COVID-19 Effect: UP में अब शुल्क प्रतिपूर्ति पर लगा कोरोना का ग्रहण, बजट की कमी और बदले नियम से पांच लाख स्टूडेंट्स प्रभावित

इस बार नियमावली में बदलाव की वजह से भी शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिल सकी है। बदली नियमावली के तहत स्नातक स्तर के कोर्स में प्रवेश लेकर शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन करने वाले विद्यार्थियों का इंटर में 60 फीसद अंक अनिवार्य कर दिया गया है।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 02:05 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 02:05 PM (IST)
COVID-19 Effect: UP में अब शुल्क प्रतिपूर्ति पर लगा कोरोना का ग्रहण, बजट की कमी और बदले नियम से पांच लाख स्टूडेंट्स प्रभावित
यूपी में शुल्क प्रतिपूर्ति में बदली नियमावली और बजट की कमी का हो रहा असर।

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। कोरोना संक्रमण का असर अब शैक्षिक गतिविधियों और शुल्क प्रतिपूर्ति पर भी पड़ने लगा है। एक ओर जहां प्रवेश प्रक्रिया और परीक्षाएं लेट हो रही हैं तो दूसरी ओर योजनाओं पर भी इसका असर पड़ने लगा है। समाज कल्याण विभाग की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को दी जाने वाली शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान भी प्रभावित हो रहा है। आलम यह है कि अभी भी सूबे के लाखों विद्यार्थी शुल्क प्रतिपूर्ति का इंतजार कर रहे हैं।

लखनऊ के सरोजनी नगर में बीएलएड कर रहे अक्षय प्रताप सिंह का सब कुछ सही है, इसके बावजूद शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। अकेले अक्षय ही नहीं रत्नेश कुमार, बासित मुजतबा व रुखसाना समेत कई विद्यार्थियों को इंतजार है। सूबे में हर साल करीब 27 लाख अनुसूचित जाति व जनजाति और सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को शुल्क प्रतिपूर्ति व वजीफा दिया जाता है। बेसिक शिक्षा से लेकर इंजीनियरिंग और डाक्टरी की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों की फीस शुल्क प्रतिपूर्ति के रूप में दी जाती है। पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक विभाग को मिलाकर प्रदेश के 60 लाख विद्यार्थियोें को हर साल शुल्क प्रतिपूर्ति व छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है। वर्ष 2020-21 में सामान्य वर्ग की छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति का बजट 325 करोड़ रुपये कम करके 500 करोड़ कर दिया है। इसकी वजह से विद्यार्थियों को पैसा  नहीं मिल पा रहा है। सेबे वंचित विद्यार्थियों की संख्या तीन से पांच लाख के बीच मेें है। 

अर्हता में हुआ बदलाव: इस बार नियमावली में बदलाव  की वजह से भी शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिल सकी है। बदली नियमावली के तहत स्नातक स्तर के कोर्स में प्रवेश लेकर शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन करने वाले विद्यार्थियों का इंटर में 60 फीसद अंक अनिवार्य कर दिया गया था। परास्नातक स्तर के कोर्स में प्रवेश के बाद शुल्क प्रर्तिपूर्ति के लिए आवेदन करने के लिए स्नातक में 55 फीसद अंक अनिवार्य था। ऐसे में आवेदन की न्यूनतम अर्हता को बढ़ाकर छात्रों की संख्या में कमी करने करने का प्रयास भी किया गया । पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में पहले से ही 50 फीसद अंक की अनिवार्यता है।

समाज कल्याण संयुक्त निदेशक पीके त्रिपाठी ने बताया कि कोरोना संक्रमण की वजह से शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया व आवेदन पर असर पड़ा है। सभी सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को शुल्क प्रतिपूर्ति देना संभव नहीं होता। सीमित बजट में ही मेरिट के आधार पर शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है। बजट मिला तो वंचित विद्यार्थियों को भुगतान किया जाएगा।

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