दो अध्यक्षों में फंसी शहर कांग्रेस, लखनऊ में कार्यक्षेत्र को लेकर मची खींचतान
दो अध्यक्ष के बूते संगठन को खड़ा करने का सपना देख रही कांग्रेस के लिए यही रणनीति मुश्किलें खड़ी कर रही है। दरअसल अब तक दोनों अध्यक्षों के बीच कार्यक्षेत्र का बंटवारा नहीं किया गया है। दोनों अध्यक्ष अधिक से अधिक अपना प्रभुत्व बनाए रखने की घेराबंदी में जुटे हैं।
लखनऊ, [राजीव बाजपेयी]। वार्ड और बूथ स्तर पर जमीनी कार्यकर्ताओं को तलाश रही कांग्रेस अब दो शहर अध्यक्षों के बीच फंस गई है। प्रत्येक वार्ड तक जाकर संगठन जिंदा करने की मुहिम आपसी राजनीति के चलते ठंडे बस्ते में है। अंदरखाने मचे घमासान से बचे-खुचे कार्यकर्ता भी दूसरे दरवाजे खटखटा रहे हैं।
राजधानी में कांग्रेस का हाल किसी से छिपा नहीं है। नौ विधानसभा सीटों में कहीं पर भी दूसरी पार्टियों के आसपास नहीं है। शहर की बात करें तो वार्ड में इक्का-दुक्का जगहों के अलावा कहीं पर भी संगठन जिंदा नहीं है। खुद का वजूद बचाने में जुटी पार्टी ने बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने की कवायद शुरू की थी। पार्टी का दावा था कि बड़े नेता तीन जनवरी से कार्यकर्ताओं संग बैठक कर सभी 110 वार्डो में संगठन खड़ा करेंगे। कांग्र्रेस अभी मैदान में उतरी भी नहीं थी कि आठ जनवरी को शीर्ष नेतृत्व की ओर से अजय श्रीवास्तव को भी महानगर शहर अध्यक्ष बना दिया गया। मुकेश सिंह चौहान पहले से ही शहर कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं ऐसे में यहां पर दो-दो अध्यक्ष हो गए।
दो अध्यक्ष के बूते संगठन को खड़ा करने का सपना देख रही कांग्रेस के लिए यही रणनीति मुश्किलें खड़ी कर रही है। दरअसल, अब तक दोनों अध्यक्षों के बीच कार्यक्षेत्र का बंटवारा नहीं किया गया है। दोनों अध्यक्ष अधिक से अधिक अपना प्रभुत्व बनाए रखने की घेराबंदी में जुटे हैं। यही वजह है कि तीन जनवरी से अब तक महज डेढ़ दर्जन वार्ड में ही बैठकें हो सकी हैं। प्रदेश संगठन सचिव अनिल यादव भी मानते हैं कि लखनऊ बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करने का अभियान कुछ सुस्त है। उनका कहना है कि जल्द ही अध्यक्षों के बीच कार्यक्षेत्रों का बंटवारा कर दिया जाएगा।