Funeral of Litterateur Yogesh Praveen: नम आंखों से साहित्यकार योगेश प्रवीन को दी गई अंतिम विदाई, छोटे भाई ने दी मुखाग्नि

इतिहासकार डाॅ योगेश प्रवीन का अंतिम संस्कार मंगलवार को भैसा कुंड में हुआ। उनके छोटे भाई कामेश श्रीवास्तव ने मुखाग्नि दी। उनकी शव यात्रा में करीब 30 लोग शामिल थे बैकुंठ धाम पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए परिवारीजन के अलावा कई मशहूर हस्तियां शामिल हुई।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 02:10 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 02:10 PM (IST)
Funeral of Litterateur Yogesh Praveen: नम आंखों से साहित्यकार योगेश प्रवीन को दी गई अंतिम विदाई, छोटे भाई ने दी मुखाग्नि
साहित्यकार योगेश प्रवीन का मंगलवार को अंतिम संस्कार किया गया।

लखनऊ, जेएनएन। वह चले गए उसी सादगी के साथ जैसे ताउम्र रहे। पीछे छोड़ गए मायूस लखनऊ और बेलफ्ज हो गए चाहने वाले। इतिहासकार डाॅ योगेश प्रवीन का अंतिम संस्कार मंगलवार को भैसा कुंड में हुआ। उनके छोटे भाई कामेश श्रीवास्तव ने मुखाग्नि दी। उनकी शव यात्रा में करीब 30 लोग शामिल थे बैकुंठ धाम पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए परिवारीजन के अलावा दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी, अश्विनी सिंह, हफीज किदवई आदि पहुंचे। इससे पूर्व सुबह विधि न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक ने दिवंगत योगेश प्रवीन के घर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। वहीं लोगों ने उनसे जुड़ी बातों की स्मृति की। 

साहित्य, काव्य और नाट्य जगत के दाऊ: डाॅ अमिता दुबे ने बताया कि डाॅ योगेश प्रवीन मेरे बचपन की वह धरोहर, जिन्होंने मुझे क्षणप्रतिक्षण बड़ा होते देखा, समझदार होते जाना और इस सबसे बढ़कर कभी छोटी बहन और कभी बिटिया कह कर आशीषा। डा योगेश प्रवीन के नजदीकी लोग उन्हंे दाऊ कहते, दाऊ यानि कृष्ण के बड़े भाई बलराम यानि कृष्ण की शक्ति का संचित कोष। यदि दाऊ न होते तो कृष्ण का भव्य व्यक्तित्व सामने नहीं आता। साहित्य, काव्य और नाट्य जगत में अनेक ऐसे कृष्ण हैं, जिन्हें डाॅ योगेश प्रवीन जैसे दाऊ का वरद हस्त प्राप्त रहा।

मेरा बचपन लखनऊ के मौलवीगंज मोहल्ले में बीता। मौलवीगंज से बिरहाना- राजेन्द्र नगर पैदल जाने के रास्ते में डाॅ योगेश प्रवीन के घर के सामने से निकलना अनिवार्यता थी वहीं पास में श्री कृष्ण बिहारी ‘नूर‘ जी का भी घर था। मुझे याद है पिता श्री कृष्ण कुमार ‘अनिल‘ के साथ इन रास्तों पर चलते हुए डाॅ0 योगेश प्रवीन से भेंट और वार्ताएँ कब आत्मीयता में बदल गयीं कहा नहीं जा सकता।

एक बात और मेरी बेटी अंशुमा का विवाह देवष्ठानी एकादशी 11 नवम्बर, 2016 को होना सुनिश्चित हुआ। डाॅ0 योगश प्रवीन को पता चला तो उन्होंने बड़े स्नेह से कहा- अमिता वैसे तो तुम्हारे घर में बड़ी-बूढी हैं लेकिन फिर भी लड़की की शादी में क्या-क्या रस्में होनी चाहिए इसे एक कागज पर लिख दिया है। देख लेना सब-कुछ परम्परा के अनुसार हो क्योंकि तुम परम्परा को लेकर चलती हो। तब मेरे मन ने कहा था कि ईश्वर परम्पराओं को सजोने वाले ऐसे बड़े भाई सबको दे।

