Ayodhya Synod: अयोध्या में धर्मसभा के नाम पर मंदिर निर्माण के लिए शक्ति प्रदर्शन की तैयारी

25 नवंबर को होने वाली अयोध्या धर्मसभा के लिए तैयारियां हो रहीं है। भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना समेत हिंदू संगठन की धर्मसभा में बड़ी भीड़ जुटाने के लिए सक्रिय हैं।

By Nawal MishraEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 07:04 PM (IST) Updated:Wed, 21 Nov 2018 02:29 PM (IST)
Ayodhya Synod:  अयोध्या में धर्मसभा के नाम पर मंदिर निर्माण के लिए शक्ति प्रदर्शन की तैयारी
Ayodhya Synod: अयोध्या में धर्मसभा के नाम पर मंदिर निर्माण के लिए शक्ति प्रदर्शन की तैयारी

जेएनएन, लखनऊ। 25 नवंबर को होने वाली अयोध्या धर्मसभा के लिए तैयारियां हो रहीं है। भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना समेत हिंदू संगठन धर्मसभा में बड़ी भीड़ जुटाने के लिए सक्रिय हैं। पूरे प्रदेश में 'चलो अयोध्या संकल्प बाइक रैली' जैसे अनेक कार्यक्रम हो चुके हैं। शिवसेना मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग के साथ उद्धव ठाकरे के पचास हजार के साथ रामनगरी पहुंचने का दावा कर चुकी है। मंदिर निर्माण मुद्दे पर तेजी से गर्माते माहौल ने अयोध्या को शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बना दिया है। इस सक्रियता पर बाबरी पक्षकार इकबाल अंसारी ने सवाल उठाया है। उनके बयान के मद्देनजर ध्यान देने योग्य है कि केंद्र और यूपी में भाजपा की सरकार है। विवाद अदालत में विचाराधीन है। मंदिर के पत्थर तराशी का काम जारी है। निर्माण को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं है। ऐसे में धर्मसभा के नाम पर भीड़ जुटाना कुछ अलग संकेत देता है।

कैसा होगा राम मंदिर का स्वरूप

 

अयोध्या में प्रस्तावित रामलला मंदिर 270 फीट लंबा, 135 फीट चौड़ा तथा 125 फीट ऊंचा है। दो मंजिला मंदिर के प्रत्येक तल पर 106 स्तंभ लगने हैं। भूतल के स्तंभ 16.5 फीट ऊंचे हैं। इन स्तंभों के ऊपर तीन फीट मोटे पत्थर की बीम और एक फीट मोटे पत्थर की छत होगी। ऊपर की मंजिल के स्तंभ 14.5 फीट ऊंचे हैं। इसके बाद बीम, छत एवं शिखर संयोजित होगा। मंदिर की दीवारें छह फीट मोटे पत्थर की होंगी तथा चौखट सफेद संगमरमर का होगा। 25 नवंबर को प्रस्तावित धर्मसभा के पहले प्रथम तल की पत्थर तराशी का काम पूरा किए जाने के दावे किए जा रहे हैं।

मंदिर समर्थकों का जमावड़ा 

धर्म सभा और जनसंवाद के नाम पर राममंदिर निर्माण समर्थकों का जमावड़ा होगा। शिवसेना और अन्य हिंदूवादी संगठनों के साथ विश्व हिंदू परिषद भी अपनी ताकत दिखाने को मैदान में उतर आयी है और कानून बनाकर राममंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाया जा रहा है। विहिप और शिवसेना, दोनों ही संगठनों की कमान अब पुराने हाथों में नहीं है। विहिप के पास अब प्रवीण तोगडिय़ा और ऋतंभरा जैसे वक्ता नहीं हैं। गुटों में बंटी शिवसेना भी उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में कुछ कर दिखाने का मन बनाए है। राज्यसभा सदस्य संजय राउत करीब एक सप्ताह से डेरा डाले हैं। राउत का कहते है कि बाबरी ढांचा गिराने में शिवसेना आगे रही और मंदिर निर्माण में भी शिवसैनिकों की भूमिका अहम होगी। उद्धव 24 नवंबर को अयोध्या पहुंचेंगे और 25 तक रहेंगे। महंत नृत्य गोपाल दास की मौजूदगी में 24 को सरयू आरती होगी और उद्धव 25 को सुबह नौ बजे राम लला के दर्शन करेंगे। गुलाब बाड़ी में जनसंवाद होगा। वातावरण गर्माने के लिए विवादित पोस्टरों की भरमार है। अयोध्या व आसपास के अधिकतर होटल व धर्मशाला शिवसैनिकों ने बुक करा दिए है।

