बाल दिवस पर विशेष: छोटे पैरों पर कामयाबी की ऊंची उड़ान

किसी की तीक्ष्ण बुद्धि ने सभी को हतप्रभ किया तो कोई कम उम्र में मंच का महारथी बना। बाल दिवस के मौके पर दैनिक जागरण आपको कुछ ऐसे ही बच्चों से मिलवा रहा हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 05:40 PM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 05:40 PM (IST)
बाल दिवस पर विशेष: छोटे पैरों पर कामयाबी की ऊंची उड़ान
बाल दिवस पर विशेष: छोटे पैरों पर कामयाबी की ऊंची उड़ान

लखनऊ [दुर्गा शर्मा] । कला संपन्न और कुशाग्र आज के ये बच्चे कल बड़ा नाम करेंगे। हुनर के परों पर बच्चों की ऊंची परवाज हर किसी के लिए प्रेरक है। कोई कम उम्र में मंच का महारथी बना है तो किसी की तीक्ष्ण बुद्धि ने सभी को हतप्रभ किया है। स्टेज से इनकी दोस्ती है। वाद्य यंत्रों पर इनकी अंगुलियां दिग्गजों की तरह चलती हैं। पहेलियां और सामान्य ज्ञान इनके लिए हंसी-ठिठोली है। बाल दिवस के मौके पर दैनिक जागरण आपको कुछ ऐसे ही बच्चों से मिलवा रहा हैं।

 

शास्त्रीय नृत्य संग वेस्टर्न का मेल

पांच साल चार महीने की श्रीजाम्या 400 से ज्यादा स्टेज प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। ढाई साल की उम्र से स्टेज प्रस्तुति देना शुरू करने वाली श्रीजाम्या भरतनाट्यम, वेस्टर्न, सालसा, हिप-हॉप और बेली डांस में माहिर हैं। मां पूजा ने भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया है। शुरुआत में मां ही नृत्य गुरु बनीं। मौजूदा समय में श्रीजाम्या जिम्नास्टिक भी सीख रही हैं। सौ नृत्य प्रतियोगिताओं में जीत भी हासिल कर चुकी हैं।

हुनर के पर लगे, खुद के बनाए आसमान पर उड़ चले।

कहती हैं ये कोशिशें, पाएंगे हम मंजिलें।।

 

बौद्धिक कुशलता का जवाब नहीं

व्योम अहूजा के माता-पिता अपने दो साल के बेटे के लिए वल्र्ड मैप का पजल लेकर आए थे। 100 पीसेज के पजल को बच्चे ने सही-सही लगा दिया। यहीं से व्योम के रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला शुरू हो गया। पांच साल के व्योम के पास 16 इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डस (मेमोरी) हैं। इसके साथ ही बांसुरी, डॉम्बिक (मिस्त्र का वाद्य यंत्र), सिंथेसाइजर (ब्लाइंड फोल्ड होकर भी), ड्रम और गिटार भी बजाते हैं।

वाद्य यंत्रों पर सधे हाथ

पांच साल के देवाज्ञ जब एक साल दस महीने के थे तब 51 अलग तरीके के परिवहन साधनों को पहचानकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराया। पिता प्रतीक दीक्षित को वाद्य यंत्रों में रुचि रही है। बेटे ने भी पिता के गुर को आत्मसात किया और दो साल की उम्र से ड्रम सीखना शुरू कर दिया। तीन साल की उम्र में पहली स्टेज प्रस्तुति दी। बेहतरीन ड्रमर होने के साथ ही देवाज्ञ प्यानो, गिटार, कहोन (ब्राजीलियन वाद्य यंत्र), मिस्त्र का खास ड्रम बजाने में माहिर हैं। चेस भी खेलते हैं, चेस नेशनल (अंडर सात) की तैयारी भी कर रहे हैं।

 

नन्ही नृत्यांगना को सलाम

पांच साल की स्वरा त्रिपाठी ने ढाई साल की उम्र में स्टेज पर पहली नृत्य प्रस्तुति दी। लखनऊ महोत्सव, उप्र महोत्सव, उत्तराखंड महोत्सव, उत्तरायणी मेला, कुशीनगर महोत्सव समेत तमाम मंचों पर अपनी प्रतिभा का जादू बिखेर चुकी हैं। स्वरा ब्रांड एंबेस्डर भी हैं। इनमें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (भारतीय सिने कर्मचारी संघ), पौधरोपण अभियान (प्रगति पर्यावरण), मानस पर्यावरण, पॉलीथिन मुक्त लखनऊ, यातायात सुरक्षा (विनायक ग्रामोद्योग), नीलांकृत पेपर ज्वैलरी और सनातन महासभा शामिल हैं।

 

कमाल की बेली दीवानगी

आशियाना निवासी 13 वर्षीय कलिका राजपूत 300 से ज्यादा स्टेज परफार्मेस दे चुक हैं। 200 से ज्यादा अवॉर्ड हासिल कर चुकी कलिका की प्रथम गुरु बुआ पूजा अरोड़ा रहीं। आज खुद कलिका बेली डांस गुरु बन उभरी हैं। कलिका बताती हैं, तीन साल बुआ से सीखकर सीखा। फिर दिल्ली जाकर हर साल एक हफ्ते गुरु मेहर मलिक से प्रशिक्षण शुरू किया। लखनऊ में गुरु मंजुषा निगम और भूपेंद्र निगम से भी सीखा। बेली के अतिरिक्त अन्य नृत्य विधाओं को भी सीखा। इसमें हिप हॉप, भरतनाट्यम और कथक आदि शामिल हैं।

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