After Ayodhya Verdict : पुनर्विचार याचिका के लिए मुस्लिम पक्ष ने तलाशे हिंदू धर्म और शरीयत के बिंदु

After Ayodhya Verdict सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने की बात दोहराई जाती रही लेकिन फैसला रामलला के पक्ष में जाते ही मुस्लिम पक्ष ने यू-टर्न ले लिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Sun, 17 Nov 2019 09:29 PM (IST) Updated:Sun, 17 Nov 2019 09:29 PM (IST)
After Ayodhya Verdict : पुनर्विचार याचिका के लिए मुस्लिम पक्ष ने तलाशे हिंदू धर्म और शरीयत के बिंदु
After Ayodhya Verdict : पुनर्विचार याचिका के लिए मुस्लिम पक्ष ने तलाशे हिंदू धर्म और शरीयत के बिंदु

लखनऊ, जेएनएन। सत्तर साल तक न्यायालय में चले मुकदमे में निश्चित तौर पर मुस्लिम पक्ष को कानूनी दांव-पेंच पर ही एतबार था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने की बात दोहराई जाती रही, लेकिन फैसला रामलला के पक्ष में जाते ही मुस्लिम पक्ष ने यू-टर्न ले लिया है। पुनर्विचार याचिका के लिए कानूनी बिंदु तो वही चुने हैं, जिन पर लंबी जिरह हो चुकी है। साथ ही इसके सहारे अब मुस्लिम पक्ष ने धर्म-शास्त्र और शरीयत के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की तैयारी की है।

अयोध्या में विवादित भूमि पर नौ नवंबर, 2019 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने राजधानी लखनऊ में जो बैठक की, उसमें सबसे पहले कोर्ट के फैसले के बिंदुओं पर ही मंथन हुआ। तीन घंटे तक वरिष्ठ अधिवक्ताओं की टीम के साथ मौलाना और मुस्लिम नेता ऐसे बिंदु छांटने में जुटे रहे, जिनके जरिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अनुचित करार दिया जा सके और पुनर्विचार याचिका दायर की जा सके।

यहीं से एक तर्क यह निकाला गया है कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात में बलपूर्वक रामचंद्र जी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियां रखा जाना अवैधानिक था। इस प्रकार अवैधानिक रूप से रखी गई मूर्तियों को देवता कैसे मान लिया गया। बोर्ड का तर्क है कि हिंदू धर्म-शास्त्र के अनुसार भी यह मूर्तियां देवता नहीं हो सकतीं। बोर्ड ने कोर्ट के निर्णय के इस तथ्य को भी उठाया है कि बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे की भूमि को जन्मस्थान के रूप में पूजा किया जाना साबित नहीं है। अत: जन्मस्थान को देवता नहीं माना जा सकता।

साथ ही तर्क दिया है कि बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है। फिर मस्जिद की जमीन किस आधार पर रामलला को दे दी गई। इसी तरह पांच एकड़ भूमि लेने से इन्कार करने के लिए भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शरीयत को आधार बनाया है। कहा है कि इस्लामी शरीयत मस्जिद के बदले कुछ भी लेने की इजाजत नहीं देती है।

इस कानूनी तर्क पर भी जोर

संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए तथा 51(1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन के एक्सचेंज या ट्रांसफर को पूर्णतया बाधित किया गया है तो अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है।

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