लखनऊ चिड़ियाघर का 100 वां स्थापना दिवस आज, सीएम योगी आद‍ित्‍यनाथ होंगे शामिल: जान‍िए रोचक बातें

निदेशक ने बताया कि सोमवा को 100वें स्थापना दिवस पर प्रतियोगिताओं में पहले स्थान पर रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा। प्राणि उद्यान परिसर में शाम चार बजे होने वाले समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि शामिल होंगे।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 07:51 AM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 01:12 PM (IST)
लखनऊ चिड़ियाघर का 100 वां स्थापना दिवस आज, सीएम योगी आद‍ित्‍यनाथ होंगे शामिल: जान‍िए रोचक बातें
आज पूरी हुई लखनऊ के चिडिय़ाघर की सौ वर्ष की यात्रा।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। बच्चों को छुकछुक कर सैर कराती बाल रेल। उल्लास भरते वन्यजीव और उनके बीच इतिहास समेटे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सौगात विमान राजहंस। प्रकृति को संजोए चिडिय़ाघर का आकर्षण आज भी बरकरार है। यहां छुट्टी होते ही बच्चों की चहलकदमी वन्यजीवों में उमंग भरती है। सोमवार को चिडिय़ाघर अपनी सौ साल की यात्रा को पूरा कर लेगा।

चिडिय़ाघर का नाम कई बार बदला लेकिन यहां वन्यजीवों का परिवार हमेशा एक रहा। उसमें किसी तरह की तब्दीली नहीं आई। हां, अब चिडिय़ाघर के कई वरिष्ठ सदस्य नहीं हैं। अब हुक्कू बंदर का बाड़ा सूना है। कालू नाम से हुक्कू की पहचान थी और 25 नवंबर 1987 को देहरादून चिडिय़ाघर से उसे लाया गया था। तब उसकी उम्र आठ वर्ष की थी और तीस साल तक यहां दर्शकों का मनोरंजन करने वाला 38 वर्ष की ïउम्र में चल बसा था। लोहित गैंडा अब चहलकदमी करता नहीं दिखता। चिडिय़ाघर की जब स्थापना हुई तो उसका नाम बनारसी बाग रखा गया। इसका नामकरण बाद में बदलकर ङ्क्षप्रस आफ वेल्स जूलोजिकल गार्डेन हो गया। इसके बाद नाम चिडिय़ाघर दिया गया और अब इसे नवाब वाजिद अली शाह जूलोजिकल गार्डेन के नाम से जाना जाता है।

वन्यजीव जो रहे चर्चा में : चिडिय़ाघर के गेंडा लोहित और यहां के डा. रामकृष्ण दास की दोस्ती की कहानी दूर दूर तक विख्यात थी। डा. दास बिना किसी डर के ही उसके बाड़े में चले जाते थे और पास खड़ा गेंडा भी शांत खड़ा रहता था, लेकिन डा. दास 15 मार्च 1995 को गेंडा लोहित के बाड़े में गए थे। लोहित ने यहां डा. दास पर हमला कर दिया। इससे डा. दास की मौत हो गई।

वृंदा को देखने जुटती थी भीड़ : बब्बर शेर वृंदा की आंखों में रोशनी नहीं थी। कमर भी टेढ़ी थी। पीड़ा बढऩे के कारण वृंदा को जहर का इंजेक्शन देकर उसकी मर्सी कीङ्क्षलग की कार्यवाही शुरू हुई। इस पर विदेश में रह रहे वन्यजीव वृंदा के पक्ष में उतर आए। दुआ ही नहीं, दवाएं भी देश-विदेश से आने लगीं। तमाम लोग दवा का खर्च उठाने के लिए चिडिय़ाघर को पैसा भी दे आए थे। बढ़ते दबाव के कारण उसकी मर्सी किङ्क्षलग तो नहीं हो पाई थी, लेकिन वह चर्चा का केंद्र रहा।

जब लखनऊ आया हाथी का बच्चा : वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जापान के प्रधानमंत्री को हाथी का बच्चा भेंट करना चाहते थे। बिहार से सड़क मार्ग से लाए जा रहे बच्चे की हालत खराब हो गई थी और उसे बीमार हालत में चिडिय़ाघर लाया गया। जापान के राजदूत के हाथी के बच्चे को देखने पहुंचे थे, लेकिन वह बच नहीं पाया।

