चुनावी चौपाल: जागरूकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही संभव है कूड़ा निस्तारण

राजधानी में कूड़ा प्रबंधन की समस्या को दूर करने का सरकारी प्रयास नाकाफी। पॉलीथिन पर रोक लगने के बाद भी बाजारों में धड़ल्ले से हो रहा इस्तेमाल।

By Edited By: Publish:Sat, 20 Apr 2019 07:02 PM (IST) Updated:Tue, 23 Apr 2019 07:49 AM (IST)
चुनावी चौपाल: जागरूकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही संभव है कूड़ा निस्तारण
चुनावी चौपाल: जागरूकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही संभव है कूड़ा निस्तारण

लखनऊ, जेएनएन। नामांकन खत्म हो चुका है और प्रचार शुरू होने वाला है। सभी राजनैतिक दल अपने-अपने वादों का पिटारा लेकर जनता को लुभाने की कोशिश में लग जाएंगे हैं। आम आदमी के लिए योजनाएं बनाने के दावे के बीच हर तबके के विकास का सपना दिखाया जा रहा है, लेकिन लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे न तो उनके एजेंड में नजर आते हैं और न ही नागरिक ऐसे मुद्दों को लेकर गंभीर है। राजधानी की बात करें तो यहां कूड़ा प्रबंधन सबसे बड़ी समस्या है, जिसे दूर करने का सरकारी प्रयास नाकाफी है। सरकार की ओर से ठोस रणनीति न बनने की वजह से यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है।

प्लास्टिक जहां वातावरण को प्रभावित करती है, वहीं घरेलू कूड़ा बीमारियों को बढ़ाने मेंं अपनी भूमिका निभाता है। कूड़ा प्रबंधन के क्षेत्र में कई सामाजिक संगठनों ने भी भागीदारी करनी शुरू कर दी है। सरकारी और सामाजिक प्रयास से कैसे कूड़े का निस्तारण किया जाए और इस गंभीर समस्या को राजनैतिक दलों के एजेंडे में शामिल करने का प्रयास 'दैनिक जागरण' चुनाव चौपाल के माध्यम से कर रहा है। शनिवार को राजधानी के सामाजिक संगठनों, वैज्ञानिकों और अधिकारियों की मौजूदगी में कूड़े के निस्तारण को लेकर चुनाव चौपाल का आयोजन किया गया। 

