घायल नीलगाय खुद इलाज कराने पहुंची एसजीपीजीआइ, दो दिन से ओपीडी के बाहर डाक्टर का इंतजार

लखनऊ के एसजीपीजीआइ में खुद अपना इलाज कराने ओपीडी पहुंची एक नील गाय लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी है। घायल नीलगाय को अभी तक इलाज नहीं मिल सका है। जबकि वह ओपीडी के बगल एक स्थान पर खड़े होकर डाक्टरों की ओर उम्मीद भरी नजरों से निहारती है।

By Dharmendra MishraEdited By: Publish:Tue, 07 Dec 2021 01:51 PM (IST) Updated:Tue, 07 Dec 2021 01:51 PM (IST)
घायल नीलगाय खुद इलाज कराने पहुंची एसजीपीजीआइ, दो दिन से ओपीडी के बाहर डाक्टर का इंतजार
घायल होने के बाद एसजीपीजीआइ ओपीडी के बगल खड़े होकर दो दिन से इलाज का इंतजार करती नीलगाय।

लखनऊ, [विनय तिवारी] । लखनऊ के संजयगांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) में खुद अपना इलाज कराने ओपीडी पहुंची एक नील गाय लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि घायल नीलगाय को अभी तक इलाज नहीं मिल सका है। जबकि वह घायल अवस्था में ओपीडी के बगल एक स्थान पर खड़े होकर डाक्टरों की ओर उम्मीद भरी नजरों से निहारती है तो कभी निराश होकर आंखों में आंसू लिए वहीं थककर बैठ जाती है।

पीजीआइ अस्पताल में मौजूद मरीजों और तीमारदारों ने बताया कि नीलगाय दर्द से कराहती है। वह देर तक पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही है। शायद किसी वाहन ने उसे टक्कर मारी है या फिर कहीं भागते हुए गिरने से चोटिल हो गई है। अस्पताल की ओपीडी के बगल नीलगाय दो दिनों से इलाज का इंतजार कर रही है, मगर किसी ने उसके जख्मों पर मरहम नहीं लगाया है। तीमारदारों ने नीलगाय की तड़प और उसकी दुर्दशा को देखकर एसजीपीजीआइ के सुरक्षाकर्मियों सहित जीव आश्रय और नगर निगम को भी सूचना दी, लेकिन दो दिन का वक्त गुजर जाने के बाद भी घायल पड़ी नील गाय को न तो इलाज मिला और ना ही इसे सुरक्षित स्थान पर भेजा गया।

बेजुबान को टक्कर मार देते हैं वाहनः चारे और भोजन पानी की तलाश में भटकती नीलगाय पीजीआइ थाना क्षेत्र में अक्सर घायल होती रहती हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कई बार सड़क पर तो कई बार पीजीआइ परिसर के अंदर ही आने-जाने वाले लोगों के वाहन बेरहमी से बेजुबानों को टक्कर मार जाते हैं। ऐसे में वह घायल होकर तड़पने को मजबूर रहती हैं। घायल होने के बाद उन्हें चारा पानी भी नसीब नहीं होता। लिहाजा वह मदद की आस में किसी एक स्थान पर पड़ी रहती हैं या फिर कुछ दिनों बाद दम तोड़ देती हैं। अगर वह भटकते हुए गांवों की तरफ पहुंच जाती हैं तो लोग दया कर उन्हें कुछ चारा दे देते हैं।

chat bot
आपका साथी