Lucknow Zoo 99 Years: आओ पढ़ें लखनऊ चिड़ियाघर की कुछ रोचक कहानियां, यहां 'वृंदा' को देखने जुटती थी भीड़

Lucknow Zoo 99 Years अपना प्‍यारा नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान अपने 99 साल पूरे कर चुका है। अब 29 नवंबर को 100 वें साल में प्रवेश करेगा। ऐसे में दैनिक जागरण आपको इससे जुड़ी कुछ रोचक कहानियां बता रहा है।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Sat, 28 Nov 2020 08:04 AM (IST) Updated:Sat, 28 Nov 2020 08:04 AM (IST)
Lucknow Zoo 99 Years: आओ पढ़ें लखनऊ चिड़ियाघर की कुछ रोचक कहानियां, यहां 'वृंदा' को देखने जुटती थी भीड़
दैनिक जागरण आपको नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान से जुड़ी कुछ रोचक कहानियां बता रहा है।

लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। Lucknow Zoo 99 Years: बनारसी बाग से प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन, चिड़ियाघर और अब नवाब वाजिद अली शाह जूलॉजिकल गार्डन का नाम, जहां वन्यजीवों की छोटी सी दुनिया है। यहां के कई वन्यजीव दुनिया में अपनी पहचान छोड़कर चले गए। वह जीवित तो नहीं हैं, लेकिन उनकी चर्चा आज भी होती है। चिडिय़ाघर की पहले सैर कर चुके लोग आज भी जब यहां आते हैं तो उनकी निगाह उस बाड़े पर जाती है, जहां थोड़ा समय बिताने के बाद वह बचपन की तरफ लौट जाते थे। भूल जाते थे कि वह बड़े हो गए हैं और उस वन्यजीव के साथ दूर से खेलने में मस्त हो जाते थे।

दर्शकों को दूर से पास आता देख हुक्कू इस कदर खुश हो जाता था कि जैसे उसका अपना कोई आ गया हो। अपनी बोली से हर किसी को आकर्षित करने वाले हुक्कू की बोली की तरह ही दर्शक भी उसकी आवाज की नकल करते थे। तब उसके बाड़े के आसपास तमाम आवाजें गूंजने लगती थीं। कालू नाम से हुक्कू की पहचान थी और 25 नवंबर 1987 को देहरादून चिडिय़ाघर से उसे लाया गया था। तब उसकी उम्र आठ वर्ष की थी और तीस साल तक यहां दर्शकों का मनोरंजन करने वाला 38 वर्ष की उम्र में चल बसा था।

लोहित भी रहा चर्चा में

कहा जाता था कि गेंडा लोहित और डॉ.रामकृष्ण दास की दोस्ती जैसी थी। वह बिना किसी डर के ही उसके बाड़े में चले जाते थे और पास खड़ा गेंडा भी शांत खड़ा रहता था। कीपर बताते थे कि ङ्क्षहसक प्रवृत्ति होने के बाद भी लोहित को डॉ .रामकृष्ण दास छू भी लेते थे। सब कुछ सही चल रहा था और अन्य दिनों की तरह डा. दास 15 मार्च 1995 को गेंडा के बाड़े में गए थे। वह उसकी तरफ बढ़ ही रहे थे कि गेंडे के चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा। बस, उसके एक हमले से डा. दास ऐसा गिरे कि फिर उठ नहीं पाए। इसके बाद लोहित देश-दुनिया में चर्चा में आ गया और उसे देखने के लिए भीड़ जुटने लगी। वह जब तक जीवित था, हर कोई उसे देखने के बाद अतीत में खो जाता था कि यही डा.रामकृष्ण दास को मारने वाला लोहित है।

वृंदा को देखने जुटती थी भीड़

वह बब्बर शेर था, लेकिन आंखों में रोशनी नहीं थी। कमर भी टेढ़ी थी, लेकिन वह दुनिया में चर्चा में आ गया था। चिड़ियाघर के अस्पताल के पास वह लोहे से बने पिंजड़े में रहता था और दर्शक भी उसे देखने जाते थे। वह मीडिया में इसलिए चर्चा में आ गया था, क्योंकि उसकी मर्सी किलिंग होनी थी। यानी उसे उसके दर्द से राहत देने के लिए जहर का इंजेक्शन देकर मारा जाना था। मार्च 1998 में मोबाइल जू से पकड़कर लाए गए वृंदा नाम के बब्बर शेर ने भी चिडिय़ाघर का नाम देश दुनिया में चर्चा में रहा। मोबाइल जू के पिजंड़े में अधिक समय रहने से उसकी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई थी। वह बड़ी मुश्किल से चल पाता था। वर्ष 1999 में उसे मर्सी किलिंग (मौत देना) का निर्णय लिया। अखबारों में खबरें छपीं तो देश ही नहीं विदेश में रह रहे वन्यजीव प्रेमी वृंदा के पक्ष में उतर आए। दुआ ही नहीं दवाएं भी दुनिया भर से आने लगीं। तमाम लोग दवा का खर्च उठाने के लिए चिडिय़ाघर को पैसे भी दे आए थे। बढ़ते दबाव के कारण उसकी मर्सी किलिंग तो नहीं हो पाई थी, लेकिन वह चर्चा का केंद्र रहा।

यह भी रहे चर्चा में वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जापान के प्रधानमंत्री को हाथी का बच्चा भेंट करना चाहते थे। बिहार से सड़क मार्ग से लाए जा रहे बच्चे की हालत खराब हो गई थी और उसे बीमार हालत में चिडिय़ाघर लाया गया। यह घटना भी चर्चा में रही और जापान के राजदूत हाथी के बच्चे को देखने पहुंचे थे, लेकिन वह बच नहीं पाया। वर्ष 1960 में बाढ़ का कहर भी चिडिय़ाघर ने झेला था, तब वन्यजीवों को पानी से बचने के लिए ऊंची जगह तलाशनी पड़ी। बाघ और शेर भी अपनी मांद की छत पर आ गए थे और डर यह बन रहा था कि वह बाहर न आ जाएं। कहते हैं कि एक टाइगर बाहर भी आ गया था, जो खुद ही अंदर बाड़े में चला गया था। वर्ष 1960 में प्रधानमंत्री की हैसियत से पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी चिडिय़ाघर की सैर की तो तीन दशक बाद उनका राजहंस जहाज भी चिडिय़ाघर की शान बन गया है। वर्ष 1965 में चिडिय़ाघर की शान में एक और इजाफा हुआ और संग्रहालय उसका हिस्सा बन गया। मिस्र की ममी ने संग्रहालय की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ाया। वर्ष 1968 में बाल ट्रेन चलने से बच्चों को अपनी तरफ चिडिय़ाघर ने खींचने का काम किया। वर्ष-1998-हथिनी चंपाकली के पेट में उल्टा बच्चा था। प्रसव में दिक्कत थी। खबरें छपीं तो ब्रिटेन समेत कई देशों के चिकित्सकों ने सुझाव व दवाएं भेजीं। नन्हेंं सारस हैप्पी के पंख तराशने का मामला आया तो दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों ने हंगामा मचा दिया, लिहाजा उसे सुरक्षित गोंडा के पक्षी विहार में छोडऩा पड़ा।

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