बहराइच में कतर्न‍िया के जंगल में बढ़ गया 'जटायु का कुनबा', गिद्धों की वृद्धि पर्यावरण संरक्षण के ल‍िए फायदेमंद

एक साल में ही 35 के मुकाबले बढ़कर 159 हो गई गिद्धों की तादाद। वन जीव संगठन ने विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के समन्वय से गत 15 जनवरी को गिद्धों की गणना कराई। इसके लिए वन्य जीव प्रभाग में कुल 41 टीमें लगाई गई थीं

By Umesh Kumar TiwariEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 10:06 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 10:06 AM (IST)
बहराइच में कतर्न‍िया के जंगल में बढ़ गया 'जटायु का कुनबा', गिद्धों की वृद्धि पर्यावरण संरक्षण के ल‍िए फायदेमंद
काला एवं हिमालयी ग्रिफान के साथ दिखे लुप्त प्राय प्रजाति देशी गिद्ध।

बहराइच, [मुकेश पांडेय]। कतर्न‍ि‍याघाट जंगल में प्रकृति के सफाईकर्मी की पहचान रखने वाले गिद्धों की तादाद में तीन गुना से ज्यादा इजाफा हुआ है। यहां काला गिद्ध एवं हिमालयी ग्रिफान के साथ लुप्त प्राय प्रजाति देशी गिद्ध भी अच्छी खासी संख्या में दिखे हैं। महज एक साल के भीतर यहां जटायु के वंशजों की तादाद बढ़कर 159 हो गई है। बहराइच वन प्रभाग में भी तीन दर्जन गिद्ध चिह्नित किए गए हैं। गिद्धों की इस वृद्धि को पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए उपायों का सुफल माना जा रहा है।

वन जीव संगठन ने विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के समन्वय से गत 15 जनवरी को गिद्धों की गणना कराई। इसके लिए वन्य जीव प्रभाग में कुल 41 टीमें लगाई गई थीं, लेकिन जंगल के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में केवल आठ स्थानों पर गिद्धों की बहुतायत दिखी। खुली घास के मैदान एवं सेमल के विशालकाय पेड़ इन गिद्धों के आशियाना बने हुए हैं।

सर्वाधिक 108 हिमालय ग्रिफान प्रजाति के गिद्ध सुजौली रेंज में कुल चार स्थानों पर सामने आए। मोतीपुर रेंज में 25 देशी गिद्ध (जिप्स फल्वस) पाए गए हैं। ये गिद्ध वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत संरक्षित हैं। ककरहा रेंज में 16 पीली चोंच वाले काला गिद्ध एवं कतॢनयाघाट में नौ हिमालयी समेत कुल दस गिद्ध दिखे हैं। इस तरह यहां 159 गिद्ध पाए गए हैं, जबकि जनवरी 2020 में हुई गणना में कुल 35 गिद्ध ही चिह्नित हुए थे। नवंबर 2018 में हुई गणना में कतर्नि‍या वन्य जीव प्रभाग में मात्र नौ गिद्ध मिले थे।

डाइक्लोफेनिक दवा पर प्रतिबंध का लाभ

दर्द में कारगर डाइक्लोफेनिक दवा का असर खाने वाले पशु में मरने पर भी एक सप्ताह तक बना रहता है। इससे मृत पशु का मांस खाने वाले गिद्धों के गुर्दे गाउट नामक रोग के शिकार हो जाते थे, जो उनके लिए जानलेवा साबित होता था। औषधि महानियंत्रक भारत सरकार ने 11 मई 2006 में डायक्लोफेनिक औषधि का निर्माण प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन मानव समाज डायक्लोफेनिक का प्रयोग बाद में भी करता रहा। इस दवा की मात्रा बढ़ाकर पशुओं को खिलाई जाने लगी, जिसका दुष्परिणाम प्रकृति के सफाईकर्मी भुगतना पड़ रहा था।

'डाइक्लोफेनिक दवा के प्रयोग में कमी आने से गिद्धों की जीवनरक्षा हो रही है। इस वजह से गत वर्ष के मुकाबले संरक्षित वन क्षेत्र में गिद्धों की तादाद 124 बढ़ गई है।'  -यशवंत, प्रभागीय वनाधिकारी 

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