International Nurse Day: कभी नवजात की मां तो कभी बुजुर्ग की बेटी, जान हथेली पर रखकर कोविड वार्ड में सेवा कर रही नर्सें
कोरोना काल के कठिन दौर में भी नर्स स्टाफ अपनी जान हथेली पर रखकर काम करता है। परिवार से दूर ये नर्सेस वार्ड में भर्ती मरीजों के साथ बना लेती हैं खास रिश्ता। कई बार संक्रमित होने के बाद भी अस्पतालों के नर्सिंग स्टाफ मरीजों की सेवा कर रहे हैं।
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। सितंबर की बात है। केजीएमयू के गांधी वार्ड के सामने आइसालेशन वार्ड में सिस्टर सुनीता की ड्यूटी लगी थी। कोविड पाॅजिटिव प्रसूता कविता मौर्या की डिलीवरी हुई थी। पति भी कोविड पाॅजिटिव थे। बच्ची निगेटिव थी, इसलिए उसे अलग रखा गया था। बच्ची रोती तो सिस्टर सुनीता को ऐसा लगता कि उनका बेटा और बेटी उन्हें बुला रहे, जिन्हें वह घर पर दादी के पास अकेले छोड़कर अपनी ड्यूटी निभा रही थीं। सिस्टर सुनीता ने एक मां की तरह उस बच्ची और कविता का ख्याल रखा। ऐसे ही जब सिस्टर सुनीता की फरवरी में केजीएमयू के कोविड सेंटर आरएलसी में ड्यूटी लगी तो बुजुर्ग दिनेश के साथ उनका पिता-पुत्री सा रिश्ता बना। वह उन बुजुर्ग से कहतीं- मेरे कोविड पाॅजिटिव ससुर जी होम आइसोलेशन में हैं, मैं उनकी सेवा तो नहीं कर पा रही, पर आपका ख्याल तो रख ही सकती हूं।
17 मई से चैाथी बार कोविड ड्यूटी करने जा रहीं सिस्टर सुनीता मरीजों से खास रिश्ता बना लेती हैं। नवजात की मां तो बुजुर्ग की बेटी बनकर सेवा करतीं। मरीज के ठीक होने के बाद परिवारजन की खुशी से भीगी आंखों में अपनों का चेहरा देखतीं। वह अपने जिनसे कोविड ड्यूटी के कारण वह मिल नहीं पाती थीं। 14 दिन ड्यूटी और 14 दिन क्वारंटाइन रहना होता। तब सुनीता के पति भी कोविड ड्यूटी कर रहे थे। दस साल का बेटा और 13 साल की बेटी दादी के साथ घर पर थे। सुनीता कहती हैं, अब तो बच्चों को भी समझा दिया है। दादी का सारा कहना मानना और घर पर ही रहना।
एक बार ड्यूटी कर ली तो डर खत्म हो गया
सिस्टर सुनीता के अनुसार न्यूरोलाॅजी विभाग के ट्राईएच एरिया में काफी रिस्क था। तब पता नहीं चलता था कौन मरीज पाॅजिटिव है, कौन निगेटिव। भर्ती लेने के बाद जब हम इलाज शुरू कर देते थे तो उसका सैंपल जाता था। वहां बच्चे भी आते थे। कोविड रिपोर्ट आने के बाद ही उन्हें विभाग में भेजा जाता। हमारी यही कोशिश रहती कि हमारी ड्यूटी में किसी की जान न जाए। छह घंटे तक पीपीई किट पहनकर अंदर ही रहना पड़ता। ऐसा माहौल पहली बार देख रहे थे, लगता पता नहीं बच्चों के पास जा भी पाएंगे या नहीं। फिर जब एक बार ड्यूटी कर ली तो सारा डर खत्म हो गया।
वैक्सीन लगने के बाद संतुष्ट चेहरों को देख मिलता सुकून
केजीएमयू में वैक्सीनेशन इंचार्ज मर्सी मैसी राॅस सिर्फ सिस्टर नहीं, एक तीन साल की बच्ची की मां भी हैं। अपने कलेजे के टुकड़े को घर पर छोड़ कोविड ड्यूटी के लिए निकली थीं। तब केजीएमयू के ईएनटी वार्ड में कोविड ड्यूटी लगी थी। मर्सी मैसी कहती हैं, नाॅर्मल वार्ड ड्यूटी से बहुत अलग था सब। घंटों पीपीई किट पहनकर पसीने में तर होकर काम करना होता। ड्यूटी के दौरान हमने सहयोग करने की भावना को और बलवती होते देखा। मरीज की निगेटिव रिपोर्ट आती तो उसके चेहरे की चमक और अपने घर जाने की खुशी को देखकर हम अपने घर से दूर रहने की तकलीफ भूल जाते।
मर्सी कहती हैं, पति राॅबर्ट रोज ने मेरा खूब साथ दिया। मेरी ड्यूटी के दौरान उन्होंने ही बेटी को संभाला। दो बार बेटी मुझसे मिलने भी आई, पर उसे मैं दूर से ही देख सकी। वह कार से बाहर आने, हमसे मिलने के लिए छटपटाती, हमें भी लगता बच्ची को गले से लगा लें, पर हम मजबूर थे। ड्यूटी खत्म होने के बाद भी बच्ची को कुछ दिन के लिए घर के पास ही रहने वाले देवर के घर पर छोड़ा।
सिस्टर मर्सी के अनुसार, कोरोना की त्रासदी को देखते हुए हमेशा सोचती कि कब राहत भरे चेहरे देख पाएंगे। मैं अब वैक्सीनेशन में सिस्टर इंचार्ज का काम देख रही हूं और वैक्सीन लगने के बाद लोगों को संतुष्ट होकर जाते देखना बहुत सुकून देता है। मैं और मेरी टीम का यही मानना रहता है कि कोई भी लाभार्थी बिना टीके के नहीं जाने पाए। अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण हो सके, इसके लिए कभी-कभी ड्यूटी आवर्स से ज्यादा भी काम करना पड़ता है। हमारा काम हमें गर्वित करता है कि हम दूसरों की सेवा कर पा रहे।