डाॅ0 योगश प्रवीन ने 28 अक्टूबर, 2018 को 80 वर्ष पूर्ण किये थे। उनका 81वाँ जन्मदिन उत्सव के रूप में मनाया गया था। उनके शुभचिन्तक, प्रशंसक एकत्रित हुए थे। मेरी पुस्तक ‘‘सृजन के सोपान’’ जिसके मुखपृष्ठ पर उनकी स्मित मुस्कान वाली छवि अंकित थी का लोकार्पण उनके करकमलों द्वारा हुआ था। वह क्षण और उनके मुखमण्डल पर बच्चों सी निश्छल हँसी मेरी आँखों में बसी है सदा बसी रहेगी।

लेखिका उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में संपादक हैं।

वह वैसे आते जैसे मामा और नाना हों

मालिनी अवस्थी

लखनऊ महोत्सव में मुझे गाते हुए सुना तो उन्होंने मां से कहा था हम राम नवमी पर कार्यक्रम करते हैं अगर आप बिटिया को लेकर आएं तो अच्छा होगा। उन्होंने जो राम भजन लिखे थे उसकी किताब भी दी। वह भगवान राम के अनन्य भक्त थे, घर का नाम भी पंचवटी रखा था। हर साल वहां जाकर हम राम नवमी पर तीन-चार भजन गाते और वह हम पर बेशुमार दुलार लुटाते।

बिटिया की शादी के समय वह हल्दी के दिन दोपहर एक बजे करीब घर आए थे। बोले कि देखो बिटिया हम चुनरी और चदरा ओढ़ने का लाए हैं। हमें लगा कि भीड़ में कहीं खो न जाएं इसलिए अकेले ही आशीर्वाद देने आए हैं। मैंने कहा आप वैसे ही आए हैं जैसे नाना और मामा लोग कपड़े लेकर आते थे।

एक बार जब संस्कृति विभाग द्वारा उनको यहां की पुरानी विरासतों पर पुस्तिका लिखने के लिए कहा गया तो उन्होंने सीधा हमें फोन किया। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारी मां अपनी भाभी की बहुत तारीफ करती हैं कि वह बहुत अच्छी चैक बनाती हैं। उनसे कैसे मुलाकात होगी। फिर हमने मां से बात की और वह ताइजी लोगों के पास गए और चैक बनाई। वह पुस्तिका संस्कृति विभाग से छपकर तैयार है।

करीब 12 साल पुरानी बात होगी मैंने उनको फोन किया और पूछा कि संगीत की पुरानी परंपरा के कितने लोग यहां रह गए हैं तो उन्होंने कहा कि कई लोग हैं। मैंने पूछा सुनने को मिल सकते हैं तो बोले हां बिल्कुल। फिर एक दिन वह हैदर बक्श जी की बहन सूफिया आपा को लेकर घर आए। तीन चार घंटे महफिल चली। जरीना बेगम की हमने घर में महफिल रखी उसमें भी योगेश जी साथ में बैठे।

जब मैंने सोनचिरैया का गठन किया तो एक पुस्तक निकाली थी। मैंने उनसे कहा कि आप मिरासनों की गायन परंपरा पर एक लेख लिखें। वह बोले, बिटिया हमारी अब उम्र हो गई है तुम सुन लो बस, लिखना बहुत मुश्किल है। किस्सागोई उनसे बेहतर किसी ने नहीं की। एक ऐसा इंसान चला गया जो जीता जागता लखनऊ था।

लेखिका प्रख्यात लोक गायिका हैं।

chat bot
आपका साथी