लखनऊ में चिता को अग्नि देने के ल‍िए भी लंबी वेट‍िंग, खांचे में बंटे महापात्र से भी हो रही देरी

महापात्रों ने अपने-अपने दिन बांट रखे हैं। किसी के पास पंद्रह दिन है तो किसी के पास तीन दिन। इसी तरह से सभी महापात्रों के दिन बंटे है। अब इस समय जिन महापात्रों का दिन नहीं चल रहा है तो वो श्मशानघाट से दूर हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 07:30 AM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 04:08 PM (IST)
लखनऊ में चिता को अग्नि देने के ल‍िए भी लंबी वेट‍िंग, खांचे में बंटे महापात्र से भी हो रही देरी
गुलाला घाट पर कभी बैठने के लिए बनाया गया था पार्क जिसमें अब किए जा रहे हैं अंतिम संस्कार।

लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। टेढ़ी पुलिया निवासी श्याम सिंह पत्नी का शव लेकर पौने ग्यारह बजे भैंसाकुंड श्मशान घाट (नॉन कोविड) आ गए, लेकिन उन्हें लकड़ी मिलने का टोकन दे दिया गया। 39 नंबर बाद ही उन्हें लकड़ी मिलनी थी। लिहाजा वह पत्नी के शव के पास ही बैठे थे वह शव के पास बैठकर मक्खियों को हटा रहे थे। डर था कि अगर अधिक देर हुई तो शव खराब न होने लगे। डेढ़ घंटे बाद ही उनका नंबर आ पाया और

ऐसे ही कई शोकाकुल परिजन भी टोकन का नंबर आने का इंतजार कर रहे थे। शव रखने के नौ चबूतरे भर चुके थे तो किसी ने शव को पानी की टंकी के नीचे रख दिया तो किसी ने पेड़ के पास या फिर जिसे जहां जगह मिली।

दोपहर साढ़े बारह बज रहा था। प्रवीरेंदु गुप्ता के नाम पर 42 नंबर चढ़ाया गया और रजिस्टर चढ़ रहे युवक सुरेंद्र यादव ने कहा कि एक घंटे बाद ही लकड़ी मिल पाएगी। वह चले गए और शव के पास बैठकर नंबर आने का इंतजार करने लगे।

दोपहर के साथ ही श्मशान घाट पर भीड़ बढ़ती जा रही थी और चार कंधों पर लदे शव सीढिय़ों से उतर रहे थे। इसी बीच चबूतरा न मिलने से कुछ लोग शव को किसी ऐसी जगह रख रहे थे, जो सुरक्षित हो। यह क्रम दिन भर चलता रहा और शोकाकुल परिवार बेबस थे। हर किसी को चिंता थी कि किसी तरह से दाह संस्कार का नंबर आ जाए। शव बढ़ते जा रहे थे और उसी के साथ ही शोकाकुल परिवार का इंतजार भी बढ़ रहा था।

नाम दर्ज करना है तो इंतजार कीजिए

नगर निगम ने एक संविदा कर्मी को मृतक का नाम दर्ज करने और पर्ची देने के लिए लगाया है। यह संविदा कर्मी तबसे तैनात जब दिन में 15 शव ही आते थे, लेकिन अब इस हालात में भी एक ही कर्मी तैनात है और सभी को जल्दी पर्ची बनाकर देना उसके वश में नहीं है। ऐसे में वहां पर शोकाकुल परिवारों की भीड़ लग रही है। 

खांचे में बंटे महापात्र से भी हो रही देरी

महापात्रों ने अपने-अपने दिन बांट रखे हैं। किसी के पास पंद्रह दिन है तो किसी के पास तीन दिन। इसी तरह से सभी महापात्रों के दिन बंटे है। अब इस समय जिन महापात्रों का दिन नहीं चल रहा है तो उन्होंने श्मशानघाट से दूरी बना रखी है और यही कारण ही पर्याप्त महापात्र न होने से भी दाह संस्कार में देरी हो रही है। अलीगंज से आए शव को चिता पर लेटा दिया गया था, लेकिन महापात्र दूसरी चिता के पास थे और इस कारण परिवार के लोगों को इंतजार करना पड़ रहा था। कायदे से यह होना चाहिए कि ऐसा हालात में सभी महापात्रों को बुला लेना चाहिए, लेकिन सरकारी तंत्र का कोई अंकुश न होने से महापात्रों की मनमानी जारी है और वह अपने निर्धारित दिन में दूसरे महापात्र को फटकने नहीं देते हैं।

नगर नगम ने लकड़ी का इंतजाम

यह काम अच्छा देखने को मिला कि नगर निगम ने लकड़ी का जिम्मा खुद ही संभाल लिया है और अब पर्याप्त मात्रा में लकड़ी भी मौजूद थी। साढ़े पांच रुपये किलो के हिसाब से लकड़ी बेची जा रही है, जो पहले के रेट की तुलना में कम है। लकड़ी के लिए नगर निगम ने दो काउंटर बनाए हैं, जहां से लकड़ी दी जा रही है और पार्किंग के बगल वाले भाग में लकड़ी की बिक्री हो रही है।  

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