...ताकि मंच पर थिरकती रहे जिंदगी, कोरोना काल में डिजिटल हुई कला की प्रस्तुति
लखनऊ में कोरोना काल में प्रस्तुतियों को लेकर कलाकारों ने दिए सुझाव डिजिटल प्रस्तुतियों की ओर कलाकारों ने किया रुख।
लखनऊ [कुसुम भारती]। किसी कलाकार के बेहतरीन संवाद या अभिनय पर जब उसका उत्साह बढ़ाने के लिए दर्शक तालियां बजाते हैं, तो उसमें ऊर्जा का संचार दोगुने वेग से होता है, मगर कोरोना ने स्थितियां बदल दी हैं। मंचीय कार्यक्रमों पर रोक लगने से कई कलाकारों को मुफलिसी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, सुविधा संपन्न कलाकारों से इतर बात करें, तो ऐसे तमाम कलाकार हैं, जो इस वक्त परेशानियों में जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। मगर, कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जिन्होंने खुद को और अपनी कला को जीवित रखने के नए रास्ते भी तलाशे और एक बार फिर निकल पड़े दुनिया को यह बताने कि 'जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं'। जीहां, राजधानी में अभिनय, नृत्य, संगीत, नुक्कड़ नाटक, कठपुतली और रंगमंच जैसी विभिन्न विधाओं से जुड़े कलाकार खुद को व अपनी कला को जिंदा रखने के लिए डिजिटल मंच का रुख कर रहे हैं। वहीं, रोजी-रोटी चलाने की जद्दोजहद में लगे कलाकारों को इस महामारी में तनाव से बचाने व सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए अलग-अलग विधाओं से जुड़े शहर के कुछ कलाकारों ने साझा किए अपने विचार।
लखनऊ ही नहीं न्यूजीलैंड तक दर्शकों ने सराहा
लोक गायिका कुसुम वर्मा कहती हैं, समस्याओं पर रोते रहना कोई समाधान नहीं है। संकट कैसा भी हो उससे बाहर निकलना और नए रास्ते तलाशने में ही समझदारी होती है। मंचीय प्रस्तुतियों पर भले ही रोक लगी हो लेकिन डिजिटल प्लेटफार्म कलाकारों को पहचान दिला रहा है। लॉकडाउन से अब तक तमाम लाइव प्रोग्राम फेसबुक पर चुकी हूं। मगर सबसे ज्यादा खुशी उस दिन हुई जब अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के मौके पर मैंने भगवान राम के भजनों का कार्यक्रम प्रस्तुत किया। जिसे लखनऊ ही नहीं दिल्ली, मुंबई समेत विदेश तक देखा गया। न्यूजीलैंड के एमपी कंवलजीत सिंह बख्शी ने मेरी प्रस्तुति पर जब अपने कमेंट दिए तब लगा कि जब मैं प्रेक्षागृह में प्रोग्राम करती थी तब ज्यादा से ज्यादा 500 दर्शक देखते थे, वो भी सिर्फ लखनऊ के होते थे। मगर फेसबुक पर दुनियाभर के हजारों- लाखों लोग हमारी कला को देखते हैं। अब तो दिल्ली, मुंबई से मेरे पास प्रोग्राम करने के ऑफर भी आ रहे हैं। अब तो मैंने भी अपना यूट्यूब चैनल बना लिया है। इसलिए मेरा सुझाव यही है कि कलाकार निराश होने के बजाए अपनी कला को नए प्लेटफार्म तक ले जाएं।
कम गैदरिंग में प्रस्तुति की मिले इजाजत :
