Allahabad High Court News: लखनऊ बेंच ने सरकार से पूछा, KGMU को कितना दिया जाता है फंड

इससे पहले कोर्ट ने 27 फरवरी 2017 को केजीएमयू से उसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले फंड की विस्तृत जानकारी मांगी थी और सरकार को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था। आदेश के अनुपालन मे केजीएमयू ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया था

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 09:57 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 09:57 PM (IST)
Allahabad High Court News: लखनऊ बेंच ने सरकार से पूछा, KGMU को कितना दिया जाता है फंड
पूर्ववर्ती सरकार में पैथालाजिकल टेस्ट का शुल्क 33 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने का मामला।

विधि संवाददाता, लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने पूर्ववर्ती सरकार में केजीएमयू में पैथालाजिकल टेस्ट का शुल्क 33 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने के मामले में राज्य सरकार से पूछा है कि केजीएमयू को कितना फंड दिया जाता है। इसके लिए कोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है।

यह आदेश जस्टिस रितुराज अवस्थी और जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने लोक न्यायार्थ संस्था के महासचिव विवेक मनीषी की ओर से 2017 में दाखिल एक जनहित याचिका पर दिया है। इससे पहले कोर्ट ने 27 फरवरी 2017 को केजीएमयू से उसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले फंड की विस्तृत जानकारी मांगी थी और सरकार को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था।

आदेश के अनुपालन मे केजीएमयू ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया था किन्तु मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने आया कि सरकार की ओर से अभी हलफनामा नहीं आया है। इस पर कोर्ट ने सरकार को इसके लिए तीन हफ्ते का समय दिया। सरकार को हलफनामे में यह भी बताना है कि केजीएमयू को कौन से वित्तीय संसाधन प्रदान किए गए व केजीएमयू की ओर से क्या अतिरिक्त मांग रही। 2017 की इस याचिका में केजीएमयू में पैथालाजिकल टेस्ट के शुल्क में बढ़ोतरी का मुद्दा उठाया गया है। कहा गया है कि अन्य सरकारी अस्पतालों में लगभग डेढ़ सौ टेस्ट निश्शुल्क हैं जबकि केजीएमयू में ऐसा नहीं है।

पूर्व अपर मुख्य सचिव को मौत के मामले में नोटिस : संयुक्त निदेशक डा.राजेंद्र कुमार सैनी की याचिका पर हाईकोर्ट ने लापरवाही के कारण मृत्यु होने के आरोप पर चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव अरविंद कुमार तथा हरदोई के पूर्व सीएमओ डा.राम प्रवेश रावत को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति फैज आलम खान की एकल पीठ ने यह आदेश डा.राजेंद्र कुमार सैनी की पुनरीक्षण याचिका पर पारित किया। याचिका में कहा गया कि डा.सैनी के पिता गंभीर रूप से बीमार थे। उनके इलाज के लिए याची को उन्हेंं लेकर विदेश जाना था। इसके लिए उसने विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र की मांग की, लेकिन तत्कालीन अपर मुख्य सचिव व हरदोई के तत्कालीन सीएमओ ने अनापत्ति से संबंधित उसकी फाइल को दबा दिया। इस दौरान डा.सैनी के पिता की मृत्यु हो गई।

याची ने दलील दी है कि यदि उसे अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया गया होता तो वह अपने पिता का इलाज विदेश में करा लेता और उनकी मृत्यु न होती। याची ने मामले में एफआइआर दर्ज करने का आदेश पुलिस को देने के लिए सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत सीजेएम, लखनऊ के समक्ष प्रार्थना पत्र दिया था, जिसे सीजेएम ने बीती तीन मार्च को खारिज कर दिया। याची ने सीजेएम के इसी आदेश को चुनौती दी है। मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी। 

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