पुण्य तिथि पर याद किये गए कारगिल शहीद सुनील जंग, विरासत में मिली थी वीरता

कारगिल युद्ध मे दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले लखनऊ के राइफलमैन सुनील जंग को उनकी 22वीं पुण्यतिथि पर शनिवार को याद किया गया। परिवारीजनों ने दीप जलाकर राइफलमैन सुनील जंग को श्रद्धांजलि दी गई।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 12:29 PM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 07:49 PM (IST)
पुण्य तिथि पर याद किये गए कारगिल शहीद सुनील जंग,  विरासत में मिली थी वीरता
शहीद सुनील जंग 15 मई 1999 को कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद।

लखनऊ, जेएनएन। कारगिल युद्ध मे दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले राइफलमैन सुनील जंग को उनकी 22वी पुण्यतिथि पर शनिवार को याद किया गया। दीप जलाकर राइफलमैन सुनील जंग को श्रद्धांजलि दी गई। वे महज आठ साल की उम्र में ही स्कूल की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में जवान की वर्दी पहन सुनील ने इसकी झलक दिखा दी थी। सुनील 16 साल के हुए तो घरवालों को बिना बताए सेना में भर्ती हो गए थे।

राइफलमैन सुनील जंग दादा और पिता की तरह सेना की।इंफेंट्री के जवान बनना चाहते थे। महज आठ साल की उम्र में ही स्कूल की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में जवान की वर्दी पहन सुनील ने इसकी झलक दिखा दी थी। सुनील 16 साल के हुए तो घरवालों को बिना बताए सेना में भर्ती हो गए। सुनील को उनके पिता नर नारायण जंग की 11 गोरखा रेजिमेंट में तैनाती मिली। कारगिल युद्ध से कुछ दिन पहले सुनील अपने घर लखनऊ आये थे। इस बीच यूनिट से बुलावा आ गया। सुनील ने मा से कहा था कि अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा। राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए। सूचना इतनी ही मिली थी कि कुछ घुसपैठिए भारतीय सीमा के भीतर गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गए हैं। तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग ने दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया। सुनील लगातार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे। इस बीच 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं। अंतिम सांस तक सुनील दुश्मनों का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

मां बीना महत ने सुनील को फौजी ड्रेस दिलाई: सुनील का मन इससे भी नहीं भरा। सुनील फौजी ड्रेस के साथ एक बंदूक के लिए भी मांग करने लगा। मां ने प्लास्टिक की बंदूक दिलाई। इसके बाद प्रतियोगिता के दिन सुनील एक के बाद एक कई देशभक्ति गीतों पर अपना शानदार प्रदर्शन करता रहा। वहां जब सुनील ने कहा कि मैं अपने खून का एक-एक कतरा देश की रक्षा के लिए बहा दूंगा। यह सुन लोग रोमांचित हो गए थे।

यही आठ साल का सुनील जब 16 साल का हुआ तो एक दिन घरवालों को बिना बताए ही सेना में भर्ती हो गया। घर आकर सुनील ने बताया कि मां मैं भी पापा और दादा की तरह सेना में भर्ती हो गया हूं। मुझे उनकी ही 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में तैनाती मिली है। अब मेरा बचपन का वर्दी पहनने का सपना पूरा हो गया। मां बीना महत बताती हैं कि कारगिल में जाने से पहले सुनील घर आया था। कुछ ही दिन रुका था कि यूनिट से बुलावा आ गया।

बोला था कि मां अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा: राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए। सूचना इतनी ही मिली थी कि कुछ घुसपैठिए भारतीय सीमा के भीतर गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गए हैं। तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करता रहा। वह लगातार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहा था कि 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं। इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करता रहा। तब ही ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की एक गोली सुनील के चेहरे पर लगी और सिर के पिछले हिस्से से बाहर निकल गई। सुनील वहीं पर शहीद हो गया।

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