विहिप के साथ सहयोगी संगठन भी

अयोध्या में 25 को विश्व हिंदू परिषद की बड़ी धर्मसभा होगी। परिक्रमा मार्ग स्थित बड़े भक्तमाल की बगिया में प्रस्तावित धर्मसभा को सफल बनाने में विहिप के साथ राष्ट्रीय सेवक संघ के अन्य संगठन भी जुटे है। विहिप के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय 25 नवंबर की धर्मसभा की सफलता के लिए वहां डेरा डाले हुए हैं। उसी दिन अयोध्या के अलावा देश में अन्य 500 जगहों पर भी धर्मसभाएं की जाएंगी। नागपुर और बेंगलुरु की सभाएं बड़ी होंगी। अयोध्या की धर्मसभा में एक लाख लोगों की भीड़ जुटाने के लिए भाजपा के प्रमुख नेता भी जुटे हैं।

नैमिषारण्य से पहुंचेंगे साधु संत

विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के तत्वावधान में नैमिषारण्य के संत समाज से व्यापक जनसंपर्क किया गया। सभी संत, महात्माओं से 25 नवंबर को अयोध्या में होने वाली धर्मसभा के लिए अपने आश्रमों से कूच करने के लिए निवेदन किया गया। सीतापुर से जाने वाले दल का जगदाचार्य देवेंद्रानंद सरस्वती महाराज सभी का नेतृत्व करेंगे। उनके साथ महंत भरत दास पहला आश्रम अपने डंके के साथ रवाना होंगे। उनके साथ सभी 150 वेद पाठी ब्राह्मण तथा साधु संत वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए रवाना होंगे। महंत बजरंग दास हनुमानगढ़ी, रामानुज कुमारी बालाजी मंदिर, शांति देव त्रिपाठी नारदानंद आश्रम, स्वामी विद्यानंद सरस्वती, मुन्ना लाल माली समेत सभी संत समाज तथा विहिप बजरंग दल के कार्यकर्ता 1100 की संख्या में अयोध्या जाएंगे। पूर्व सांसद विनय कटियार ने फैजाबाद के मिल्कीपुर विधानसभा समेत कई स्थानों पर दौरा कर लोगों को धर्मसभा में चलने के लिए कहा। मिल्कीपुर विधायक बाबा गोरखनाथ ने कहा कि मंदिर निर्माण में मुस्लिम नहीं विपक्ष बाधक है। भगवान राम ने 14 साल के वनवास के समय भी मर्यादा नहीं छोड़ी। हमारी सरकार भी इसी ढर्रे पर चल रही है। इसी बीच विहिप बजरंग दल और भाजपा नेताओं का प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्से में जनसंपर्क कर लोगों से अयोध्या चलने की अपील करने का क्रम जारी रहा।

मंदिर के लिए पत्थर तराशी का काम

अयोध्या में 1991 से संचालित रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला में पत्थर तराशी का काम वर्षों से चल रहा है। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा कहते हैं कि न्यास कार्यशाला मंदिर निर्माण के संकल्प का प्रत्यक्ष और महान परिचायक है, इसको देखते मंदिर निर्माण का उद्यम फलीभूत होने में अधिक देर नहीं है। कार्यशाला प्रभारी भी मंदिर निर्माण के लिए तैयार होने का दावा करते हैं।

