Covid-19 की जांच करने में केजीएमयू देश में अव्वल, 20 लाख से अधिक हुए आरटीपीसीआर टेस्ट
माइक्रोबायोलोजी विभाग की अध्यक्ष डॉ.अमिता जैन के मुताबिक डॉक्टर लैब टेक्नीशियन व डाटा ऑपरेटर कोविड महामारी के दौरान भी अपनी जान जोखिम में डाल कर नमूनों की जांच कर रहे हैं। सभी के संयुक्त प्रयास से कोरोना से लड़ाई जारी है।
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना महामारी के दौरान केजीएमयू ने 20 लाख से अधिक आरटीपीसीआर जांच कर देश में अव्वल हो गया है। केजीएमयू प्रशासन का दावा है कि देश में किसी अन्य संस्थान द्वारा इतनी बड़ी संख्या में कोरोना जांच नहीं की गई है। वहीं अब आईसीएमआर द्वारा केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एडवांस माइकोलॉजी डायग्नोस्टिक एंड रिसर्च सेंटर को हरी झंडी दी गई है। माना जा रहा है कि इससे ब्लैक फंगस सहित अन्य फंगस की जांच के साथ शोध हो सकेगा। केजीएमयू में फरवरी 2020 से कोरोना जांच शुरू की गई थी। बमुश्किल 20 से 40 नमूनों की ही जांच हो पाती थी। महामारी को देखते हुए जांच की संख्या बढ़नी शुरू हुई। आज स्थिति यह है कि हर रोज 15 हजार नमूनों की आरटी-पीसीआर जांच हो रही है।
प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक जांचों का कुल आकड़ा 20 लाख के पार पहुंच गया है जो देश में सर्वाधिक है। माइक्रोबायोलोजी विभाग की अध्यक्ष डॉ.अमिता जैन के मुताबिक डॉक्टर, लैब टेक्नीशियन व डाटा ऑपरेटर कोविड महामारी के दौरान भी अपनी जान जोखिम में डाल कर नमूनों की जांच कर रहे हैं। सभी के संयुक्त प्रयास से कोरोना से लड़ाई जारी है। उन्होंने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीजों की भी तुरंत कोरोना जांच कराई जा रही है। ताकि मरीजों का इलाज प्रभावित न हो।
माइक्रोबायोलोजी विभाग को आईसीएमआर ने एडवांस माइकोलॉजी डाइग्नोस्टिक एंड रिसर्च सेंटर स्वीकृत किया गया है। अब इससे सम्बंधित शोध भी होंगे। यह प्रदेश का पहला संस्थान है जिसे माइकोलॉजी सेंटर की मान्यता मिली है। केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह के मुताबिक देश में कुल 13 माइकोलॉजी सेंटर हैं। इसमें फंगस की जांच होती है। केजीएमयू में भी फंगस की मॉलीक्यूलर और जेनेटिक जांच की जाएगी। इसके अलावा एंटीफंगल ड्रग का खून में स्तर का पता लगाया जाएगा जिससे दवा की खुराक तय करने में भी मदद मिलेगी। इससे मरीजों को एंटी फंगल दवाओं के दुष्प्रभाव से बचाने में सहायता मिलेगी।
डॉ.सुधीर ने बताया कि आईसीयू मरीजों में फंगल संक्रमण का खतरा अधिक होता है क्योंकि मरीज लंबे समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखे जाते हैं। वहीं कोरोना के गंभीर मरीजों को स्टराइड दिया जाता है। इससे भी ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ जाता है। समय पर फंगस की पहचान से सटीक इलाज में मदद मिलेगी।