LU Centenary Year Celebration: लखनऊ विश्वविद्यालय से ही शुरू हुई थी इनकी साहित्यिक यात्रा, शताब्दी वर्ष में यादें हुईं ताजा

Lucknow University Centenary Year Celebration हास्य-व्यंग्य कवि पंकज प्रसून ने साझा किए अनुभव। पंकज प्रसून ने कहा कि आसान नहीं था विज्ञान कविता का सफर । विज्ञान की कविताएं प्राइमरी के पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 07:08 AM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 07:08 AM (IST)
LU Centenary Year Celebration:  लखनऊ विश्वविद्यालय से ही शुरू हुई थी इनकी साहित्यिक यात्रा, शताब्दी वर्ष में यादें हुईं ताजा
Lucknow University Centenary Year Celebration : हास्य-व्यंग्य कवि पंकज प्रसून ने साझा किए अनुभव।

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। Lucknow University Centenary Year Celebration : लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र पंकज प्रसून को 2006 में तब कुलपति रहे डॉ. एसपी सिंह ने विश्वविद्यालय की शान बताया था। साथ ही विशेष पुरस्कार से भी नवाजा था। बस, फिर क्या था लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़ाई के साथ ही साहित्यिक यात्रा भी शुरू हो गई। शताब्दी वर्ष में उसी विश्वविद्यालय ने याद किया तो पंकज प्रसून रोमांचित हो उठे। उस दिन को याद करते हुए पंकज प्रसून ने बताया, तब कानपुर के कल्चरल फेस्ट अंतराग्नि में हिस्सा लेने गया था। उस समय निशी पांडे ने टीम बनाई थी। मैं वहां से सर्वाधिक पांच पुरस्कार जीतकर लाया था। हर किसी ने खूब सराहना की थी। पंकज प्रसून ने लाल किला से भी काव्य पाठ किया है, पर जिस विश्वविद्यालय ने सब कुछ दिया, आज वहीं पर कविताओं की महफिल सजाने का अनुभव और लुत्फ ही कुछ खास है। पंकज प्रसून कवि होने के साथ ही विज्ञान संस्थान में भी काम करते हैं। उनकी विज्ञान कविताएं विशेष तौर पर सराही जाती हैं।

वैज्ञानिक और कवि विषय पर पंकज प्रसून का नजरिया है, वैज्ञानिक शरीर के लिए दवा बनाने का काम करता है। जबकि कवि मन के लिए दवा बनाने का काम करता है। वैज्ञानिक के रिसर्च पेपर जनरल्स में छपते हैं, जबकि कवि जनरल के लिए लिखता है। वैज्ञानिक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन देता है, जबकि कवि के प्वाइंट में पावर होती है। कवि कल्पना है और उस कल्पना को धरातल में उतारने का काम वैज्ञानिक का होता है। सूरदास ने लिखा मैय्या मैं तो चंद्र खिलौना लाए हो...और बाद में चांद पर इंसान पहुंचा। पाकिस्तान के शायर शकीब जलाली का शेर है-

जहां शजर पे लगा था तबर का जख्म शकेब

वहीं से देख लो कोंपल नई निकलने लगी...।

इस कांसेप्ट को विज्ञान की भाषा में रीजेनरेशन कहा जाता है।

आसान नहीं था विज्ञान कविता का सफर

पंकज प्रसून बताते हैं, विज्ञान कविता का  यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। शुरू में इसे  साइंस पापुलराइजेशन के प्रमुख  टूल के रूप में स्थान नहीं मिल पा रहा था। मैंने परमाणु उर्जा पर कविता की  किताब ' परमाणु की छांव में' लिखी, जो बहुत पसंद की गई। उप्र हिंदी संस्थान का 2017  का एनभाल पुरस्कार भी इस किताब को तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक द्वारा मिला। एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने इसे परमाणु ऊर्जा पर कविता की प्रथम पुस्तक के रूप में  अपनी रिकॉर्ड बुक में शामिल किया। यह किताब आने के बाद विज्ञान कविताओं का एक माहौल पूरे देश में  बना। पिछले आइआइएसएफ -2018 में विज्ञान कविता की वर्कशॉप  जैव प्रौद्योगिकी मंत्रालय  भारत सरकार द्वारा  आयोजित की गई,  जिसे मैंने संचालित किया था। इस कार्यशाला में  देशभर से आए चुनिंदा ढाई हजार बच्चों ने प्रतिभाग किया था। यह कार्यशाला बेहद सफल रही थी,  जिसमें 450  विद्यार्थियों ने विज्ञान कविताएं कन्नड़, तमिल, तेलगू, मलयालम, बांगला  एवं उड़िया  में लिखी थी, जिनमें से विजेता 10  प्रतिभागियों को मेडल प्रदान किए गए थे। अभी हाल ही में उप्र भाषा संस्थान एवं सीएसआइआर -निसकेयर के संयुक्त तत्वावधान में भी लखनऊ में शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय में विज्ञान कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसे मैंने संचालित एवं संयोजित किया था। 2019 के इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल के मंच से विज्ञान कवि सम्मेलन के प्रमुख कवि के रूप में आमंत्रित किया गया था।

जब अनुपम खेर ने पढ़ी थी पंकज की कविता

पिछले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पंकज प्रसून की कविता लड़कियां बड़ी लड़ाका होती हैं...को मशहूर अभिनेता अनुपम खेर ने टाइम्स स्क्वायर न्यूयॉर्क से पढ़ी, जो चौरतरफा चर्चा का विषय बना। लविव शताब्दी वर्ष में भी अनुपम खेर ने वर्चुअल कार्यक्रम में पंकज प्रसून को सराहा।

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