मुस्लिमों को डराना चाहते विहिप और शिवसेना

शिवसेना एवं विहिप के प्रस्तावित कार्यक्रमों के विरोध में आयोजित सभा में शिरकत करने आए बाबरी ढांचे के पक्षकार मो. इकबाल अंसारी ने अयोध्या में भीड़ जुटाने के लिए शिवसेना और विहिप पर सवाल खड़ा किया और कहा कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है और विवाद अदालत में विचाराधीन है। ऐसे में अयोध्या में भीड़ जुटाने वाले लोग क्या मुस्लिमों में भय पैदा करना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा मंदिर के लिए कानून बनाना चाहती है तो बनाए। हमें कोई एतराज नहीं है। हम कानून का आदर करने वाले लोग हैं पर देश का अमन-चैन सुनिश्चित रहना चाहिए। कोई भी मुसलमान कभी फसाद नहीं चाहता, हम देश का नुकसान नहीं चाहते हैं। 

अयोध्या मामले में कब कब क्या हुआ  सनातन धर्मावलंबियों की पौराणिक जानकारियों के अनुसार अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है। उसी जगह पर बाबर ने 1528 में मस्जिद का निर्माण करवाया। सनातनी कहते हैं कि यहां बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया इससे मसला वर्षों से विवादित है। इसको लेकर सबसे पहले 1853 में यहां सांप्रदायिक दंगे हुए। विवाद शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने तार की बाड़ से घेराबंदी कर विवादित स्थल के बाहर और अंदर दोनों धर्मों के लोगों को पूजा-नमाज की इजाजत दे दी। 1885 में सर्वप्रथम महंत रघुवर दास ने राममंदिर निर्माण की मांग उठाई और फैजाबाद की अदालत में विवादित ढांचे के निकट मंदिर निर्माण के लिए अपील दायर की। 1949 में सनातनियों ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रखकर पूजा शुरू की, इससे मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने ताला लगवा दिया। 1950 में फैजाबाद अदालत में पूजा के लिए विशेष इजाजत मांगी गई। उसी साल महंत परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा अर्चना जारी रखने के लिए मुकदमा दायर किया। निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांरित करने लिए अपील दायर की। वर्ष 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड भी अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए कानूनी लड़ाई की जंग में कूद पड़ा और मुकदमा दायर कर पक्षकार बन गया। विश्व हिंदू परिषद भी अब अयोध्या विवाद में शामिल है। विहिप ने विवादित स्थल का ताला खोलने और जन्मभूमि को स्वतंत्र कर मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। 1984 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने ताला खोलकर राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने और वहां एक भव्य मंदिर बनवाने के लिए एक समिति का गठन किया गया। वर्ष 1985 में तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदओं को पूजा की इजाजत दी। इसके बाद मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की। वर्ष 1989 से अयोध्या मंदिर मुद्दा राजनीतिक हो गया और विश्व हिंदू परिषद के आंदोलन को भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन देकर राम मंदिर आंदोलन को तेज कर दिया।

  वर्ष 1989 में राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद के निकट राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास की इजाजत दे दी। राजीव गांधी के बाद राम मंदिर मुद्दा भाजपा ने लपक लिया और 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली। इस यात्रा के बाद देश में दंगे भड़क गये। 1990 में रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया। इस गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया।

  अक्तूबर 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित स्थल के आसपास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।  छह दिसंबर 1992 को हजारों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी ढांचे को गिराकर एक अस्थायी मंदिर बना दिया। इस घटना के बाद  देशव्यापी सांप्रदायिक दंगे हुए। विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना के बाद 1992 में लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।  2002 में अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अयोध्या विभाग शुरू किया। वर्ष 2002 के अप्रैल माह में अयोध्या के विवादित स्थल पर हक को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। यूपी हाईकोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने अयोध्या में खुदाई की। इससे मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण मिले लेकिन मुसलमानों ने स्वीकार नहीं किया।  वर्ष 2003 में अदालत ने विवादित ढांचा गिराने के लिए उकसाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित सात नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया। गठन के 17 साल बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 2009 में सौंपी। 30 सितंबर 2010 को यूपी हाईकोर्ट ने विवादित स्थल तीन हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा रामलला, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को देने का आदेश सुनाया। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर नौ मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल 2017 को ढांचा गिराने के लिए उकसाने वाले लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती सहित सात के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट अब अयोध्या के विवादित ढांचा से जुड़े दीवानी मामले की सुनवाई चल रही है।

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