कुछ रोचक क्षण

वर्ष 1960 में बाढ़ आई तो चिडिय़ाघर का एक बाघ बाहर आ गया था। हालांकि वह खुद ही बाड़े में चला गया था। वर्ष 1960 में प्रधानमंत्री की हैसियत से जवाहर लाल नेहरू ने भी चिडिय़ाघर की सैर की तो तीन दशक बाद उनका राजहंस जहाज भी चिडिय़ाघर की शान बन गया वर्ष 1965 में चिडिय़ाघर में संग्रहालय बना और मिस्र की ममी (लाश, जो आज भी सुरक्षित है) ने संग्रहालय की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ाया। वर्ष 1968 में यहां बाल ट्रेन की शुरुआत हुई 2002 में कोलकाता से जिराफ पहुंचा जिराफ का नाम अनुभव था वर्ष-1998-हथिनी चंपाकली के पेट में उलटा बच्चा था। प्रसव में दिक्कत थी। ब्रिटेन समेत कई देशों के चिकित्सकों ने सुझाव व दवाएं भेंजी। नन्हें सारस हैप्पी के पंख तराशने का मामला आया तो दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों ने हंगामा मचा दिया, लिहाजा उसे सुरक्षित गोंडा के पक्षी विहार में छोडऩा पड़ा था

डाक टिकट जारी होगा : शताब्दी वर्ष पर सोमवार को चिडिय़ाघर का टिकट जारी होगा, जिसकी कीमत पांच रुपये है। चिडिय़ाघर प्रशासन ने टिकट की छपाई के लिए बारह लाख रुपये खर्च किए हैं। अब डाक विभाग चिडिय़ाघर को साठ हजार टिकट भी देगा, जिसे चिडिय़ाघर प्रशासन अपने काउंटर से भी बेचेगा, जिसकी कीमत पचास रुपये तक हो सकती है।

शताब्दी स्तंभ तैयार, आज होगा अनावरण : चिडिय़ाघर के मुख्य मार्ग पर शताब्दी स्तंभ दिखेगा, जिसमे सौ वर्ष लिखा होगा। स्तंभ पर बबर शेर से लेकर पक्षियों व अन्य वन्यजीवों की आकृति बनाई गई है। स्तंभ चौदह फीट ऊंचा है, जबकि नौ फीट चौड़ाई और ढ़ाई फीट मोटाई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 29 नवंबर को शाम चार बजे शताब्दी स्तंभ का अनावरण करेंगे।

चिडिय़ाघर एक नजर में  : अवध के दूसरे नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने बनारसी बाग को परिवर्तित कर लखनऊ प्राणि उद्यान की स्थापना 29 नवंबर 1921 को की थी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने तत्कालीन प्रिंस आफ वेल्स के लखनऊ आगमन को यादगार बनाने के लिए उद्यान का नाम प्रिंस आफ वेल्स जूलोजिकल गार्डेन रखा गया था। बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह का नाम इस उद्यान को मिला।

स्मारिका में दिखेगा स्मरण : चिडिय़ाघर के सौ वर्ष के सफर में प्रकाशित हो रही स्मारिका में पूर्व में तैनात रहे निदेशकों का स्मरण भी दिखेगा। अपने-अपने अनुभव पूर्व निदेशकों ने भेजे हैं। इस स्मारिका का विमोचन भी मुख्यमंत्री करेंगे।

चिड़ियाघर एक नजर 29 नवंबर 1921 को प्रिंस वाल्स के स्वागत में तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने की स्थापना। बनारस से आए आम के पेड़ों की वजह से नाम बनारसी बाग पड़ा। लखनऊ के नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने बारादरी का निर्माण कराया। बनारसी बाग से नाम बदलकर प्रिंस वाल्स जुलोजिकल गार्डन ट्रस्ट हो गया। 1925 राजा बलरामपुर ने बब्बर शेर के लिए बनवाया पहला बाड़ा। 1935 में रानी राम कुमार भार्गव ने तोता लेन का निर्माण कराया। 2001 में जुलोजिकल पार्क और फिर लखनऊ चिड़ियाघर। 20068 में हाथी सुमित और जयमाला भेजी गईं जंगल। 2015 में नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान। वर्तमान में 100 बाड़ों में करीब एक हजार वन्यजीव। कुल क्षेत्रफल 29 एकड़ कर्मचारी वेतन समेत कुल खर्चएक करोड़ प्रतिमाह वन्यजीवों के खाने का खर्च 33,27406 रुपये प्रतिमाह अकेले टाइगर के भोजन का खर्च 55000 रुपये प्रतिमाह सफेद टाइगर पर खर्च 55000 रुपये प्रतिमाह बब्बर शेर पर खर्च 47000 रुपये प्रतिमाह तेंदुआ पर खर्च 14000 रुपये प्रतिमाह सामान्य दिनों में हर दिन दर्शकों की संख्या 5000 से 6000

chat bot
आपका साथी