हड्डी खिसकाए बिना कूल्हे में डाला स्टेम सेल, अब इस नई तकनीक से हो रहा इलाज Lucknow News
केजीएमयू के डॉक्टर ने नई तकनीक से किया इलाज पेटेंट के लिए भेजा। कूल्हे में बंद रक्त प्रवाह शुरू अर्थराइटिस से बचाया।
लखनऊ, जेएनएन। बच्चों में होने वाली परथीस बीमारी का आसान इलाज मुमकिन हो गया है। अब बड़ा चीरा व मूल स्थान से हड्डी हटाने का झंझट भी खत्म हो गया है। केजीएमयू के डॉक्टर ने कूल्हे की हड्डी को बगैर डिसलोकेट किए ही उसमें स्टेम सेल डालने की सफलता हासिल की है। ऐसे में नई तकनीकि को पेटेंट के लिए शुक्रवार को आवेदन किया है।
केजीएमयू के पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग के डॉ. अजय सिंह के मुताबिक, चार से आठ वर्ष तक के ब'चों के कूल्हे की हड्डी में रक्त प्रवाह बाधित हो जाती है। इसका कारण, संबंधित हिस्से में नसों का ब्लॉक होना होता है। इस बीमारी को परथीस कहते हैं। वहीं कम उम्र में ब'चों का कूल्हा प्रत्यारोपण मुमकिन नहीं होता है। लिहाजा, वह अर्थराइटिस की चपेट में आ जाता है। लिहाजा, डॉक्टर उसे मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ-साथ स्टेम सेल थेरेपी देते हैं। मेडिकल ट्रीटमेंट में दवाओं के जरिए बीमारी बढऩे से तो रोका जा सकता है, मगर निदान संभव नहीं है। ऐसे में इसकी सफलता रेट 10 से 15 फीसद ही संभव है। ऐसे में स्टेमसेल थेरेपी ही रक्तप्रवाह शुरू करने के लिए कारगर उपाय है।
स्टेम सेल थेरेपी देना पहले था जटिल
डॉ. अजय के मुताबिक, पहले ब'चे के कूल्हे में 10-12 सेमी का चीरा लगाते थे। इसके बाद कूल्हे की हड््डी फीमर हेड को खिसकाया जाता था। इसके बाद ड्रिल मशीन से छेद कर स्टेम सेल डाले जाते थे। इसमें स्टेम सेल की पूरी डोज मूल स्थान पर नहीं पहुंच पाती थी। वहीं इस प्रक्रिया में दो घंटे लग जाते थे।
अब ऐसे हुआ आसान
डॉ. अजय के मुताबिक तीन ब'चों में स्टेम सेल थेरेपी की। इनके कूल्हे में सिर्फ चार सेमी का चीरा लगाया गया। वहीं सी-आर्म मशीन के मॉनीटर पर हड्डी की इमेज देखी गई। ड्रिल मशीन से छेद कर एबी जेल का स्पंज डाला। इसी में छह एमएल स्टेम सेल डाल दिए, ताकि इससे स्टेम सेल बर्बाद होने से बचे। वहीं ब'चे के कूल्हे में रक्तप्रवाह भी शुरू हो गया। इस प्रक्रिया में केवल 45 मिनट ही लगे।