Research: रामगढ़ ताल, राप्ती-आमी नदी का जल कितना शुद्ध, बताएगा लखनऊ विश्वविद्यालय का शोध

लखनऊ पर्यावरण निदेशालय ने दो साल पहले मंजूर हुआ था प्रोजेक्ट। बजट न मिलने से अटका रहा शोध कार्य अब पकड़ेगा रफ्तार। बालू और मिट्टी से पता चलेगा पानी का बहाव। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव बदलने का कारण भी पता चलेगा।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 11:10 AM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 07:34 PM (IST)
Research: रामगढ़ ताल, राप्ती-आमी नदी का जल कितना शुद्ध, बताएगा लखनऊ विश्वविद्यालय का शोध
लखनऊ: पर्यावरण निदेशालय ने दो साल पहले मंजूर हुआ था प्रोजेक्ट। बजट न मिलने से अटका रहा शोध कार्य।

लखनऊ [अखिल सक्सेना]। दो साल बाद ही सही, अब लखनऊ विश्वविद्यालय जल्द ही आमी नदी, राप्ती और रामगढ़ ताल की नदियों के पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए शोध शुरू करेगा। विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ध्रूव सेन को पर्यावरण निदेशालय ने वर्ष 2019-20 में शोध के लिए यह प्रोजेक्ट दिया था। लेकिन बजट न मिलने और फिर कोरोना की वजह से मामला अटका रहा। अब बजट मिल गया है, जिसके बाद फरवरी में शोध का कार्य शुरू हो जाएगा। इसमें पानी के नमूने लेकर उसके प्रदूषण, गुणवत्ता व कार्बनिक तत्वों का अध्ययन किया जाएगा। उसकी बालू मिट्टी से यह भी पता किया जाएगा कि पानी का बहाव कितना था।

उत्तर प्रदेश पर्यावरण निदेशालय ने वर्ष 2019-20 में रामगढ़ ताल, राप्ती और आमी नदी के पानी की गुणवत्ता पर शोध करने के लिए लविवि के भू-विज्ञान विभाग को प्रोजेक्ट दिया था। इसकी जिम्मेदारी विभाग के प्रो. ध्रुव सेन सिंह को मिली थी। पूरा प्रोजेक्ट करीब 27 लाख रुपये का मंजूर हुआ था। लेकिन बजट की लेटलतीफी और फिर कोरोना की वजह से कोई कार्य नहीं हो पाया। हालांकि अब शोध शुरू करने की तैयारी है।

बालू और मिट्टी से पता चलेगा पानी का बहाव: प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने बताया कि राप्ती और आमी नदियों एवं रामगढ़ ताल से पानी के नमूने लिए जाएंगे। तीन चीजों पर फोकस रहेगा। सबसे पहले पानी में प्रदूषण जांचने के लिए पता लगाया जाएगा कि इसमें कितना आर्सेनिक, निकिल, कोबाल्ट आदि है। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। फिर पानी गुणवत्ता के लिए कार्बोनेट, नाइट्रेट और सल्फेट की मात्रा जांची जाएगी। उसके बाद पानी में कार्बनिक तत्वों का अध्ययन किया जाएगा। इसके अलावा नदी के अंदर से बालू और तटबंधों की मिट्टी से यह भी पता किया जाएगा कि पहले पानी का बहाव कितना था और अब क्या स्थिति है।

उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव बदलने का कारण भी पता चलेगा: शोध के दौरान यह भी देखने का प्रयास करेंगे कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव कैसे बदले हैं। इन सभी बिंदुओं पर शोध करेंगे। फरवरी के अंत तक इसके आरंभिक परिणाम भी आने लगेंगे।

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