कूड़े के निस्तारण को लेकर शेयर की लोगों ने अपनी राय

मुस्कान ज्योति के मेवालाल का कहना है कि कूड़ा निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है और इसका मुख्य कारण प्रशासनिक लापरवाही है। कूड़ा प्रबंधन का काम ऐसे लोगों के सिपुर्द कर दिया गया जिसके पास इसका कोई अनुभव नहीं है। मेरी ओर से कई जिलों में काम किया जा रहा है और वहां का काम देखा जा सकता है। वेस्ट को निस्तारण करने की कोई ठोस नीति सरकार के पास नही है। कूड़े को जब तक सेक्टर वाइज नहीं बांटा जाएगा तब तक इसका निस्तारण संभव नहीं है। सूखा कूड़ा क्या है और गीला कूड़ा क्या है, इसकी जानकारी दी जाना चाहिए। हर तरह के कूड़े का इस्तेमाल भी अलग-अलग है। राजनीतिक सोच को बदलना होगा और आम लोगों को भी कूड़ा प्रबंधन को लेकर जागरूक होना पड़ेगा।  लोक भारती अजय प्रकाश ने बताया कि कूड़ा निस्तारण को लेकर हम दूसरों पर दोषारोपण करने से बाज नहीं आते, लेकिन हम क्या कर रहे हैं इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। घर से निकलने वाले कूड़े को 100 फीसद तक निस्तारित किया जा सकता है। इसके लिए आपको स्वयं जागरूक होना होगा। घर से निकलने वाले कूड़े को घर में ही खाद बनाकर हरियाली के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पांच से छह व्यक्तियों के परिवार का कूड़ा 15 लीटर के ड्रम के माध्यम से छह से आठ महीने तक निस्तारित किया जा सकता है। सी कार्बन्स अध्यक्ष वीपी श्रीवास्तव के मुताबिक, कूड़ा प्रबंधन को लेकर उच्चतम न्यायालय की ओर से कई आदेश दिए गए और जिम्मेदारी भी तय की गई, लेकिन इसे अमल में लाने में प्रशासन नाकाम रहा। राजनीतिक इच्छा शक्ति भी इसे लेकर नहीं दिखी। पॉलीथिन को बंद करने का फरमान वर्तमान और इससे पहले की सरकार ने जारी तो कर दिया, लेकिन उसका कितना असर दिखा यह कूड़े में प्लास्टिक की बढ़ती संख्या को देखकर लगाया जा सकता है। झोला लेकर बाजार जाने की प्रवृत्ति शुरू होने से पहले ही पॉलीथिन के मकडज़ाल में फंस गई और हर ओर धड़ल्ले से कभी न खत्म होने वाला प्लास्टिक कूड़े के रूप में पड़ा है। ईको ग्रीन प्रबंधक अभिषेक सिंह कहते हैं कि 100 फीसद कूड़ा नहीं उठ पा रहा है। इस सच्चाई से हम मुंह नहीं मोड़ सकते, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है, इस पर भी हमें ध्यान देना चाहिए। कभी लोग घरों से कूड़ा नहीं देते तो कभी गाडिय़ां भी नहीं आती। ऐसे में खुद के अंदर जब तक कूड़ा प्रबंधन के प्रति जागरूकता नहीं आएगी, तब तक सिस्टम को कोसना अनुचित है। आपके साथ ही सिस्टम भी जिम्मेदार है। राजनीतिक मंशा भी साफ होनी चाहिए, तभी हमे कूड़े और गंदगी से मुक्ति मिल सकेगी।  नगर निगम पर्यावरण अभियंता पंकज भूषण का कहना है कि कूड़ा निस्तारण की इच्छाशक्ति का विकास करना होगा। एक दूसरे को कोसने के बजाय खुद भी करने का प्रयास करना होगा। विभाग की ओर से 100 किग्रा से अधिक कूड़ा निकलने वाले प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उन्हें स्वयं कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था के लिए बाध्य किया जाएगा। नए निर्देश को अमली जामा पहनाने का प्रयास होगा और लोगों पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। सरकारी महकमे नकारा है यह कहना तो आसान है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कोई काम नहीं हो रहा है। कहीं न कहीं काम में कुछ कमी रहती है जिसे आगे और बेहतर करने का प्रयास किया जाता है।  सामाजिक कार्यकर्ता अजय कुमार सिंह के मुताबिक, नगर निगम के अधिकारी कोई काम नहीं करते और अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं। पार्षद आम लोगों को तो जागरूक होने की बात करते है, लेकिन स्वयं नहीं जागरूक होते। ऐसे में कूड़े को लेकर आम आदमी से अधिक सिस्टम जिम्मेदार है। कहीं कूड़ा निस्तारण की गाडिय़ां अधिक हैं तो कहीं कागजों पर चल रही हैं। कहीं रोज कूड़ा उठता है तो कहीं उठता ही नहीं। राजनीतिक मंशा को इस ओर लाने से पहले सिस्टम में बदलाव भी लाना होगा। राजनीतिज्ञों को यह बताना होगा कि कूड़ा निस्तारण भी गंभीर समस्या है।  सीमैप पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ.अनिल कुमार सिंह ने बताया कि हम सब जानते हैं कि कूड़ा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। कूड़ा घर के अंदर से ही निकलता है। आपका ही कूड़ा है और इसे आपको निस्तारित करने का प्रयास करना चाहिए। मुझे लगता है कि सब इस सोच को पैदा कर लें तो इससे राजनीतिक सोच भी बदलेगी और कूड़े का निस्तारण भी हो जाएगा। मेरी ओर से फूलों से खाद बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। सुगंधित फूलों का दोबारा इस्तेमाल करके धूप और अगरबत्ती बनाने का कार्य किया जाता है। कूड़े में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का विकास करके भी इसके निस्तारण का प्रयास किया जा सकता है। युवाओं को इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। एनबीआरआइ वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.पुनीत सिंह चौहान ने बताया कि पेड़ों की पत्तियों को जलाने के अलावा कोई चारा नहीं नजर आता। मेरी ओर से प्रयोग किया गया और इन पत्त्तियों के निस्तारण के साथ ही पर्यावरण बचाने की पहल की गई। ऐसे में हर क्षेत्र के हर उस आदमी की जिम्मेदारी है कि वह कूड़े के निस्तारण में अपना योगदान करें। वैज्ञानिक सोच बदलने के साथ ही आम लोगों की भागीदारी भी बढ़ेगी। सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवाणुओं को पैदाकर कूड़े की त्रासदी को कम किया जा सकता है। राजनीतिज्ञ इस ओर तब सोचेंगे जब आप उनसे अपनी बात कहेंगे और आपके पास इसके समाधान का तरीका भी होना चाहिए।  पूर्व पार्षद विनोद कृष्ण सिंघल ने बताया कि जैसा कूड़ा, वैसा निस्तारण की प्रक्रिया को अपनाना होगा। गीला कूड़ा घर में जैविक खाद बनाने के काम में आता है तो सूखा कूड़ा बेचने के काम आता है और उस पैसे से आप जैविक खाद बना सकते हैं। मेरी गारंटी है कि आपके घर से कूड़ा गायब हो जाएगा। कोई काम कर रहा है या कोई काम नहीं कर रहा है, इस पचड़े से दूर होकर आप अपना काम करिए। मंदिरों से फूलों को उठाकर खाद बनाने का प्रयास वर्षों से चल रहा है। इस प्रयास को आगे बढ़ाने की जरूरत है। सभी को अपनी सोच को बदलना होगा। यह भी बात सत्य है कि कूड़े के निस्तारण में यदि खर्च आएगा तो इसका कोई फायदा नहीं होगा। सरकारी प्रयास करने होंगे और राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा करनी होगी तभी हम इस विकराल समस्या से निजात पा सकेंगे। 
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