पपेट कलाकार मेराज आलम कहते हैं, मैं अभिनय, रंगमंच, मूर्तिकला व कठपुतली विधा से जुड़ा हुआ कलाकार हूं इसलिए मेरे पास सर्वाइव करने के कई विकल्प हैं। मगर कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जो सार्वजनिक रूप से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उनके सामने जीवन-यापन का बड़ा प्रश्न है। हाल ही में एक बड़े कलाकार ने मुफलिसी व बीमारी से दम तोड़ दिया। वहीं, दिल्ली की एक लोक कलाकार ने हमारे ग्रुप पर सूचना दी कि लॉकडाउन से अब तक जो भी बचत थी सब खत्म हो गई। मकान मालिक ने सामान घर से बाहर फेंक दिया है। ऐसे में, मजबूर होकर उसे अन्य कलाकारों से मदद मांगनी पड़ रही है। मेराज कहते हैं, इस वक्त कलाकार ही नहीं प्रेक्षागृह में लाइव प्रोग्राम देखने के शौकीन दर्शक भी परेशान हैं। कलाकार बहुत स्वाभिमानी होता है, उसे दान नहीं सिर्फ कद्रदान और सम्मान चाहिए होता है। इसलिए मेरा सुझाव है कि इस महामारी के दौर में सरकार कोई ऐसी एडवाइजरी बना दे जिसके तहत गाइडलाइन का पालन करते हुए कलाकार छोटी-छोटी गैदरिंग में अपनी प्रस्तुति दे सकें। इसके अलावा सरकार इंटरेस्ट फ्री लोन की व्यवस्था कर दे जिसे यह कहकर कलाकार को दे कि जब स्थितियां सामान्य हो जाएं तो उसे धीरे-धीरे चुका दे। एक कलाकार अपने देश व प्रदेश की संस्कृति का वाहक होता है इसलिए सरकार कलाकारों के लिए इतना तो कर ही सकती है।
ऑनलाइन शुरू किए जाएं सरकारी कार्यक्रम :
कवियित्री व गायिका मालविका हरिओम कहती हैं, मेरी निजी राय यह है कि कलाकार चाहे साधन संपन्न हो या न हो, मगर उसको प्राश्रय देने का काम सरकार का होना चाहिए। इसके लिए सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। पुराने जमाने में बादशाहों व राजाओं के दरबार में कलाकारों को संरक्षण दिया जाता था। यहां तक कि उनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था भी की जाती थी। ऐसा शायद इसलिए भी होता था कि कहीं कला विलुप्त न हो जाएं। मेरी अपील है कि सरकारी व अन्य बड़े संस्थान आगे आकर ऑनलाइन कार्यक्रम कराएं और कलाकारों को भले कम पेमेंट दें, मगर उनको कुछ काम दें। सबके लिए एक प्लेटफार्म बना दें, ताकि कलाकारों की कला के साथ उनकी जिंदगी भी बच सके। जब तक वैक्सीन नहीं आती तब तक ऑनलाइन सरकारी कार्यक्रम कराए जाएं।
ऑनलाइन मंच पर बच्चों को सुना रहें कहानियां :
एंकर जितेश श्रीवास्तव कहते हैं, जब भी इंसान की जिंदगी में कोई मुश्किल आती है तो उसके सामने दो विकल्प होते हैं या तो उससे डरकर भाग जाए या फिर उसका डटकर सामना करे। कोरोना भी कुछ ऐसी चुनौती है जिससे हमें डरना नहीं है बल्कि इस चुनौती को किस तरह से अवसर में बदल सकते हैं, हमें यह सोचना है। इस समय हमें मानसिक, शारीरिक व आत्मिक रूप से मजबूत होने की जरूरत है। जिसके लिए मैं मेडिटेशन, योग और कुछ लेखन का कार्य करता हूं। एक कलाकार के लिए उसकी ऑडियंस का प्यार और तालियां बहुत मायने रखती हैं। मैं भी स्टेज कार्यक्रमों को मिस करता हूं। जब दर्शक सामने होते थे और उनकी प्रतिक्रिया देखने को मिलती थी पर मुश्किल के इस दौर ने मुझे डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से न सिर्फ अपने शहर के बल्कि दुनियाभर के लोगों से जुड़ने का अवसर दिया। मैं बच्चों को ऑनलाइन कहानी सुनाता हूं। लखनऊ के नवाबों के दिलचस्प किस्सों को लेकर एक कार्यक्रम 'वाह नवाब वाह' बना रहा हूं जो शीघ्र ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होगा।
