बचाने के लिए किया पैदल मार्च, 53 दिनों की यात्रा के बाद मुंबई से लखनऊ पहुंचे सिद्धार्थ
कोरोना महामारी ने पर्यावरण के प्रति लोगों की समझा भले ही बढ़ा दी हो लेकिन शायद ही इसे लेकर सरकार हो या आम आदमी गंभीर है। आक्सीजन की मारामारी ने पर्यावरण के प्रति सोच को उजागर किया। अब जरूरत है कि हर आम और खास आदमी इसके प्रति जागरूक हो।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। कोरोना महामारी ने पर्यावरण के प्रति लोगों की समझा भले ही बढ़ा दी हो, लेकिन शायद ही इसे लेकर सरकार हो या आम आदमी गंभीर है। आक्सीजन की मारामारी ने पर्यावरण के प्रति हमारी सोच को उजागर कर दिया है। ऐसे में अब जरूरत है कि हर आम और खास आदमी इसके प्रति जागरूक हो। आम लोगों में पर्यावरण की अलख जगाने के लिए कुछ इसी सोच के साथ मुंबई के 23 वर्षीय सिद्धार्थ गणाई पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं।
53 दिनों के पैदल यात्रा करते हुए सोमवार को वह लखनऊ पहुंचे जहां पर्यावरण की अलख जगाने वाले लखनऊ के चंद्रभूषण तिवारी के साथ मिलकर पौधारोपण किया। सिद्धार्थ गणाई ने बतायाकि एक पेड़ इंसानियत के नाम, एक कदम परिवर्तन के और नाम से 53 दिन पहले मुंबई के अंधेरी से यह पैदल यात्रा शुरू की। मोगली गर्ल की भांति इस यात्रा का नाम मोगली सफर रखा गया है।
एक दिन में 40 किमी का सफरः मुंबई के अंधेरी स्थित भवंस महाविद्यालय से वनस्पति विज्ञान से बीएससी की पढ़ाई कर रहे सिद्धार्थ ने बताया कि एक दिन में 35 से 50 किमी. का सफर तय करते हैं। विविधता में एकता के प्रतीक हमारी संस्कृति और भाईचारे का रंग मेरी यात्रा को सुखदाई बना देता है। जहां ठहरते हैं वहां सामाजिक संगठनाें के साथ मिलकर पौधाराेपण करते हैं। पूरा देश अपना है तो हर कोई मुझे देखकर मदत के लिए हाथ बढ़ाता और मैं आगे बढ़ता रहता हूं। लखनऊ के बाद अयोध्या व बस्ती होते हुए नेपाल तक जाएंगे। यात्रा समापन के बारे में उनका कहना है कि मेरा तो मानना है कि मैंने एक भी व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर पाया तो मेरी यात्रा अनवरत चलती रहेगी। मैं रहूं या न रहूं यह देश रहना चाहिए। यात्रा के पीछे मेरी सोच ही मुझे आगे बढ़ने का हौसला देती है। रात में गोमतीनगर के नेहरू एंक्लेव में रुके थे।
आनलाइन क्लास में होते हैं शामिलः सिद्धार्थ की पढ़ाई बाधित न हो इसके लिए वह दिन में आनलाइन क्लास में हिस्सा लेते हैं। शिक्षकों के साथ ही मांग रागिनी भी उनका हौसला बढ़ाते हैं। सिद्धार्थ ने बताया कि मेरी यात्रा का जीरों बजट है। मैं जहां रुकता हूं वहीं के लोग मेरी मदत करते हैं और यात्रा आगे बढ़ जाती है। पढ़ाई के बाद एक अच्छा इंसान बनने की तमन्ना रखता हूं। पर्यावरण को लेकर मेरा अभियान मेरी सांसों तक चलता रहेगा।