World Arthritis Day: कोरोना से ठीक होने के बाद जोड़ों के दर्द का अटैक, चपेट में आ रहे हर उम्र के लोग

कोरोना काल के बाद 20 से 30 फीसद व्यक्तियों में जोड़ों में दर्द की शिकायत अधिक पाई गई है। यह बात चिकित्सकों के शोध में सामने आई है। विश्व गठिया दिवस पर दैनिक जागरण ने चिकित्सकों से बीमारी से दूर करने के लिए सावधानी बरतने संबंधी जानकारी ली।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 08:20 AM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 09:45 PM (IST)
World Arthritis Day: कोरोना से ठीक होने के बाद जोड़ों के दर्द का अटैक, चपेट में आ रहे हर उम्र के लोग
लखनऊ में पांच लाख से अधिक व्यक्ति आर्थराइटिस से पीड़ित हैं, वहीं भारत में यह संख्या दस करोड़ है।

लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। कोरोना काल के बाद 20 से 30 फीसद व्यक्तियों में जोड़ों में दर्द की शिकायत अधिक पाई गई है। यह बात चिकित्सकों के शोध में सामने आई है। मंगलवार को यानी बारह अक्टूबर को विश्व गठिया दिवस पर दैनिक जागरण ने चिकित्सकों से बीमारी से दूर करने के लिए सावधानी बरतने और कोरोना काल का गठिया रोग पर प्रभाव से जुड़ी जानकारी ली। 

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गठिया रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ उर्मिला धाकड़ बताती हैं कि गठिया की बीमारी नवजात शिशु से लेकर 60 वर्ष से अधिक की आयु के किसी भी व्यक्ति में हो सकती है। सबसे परेशानी की बात यह है कि इस बीमारी का पूरी तरह से कोई इलाज नहीं है। बस इसे नियंत्रण में किया जा सकता है। वह बताती हैं कि यह दो कारणों से हो सकती है। पहला कारण आनुवंशिक है अर्थात एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में यह बीमारी पहुंचे। इन मामलों में जागरूकता ही सबसे जरूरी उपाय है। दूसरा कारण पर्यावरणीय प्रभावों की वजह से है। कोरोनावायरस संक्रमण काल को इसका उदाहरण समझा जा सकता है। कोरोना काल के बाद 20 से 30 फीसद व्यक्तियों में जोड़ों की शिकायत अधिक देखी गई है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि अपने खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाए, अच्छी डायट ली जाए और जीवन शैली में हो रहे बदलावों का खास ध्यान रखा जाए।

साथ ही यदि जोड़ों से जुड़ी कोई भी परेशानी प्राथमिक तौर पर भी दिख रही हो तो सामान्य डॉक्टरों को दिखाने के बजाय गठिया रोग विशेषज्ञ के पास पहुंचा जाए ताकि समय पर सही कारणों का निदान हो सके। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्पोर्ट्स इंजरी विभाग के प्रोफेसर आशीष कुमार कहते हैैं कि यदि लिगामेंट की चोट और मिनिस्कस इंजरी का इलाज समय पर न करवाया जाए या इस चोट को नजरअंदाज किया जाए तो 50 से 60 वर्ष की आयु में होने वाली गठिया की बीमारी 40 से 45 वर्ष की आयु में भी हो सकती है। प्रोफेसर आशीष कुमार के मुताबिक गठिया कई प्रकार की होती है लेकिन गठिया दिवस का मूल अर्थ ऑस्टियोआर्थराइटिस से है, जो उम्र के साथ आए। उन्होंने बताया कि चोट लगने के कारण मिनिस्कस ( पैर के अंदर मौजूद कार्टिलेज) तथा लिगामेंट की इंजरी हो जाती है। लोग इस इंजरी को नजरअंदाज करते हैं, समय पर जब इन चोटों ( इंजरी) का इलाज नहीं होता,तो आगे चलकर यही अर्थराइटिस का कारण बनते हैं, जिसके कारण 60 वर्ष की आयु में होने वाली परेशानी 45 की उम्र में हो सकती है।

हर दस में से सात व्यक्तियों को होती है गठिया की परेशानीः लखनऊ में पांच लाख से अधिक व्यक्ति आर्थराइटिस से पीडि़त हैं वहीं भारत में यह संख्या दस करोड़ है। आंकड़ों के अनुसार हर दस में से सात व्यक्ति अर्थराइटिस से परेशान होते हैं। यह बातें डॉ संदीप गर्ग ने कहीं। विश्व गठिया दिवस के अवसर पर अर्थराइटिस के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ बारह अक्टूबर को साइकिलथान, विंटेज कार रैली और योग का आयोजन कर रही है।

इस अवसर पर सोमवार को प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। इसमें अर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ के अध्यक्ष डॉक्टर संदीप गर्ग और सचिव डॉ संदीप कपूर मौजूद रहे। डॉक्टर गर्ग ने बताया कि अर्थराइटिस प्रमुख रूप से शरीर के जोड़ों पर असर करता है और इसका प्रभाव एक व्यक्ति के पूरे जीवन पर पड़ता है। कोरोना के संक्रमण काल में गठिया से ग्रसित मरीजों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। अर्थराइटिस से बचाव के बारे में डॉ संदीप कपूर ने कहा कि इसका इलाज प्रत्यारोपण सर्जरी से किया जा सकता है। साथ ही आधुनिक दवाओं के माध्यम से प्रत्यारोपण को भी काफी समय तक टाला जा सकता है। लेकिन इन सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि सही समय पर इसका इलाज किया जाए। 

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