शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण ने की थी रासलीला, जानें इस पर्व की मान्यताएं और महत्व

विकास के इस डिजिटल युग में सबकुछ बदल गया है। नहीं बदली हैं तो हमारी परंपराएं व मान्यताएं। हम भले चांद पर कदम रख चुके हों और मंगल पर जीवन की तलाश पूरी कर रहे हों लेकिन ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा देते हैं।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 08:43 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 12:15 PM (IST)
शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण ने की थी रासलीला, जानें इस पर्व की मान्यताएं और महत्व
आचार्य अरुण मिश्रा के मुताबिक, गाय के दूध की खीर बनाकर आधी रात को भगवान को भोग लगाना चाहिए।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। विकास के इस डिजिटल युग में सबकुछ बदल गया है। नहीं बदली हैं तो हमारी परंपराएं व मान्यताएं। हम भले चांद पर कदम रख चुके हों और मंगल पर जीवन की तलाश पूरी कर रहे हों, लेकिन ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास आज भी हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा देते हैं। शरद पूर्णिमा पर एक बार फिर हम आसमान से अमृत वर्षा की कामना को लेकर तैयारियों में जुट गए हैं। 19 अक्टूबर को होने वाली पूर्णिमा के दिन ही श्री कृष्ण ने रासलीला की थी। इस बार नक्षत्रोें के योग ने इसे खास बना दिया है।

आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि आाश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते है। शरद पूर्णिमा को ‘कौमुदी व्रत’,‘कोजागरी पूर्णिमा’ और ‘रास पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चन्द्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं से युक्त होता है और इस दिन चंद्रमा की चांदनी अमृत से युक्त होती है। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर को शाम 7:04 बजे से शुरू होकर 20 अक्टूबर को शाम 8:26 बजे तक रहेगी। 19 अक्टूबर शरद पूर्णिमा को मंगलवार रेवती नक्षत्र और चन्द्रमा मीन राशि का संयोग बनने से पूर्णिमा खास हो गई है। आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने ‘रास लीला’ की थी इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते है। इस दिन सुबह स्नान करके भगवान श्री कृष्ण या श्री विष्णु जी या अपने ईष्ट देव का पूजन -र्चन करना चाहिए और उपवास रखना चाहिए।

आचार्य अरुण कुमार मिश्रा ने बताया कि इस दिन रात में गाय के दूध की खीर बनाकर उसमें घी, चीनी मिलाकर आधी रात को भगवान को भोेग लगाकर खीर को चांदनी रात में रखना चाहिए। ऐसा करने से चन्द्रमा की किरणों से अमृत प्राप्त होता है। अर्द्धरात्रि में चन्द्रमा को भी अर्ध्य देना चाहिए। पूर्णिमा की चांदनी औषधि गुणों से युक्त होती है इसमें रखी खीर का सेवन करने से हमारे चन्द्र ग्रह संबंधी दोष जैसे कि कफ सर्दी छाती के रोग और हार्माेस संबंधी रागों में लाभकारी है। चांदनी रात में बैठने से और सुई में धागा पिरोने से आंखो की रोशनी तेज होती है और प्रातः काल सूर्य उदय से पूर्व इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करना चाहिए जिससे वर्ष भर अरोग्यता रिती है। 

क्या है कथानकः आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। जो लोग रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए मां लक्ष्मी का आह्वान करते हैं धन की देवी उनके घर में वास करती है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत भी किया जाता है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम में विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है । माता लक्ष्मी, कुबेर और इंद्र देव का पूजन और श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करते हैं। ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती है और भक्तों पर धन-धान्य से पूर्ण करती हैं। 20 को बंगाली समाज के लोग पंडालों में पूजन करेंगे और 21 को पुरानी प्रतिमाओं का विसर्जन होगा।

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