Hathras Case: पुलिस की लापरवाही से जन्मा एक और निर्भया कांड, खाकी की लापरवाही पड़ी पीड़ितों पर भारी
Hathras Case उत्तर प्रदेश के हाथरस में दिल्ली के निर्भया कांड जैसी वारदात ने एक बार फिर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिए। जिस प्रकार से अपराधी बेखौफ वारदात को अंजाम दे रहे हैं कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है।
लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के हाथरस में दिल्ली के निर्भया कांड जैसी वारदात ने एक बार फिर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिए। जिस प्रकार से अपराधी बेखौफ वारदात को अंजाम दे रहे हैं, कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है। हाथरस की निर्भया के साथ जो हुआ, उसे लेकर पूरे देश में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। वह युवती 15 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ती रही और आखिरकार मंगलवार सुबह उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मरने से पहले हाथरस की निर्भया ने पुलिस को आरोपियों के नाम बताए। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया, लेकिन इस जघन्य घटना ने एक बार फिर पुलिस की लापरवाही को उजागर कर दिया है।
उन्नाव में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के विरुद्ध एक युवती प्रार्थनापत्र लेकर भटकती रही और थाने से लेकर अफसरों तक कार्रवाई के बजाए झूठा दिलासा देते रहे। विधायक के दबाव में पुलिस ने जब कार्रवाई का एक कदम तक नहीं बढ़ाया तो हारकर परिवार को लखनऊ आकर आत्मदाह का प्रयास करना पड़ा, जिसके बाद पुलिस अफसर जागे और फिर उन्नाव कांड में किस तरह आरोपित विधायक को सीबीआइ ने उनके अंजाम तक पहुंचाया, यह किसी से छिपा नहीं है। हाथरस में दबंगों से पीड़ित युवती और उसके परिवार के साथ जिस तरह का व्यवहार हुआ, उसने खाकी की हीलाहवाली की वही तस्वीर एक बार फिर सामने ला दी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिला अपराध पर अंकुश के लिए दुराचारियों के चौराहों पर पोस्टर चस्पा करने का ऐलान तक कर चुके हैं। पुलिस की हीलाहवाली को दुरुस्त करने के लिए ही हर जिले में नोडल अधिकारी की नियुक्ति कर उनसे फीडबैक लेने की व्यवस्था भी की गई थी। शासन के इन प्रयासों के बाद भी थाना स्तर पर पुलिस का रवैया बदलता नजर नहीं आ रहा। खासकर किसी संगीन घटना के बाद उसे दबाने या झूठा साबित करने की मानसिकता से पुलिस बाहर नहीं आ पा रही है।
पूर्व डीजीपी और उत्तर प्रदेश एससी-एसटी आयोग के पूर्व अध्यक्ष बृजलाल कहते हैं कि आंकड़ों को कम करने से अपराध कभी कम नहीं होता। जब पुलिस घटनाओं को छिपाने का प्रयास करती है तो अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं। वह कहते हैं कि समाज में पुलिस व कानून-व्यवस्था के प्रति क्या छवि है, यह बेहद महत्व रखता है। वह दुष्कर्म पीड़िता के पार्थिव शरीर का बिना परिवारीजन की अनुमति के रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार किए जाने को भी पूरी तरह गलत मानते हैं।
पूर्व डीजीपी ऐके जैन भी थानों पर एफआइआर दर्ज करने में हीलाहवाली के घुन को दूर करने के लिए नजीर कार्रवाई की पैरवी करते हैं। कहते हैं कि ऐसे पुलिसकर्मियों के निलंबन के साथ ही कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, जो दूसरे पुलिसकर्मियों में संदेश दे। सीओ व एएसपी की भूमिका भी तय की जानी चाहिए।
पुलिस की पोल खोलते कुछ और मामले मेरठ में रोडवेज बस में सामूहिक दुष्कर्म की घटना के मामले में भी पुलिस की हीलाहवाली सामने आ रही है। घटना के पांच दिन बाद भी महिला का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज नहीं कराया गया है। आरोप है कि साक्ष्यों को जुटाने में लापरवाही की जा रही है। पुलिस घटनास्थल को लेकर अलग बयान दे रही है और बस को भी अब तक कब्जे में नहीं लिया गया है। कानपुर में 26 जुलाई को पनकी क्षेत्र निवासी दुष्कर्म पीड़िता बीटीसी छात्रा ने आरोपितों की गिरफ्तारी न होने से क्षुब्ध होकर फांसी लगा ली। यहीं 10 अगस्त को रायपुरवा निवासी दुष्कर्म पीड़िता किशोरी ने भी पुलिस कार्रवाई न होने से आहत होकर वही कदम उठाया और अपनी जान दे दी। कानपुर पुलिस की दुष्कर्म के संगीन मामलों में लापरवाह रवैये से दो बेटियां अपनी जान दे चुकी हैं, लेकिन दोषी पुलिसकर्मियों पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई। बरेली में आठ मार्च 2018 को मीरगंज में सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता की पुलिस ने पहले सुनवाई नहीं की और पीड़िता के खुदकुशी करने के बाद मुकदमा दर्ज किया गया। यहीं 31 जुलाई 2019 को पड़ोसी की छेड़खानी से तंग युवती ने पुलिस के कार्रवाई न करने से क्षुब्ध होकर अपनी जान दे दी और उसके बाद पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई शुरू की। बरेली में ही ऐसे कई और मामले हैं, जब पुलिस ने थाने से पीड़ित महिलाओं को बैरंग लौटा दिया। समय रहते उनकी सुनवाई नहीं की गई।