लखनऊ में बसपा सरकार के स्मारकों का नहीं हो रहा रखरखाव, कर्मचारी भी परेशान; अरबों रुपये के कारपस फंड के बाद भी अनदेखी जारी

बसपा सरकार में स्मारकों का निर्माण कराया गया था उस वक्त करीब छह हजार कर्मचारी लखनऊ से लेकर नोएडा तक रखे गए थे। समय बीतता गया सैकड़ों को अच्छी नौकरी मिली जो छोड़ कर चले गए तो कुछ ने वेतन विसंगतियों और अन्य विभागीय कारणों से विभाग छोड़ दिया।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 08:17 AM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 02:35 PM (IST)
लखनऊ में बसपा सरकार के स्मारकों का नहीं हो रहा रखरखाव, कर्मचारी भी परेशान; अरबों रुपये के कारपस फंड के बाद भी अनदेखी जारी
लखनऊ में बसपा काल के स्मारकों के रखरखाव पर ध्यान नहीं।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। बसपा सरकार में स्मारकों का निर्माण कराया गया था, उस वक्त करीब छह हजार कर्मचारी लखनऊ से लेकर नोएडा तक रखे गए थे। समय बीतता गया सैकड़ों को अच्छी नौकरी मिली जो छोड़ कर चले गए तो कुछ ने वेतन विसंगतियों और अन्य विभागीय कारणों से विभाग छोड़ दिया। इस दौरान कइयों की अलग अलग दुर्घटनाओं में मौत हो गई। दस से अधिक कर्मचारियों को कोरोना ने लील लिया। कुल मिलाकर संख्या कम होती गई लेकिन कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ी। वहीं जिन स्मारकों की रक्षा व देखभाल करने के लिए जो जिम्मेदारी है, उनकी हालत जर्जर होती जा रही है। बकायदा इसके लिए कमेटी गठित है, जिसे समय-समय पर स्मारकों के रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन कोई मन लगाकर इस प्रोजेक्ट पर फोकस नहीं करना चाहता। ऐसे में लखनऊ में ही बने स्मारक मरम्मत मांग रहे है। जबकि खजाना कई अरब रुपये है। कारपस फंड में उस समय 162 करोड़ रुपये करीब जमा किए गए थे। वर्तमान में यह बढ़कर पौने तीन सौ करोड़ हो चुका है।

स्मारकों में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी का हाल सबसे ज्यादा बुरा है। यहां कार्यरत कर्मचारियों का वेतन सिर्फ महंगाई भत्ते के नाम पर बढ़ता है। लखनऊ मेट्रो के स्टेशनों पर काम करने वाले निजी सुरक्षा गार्ड के बराबर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी वेतन पा रहे हैं। कोविड में जिनकी जाने गई, उनके आश्रितों को नौकरी नहीं दी जा रही है। स्मारकों की रक्षा के लिए तैनात किए गए कर्मचारी कई अफसरों के घरों में काम कर रहे है।

न न्यू पेंशन स्कीम है और न कटौती के पैसे की जानकारी: कर्मचारियों के वेतन से हर माह सेंट्रल प्रोविडेंट फंड (सीपीएफ) का पैसा कटता है लेकिन यह एफडी के रूप में जमा हो जाता है। बैंक ऑफ बडौदा में जमा 48 कराेड़ में से 38 करोड़ बचे हैं। स्मारक के अफसरों की ढिलाई से दस करोड़ का गबन अप्रैल 2020 में हुआ था। 17 सितंबर को मामले की रिपोर्ट मुख्य प्रबंधक स्मारक पवन कुमार गंगवार ने लिखाई थी। इस एक माह में न दस करोड़ का पता लगा और पुलिस यह पता कर पायी कि बैंक प्रबंधक दोषी हैं या अन्य कोई। कर्मचारियों के पैसे का हाल कोई लेने वाला नहीं है। बैंक ऑफ बड़ौदा भी 16 अक्टूबर तक सीपीएफ का दस करोड़ रुपये ब्याज सहित वापस नहीं कर पायी।

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