तनाव से निकालने में मददगार बना इंटरनेट :
रंगमंच कलाकार व अभिनेता महेशचंद्र देवा कहते हैं, पिछले पांच महीनों के हालातों को देखते हुए भारतभर में मंचीय कलाकारों के साथ आर्थिक स्थितियां बद से बदतर हुई हैं। इन्हीं हालातों को मद्देनजर कलाकारों ने कुछ नए आयामों को रोजी-रोटी तलाशने का जरिया बनाया जिसमें इंटरनेट सबसे सशक्त माध्यम है। जिसके जरिए हम कलाकारों ने रंगमंच को बच्चों, बड़ों, युवाओं और महिलाओं के बीच में ले जाने का निर्णय लिया। हमने बाल रंगमंच को प्रोत्साहन देने का फैसला लिया। इस वक्त मेरा प्रयास है कि बच्चों को बाल रंगमंच का यूट्यूब चैनल बनाकर प्रतिभाओं को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास है।
जनता को जागरूक करने का जरिया है नुक्कड़ नाटक:
नुक्कड़ नाटक कलाकार नागपाल कहते हैं, मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से पुरातत्व की पढ़ाई के साथ ही थिएटर किए, फिल्में कीं और तकरीबन डेढ़ दर्जन नुक्कड़ नाटक खुद लिखें और उनका विधिपूर्वक मंचन भी किया। मेरा खाना-पीना, ओढ़ना-बिछौना सब नाटक ही हैं। नुक्कड़ नाटक एकमात्र ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसके जरिए कलाकार जनता के बीच जाकर न सिर्फ अपनी बात कहते हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों के प्रति उन्हें जागरूक भी करते हैं। इसी से कलाकार अपना जीवन-यापन भी करता था, लेकिन कोरोना काल में कलाकार इस आस में खाली बैठे हैं कि कहीं से कोई तो काम मिल जाए। सरकार हमारी भी परेशानियों को समझे। जिनके पास इंटरनेट, स्मार्टफोन नहीं हैं, वे कलाकार कहां जाएं।
शारीरिक दूरी के साथ मिले कार्यक्रम की अनुमति:
लोक गायक दीपक सिंह कहते हैं, मैं बच्चों को संगीत की ट्यूशन देता हूं। अब तो छोटे-छोटे प्रोग्राम मिलने भी शुरू हो गए हैं। बहुत बड़े स्तर पर तो नहीं पर छोटे स्तर पर लोगों ने अपने घरों में शारीरिक दूरी के साथ कार्यक्रम कराने शुरू कर दिए हैं। सभी को मालूम है कि कोविड-19 अभी हमारे साथ बहुत दिनों तक रहने वाला है इसलिए सरकार ने जिस प्रकार हर क्षेत्र में सावधानियों के साथ कार्य करने की अनुमति दी है। उसी प्रकार कलाकारों को भी अनुमति अनलॉक की गाइडलाइंस के अनुसार दे देनी चाहिए। सामाजिक दूरी व सभी प्रकार की सावधानियों के साथ पब्लिक कार्यक्रमों को यदि अनुमति मिलेगी तो छोटे कलाकारों का भी कुछ भला होगा।
सूचना विभाग में बनाई जाए कलाकारों की साइट :
लोक संस्कृति शोध संस्थान में शोध एवं प्रकाशन अधिकारी एसके गोपाल कहते हैं, भले ही यह संकटकाल है, मगर जल्द कटेगा। मगर तब तक कलाकारों के जीवन-यापन के लिए कोई जरिया जरूर बनाया जाए। कलाकारों के करीब 1200 विभिन्न दल सूचना विभाग में पंजीकृत हैं, उनको वर्चुअल मंच मिलना चाहिए। सूचना विभाग की ही एक साइट बना दी जाए ताकि ये कलाकार अपने-अपने क्षेत्रों में सरकार की योजनाओं व अन्य कार्यक्रमों को प्रस्तुत कर सकें।