मधुमेह के रोगियों में च्यवनप्राश की ताकत परखेगा केजीएमयू, आयुष मंत्रालय ने दी शोध करने की अनुमति
कोरोना काल में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी किसी संजीवनी से कम साबित नहीं हुई। इम्युनिटी को बेहतर बनाने के लिए लोगों ने कई नुस्खे आजमाए जिनमें च्यवनप्राश भी एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभरा था।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी किसी संजीवनी से कम साबित नहीं हुई। इम्युनिटी को बेहतर बनाने के लिए लोगों ने कई नुस्खे आजमाए, जिनमें च्यवनप्राश भी एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभरा। इम्युनिटी बूस्टर के रूप में प्रचारित इस पारंपरिक आयुर्वेदिक नुस्खे पर शोध करने के लिए आयुष मंत्रालय ने केजीएमयू को च्यवनप्राश की परख करने का जिम्मा सौंपा है। केजीएमयू का सेंटर फार एडवांस रिसर्च (सीफार) संस्थान के कर्मचारियों पर च्यवनप्राश का सेवन कराकर शोध करेगा। इसके तहत उनके अलग-अलग ब्लड टेस्ट करके पता किया जा रहा है कि उनकी इम्युनिटी कोशिकाओं में बदलाव आया है या नहीं।
शोध कर रहे सीफार के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सतेंद्र सिंह ने बताया कि कर्मचारियों का चयन कर उन्हें च्यवनप्राश देने से पहले उनकी 40 ब्लड जांचें की गईं हैं। इसमें बी सेल, टी सेल, एनके सेल और रेग्युलेटरी टी सेल से जुड़ी जांच शामिल हैं। फिर उन्हें च्यवनप्राश दिया जाता है। तीन सप्ताह बाद फिर से उनके च्यवनप्राश खाने से पहले की गई जांचे दोहराई जाती हैं। 12 सप्ताह बाद एक बार फिर अंत में जांचों की फिर पुनरावृत्ति होती है। इससे हम यह स्टडी कर रहे हैं कि च्यवनप्राश खाने से क्या इम्यून सेल में बदलाव होता है। साथ ही यह किन व्यक्तियों में ज्यादा कारगर है और किनमें कम कम कारगर है। अगर किसी में कोई बदलाव नहीं हो रहा तो इसका क्या कारण हो सकता है। दो महीने बाद इस शोध के परिणाम सामने आएंगे।
डा. सतेंद्र ने बताया कि यह अध्ययन दो समूहों में किया जा रहा है। एक में सामान्य लोग हैं। दूसरे समूह में मधुमेह पीडि़त हैं। इस अध्ययन का पूरा रूप-स्वरूप समान है, सिवाय इसके कि मधुमेह रोगियों को शुगर फ्री च्यवनप्राश दिया जा रहा है। यह दोनो तरह के च्यवनप्राश आयुष मंत्रालय की ओर से ही शोध के लिए भेजे गए हैं। डायबिटीज के मरीजों को कोरोना में सबसे ज्यादा खतरा था और ऐसे मरीजों की इम्युनिटी पहले से ही कमजोर भी होती है। ऐसे में मधुमेह रोगियों पर च्यवनप्राश के प्रभाव के ²ष्टिकोण से भी यह अध्ययन महत्वपूर्ण है।
डा. सतेंद्र के अनुसार, यह अध्ययन कई और पहलुओं से भी बहुत आवश्यक है। दरअसल, इम्युनिटी बढ़ाने के नाम पर कई दवाएं और नुस्खे दिये जा रहे हैं, जिनसे कई तरह के दुष्प्रभाव होते हैं। उनकी तुलना में च्यवनप्राश कहीं ज्यादा सस्ता और दुष्प्रभावों से परे है। ऐसे में यदि तीन माह के इस शोध में क्लीनक्ली यह साबित होती है कि कोरोना या दूसरी बीमारियों में च्यवनप्राश इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर कारगर है तो मरीजों को कई बीमारियों से बचाया जा सकता है।