Father's Day: औलाद के लिए खुद को आसमान बना लेता है पिता, पढि़ए पिता के त्‍याग और समर्पण के किस्‍से

हर साल जून के तीसरे रविवार को मनाए जाने वाले फादर्स-डे पर आइए जानने की कोशिश करते हैं कि जिन संतानों ने कोरोनाकाल में अपने देव तुल्य पिता को खोया है वे उनके बारे में क्या सोचते हैं।

By Mahendra PandeyEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 10:44 AM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 10:47 AM (IST)
Father's Day: औलाद के लिए खुद को आसमान बना लेता है पिता, पढि़ए पिता के त्‍याग और समर्पण के किस्‍से
कोई भी पीढ़ी हो, उसका पहला हीरो पिता ही होता है

लखनऊ, जेएनएन। पितृत्व दुनिया के सबसे खूबसूरत अहसासों में से एक है। यह पुरुष को पूर्ण करता है। पिता, जो न सिर्फ अपनी संतान को सुरक्षा का अहसास देता है, बल्कि उसकी उड़ान के लिए खुद को आसमान बना लेता है। कोई भी पीढ़ी हो, उसका पहला हीरो पिता ही होता है। अपने इस नायक की छवि और उसके सम्मान की शैली में अंतर हो सकता है, लेकिन वह भाव सदा से अपरिवर्तित रहा है, जो एक पुत्र के मन में पिता के लिए होता है।

हर साल जून के तीसरे रविवार को मनाए जाने वाले फादर्स-डे पर आइए जानने की कोशिश करते हैं कि जिन संतानों ने कोरोनाकाल में अपने देव तुल्य पिता को खोया है वे उनके बारे में क्या सोचते हैं।

तेरा साया साथ होगा...

पिता छोटेलाल चौरसिया का कोरोना काल में निधन हो गया। पिता के जीवन से जो कुछ सीखा वह सबकुछ साए की तरह मेरे साथ है। पहला ऐसा मौका होगा जब पापा मेरे साथ नहीं होंगे। पापा द्वारा पढ़ाया गया अनुशासन का पाठ, मेरी जिंदगी का हिस्सा बना रहेगा। अपने पिता की बदौलत मैं पीसीएस अधिकारी बन सकी। एक छोटी सी नौकरी करके उन्होंने मुझे और मेरे भाई शेखर को पढ़ाया और जब दोनों पीसीएस बन गए तो हम दोनों को देखकर वह भावुक हो उठे, बोले बेटा जीवन एक संघर्ष है जिसकी लड़ाई हर किसी को अकेले लडऩी पड़ती है। पापा मुझे केवल पढ़ाई के लिए ही नहीं कहते थे। आत्मरक्षा के साथ खुद को फिट रखने के लिए भी वह प्रेरित करते थे। पिता का स्थान कभी पूरा नहीं हो सकता। आइ लव यू पापा।

- अंजली चौरसिया, इंदिरानगर

दृढ़ता और ममता दोनों थीं उनमें

मेरे पिता राम प्रसाद हमेशा से ही मेरे आदर्श थे और रहेंगे। वह जागरूक, सामाजिक और हमेशा दूसरों के साथ खड़े रहने वाले इंसान थे। मुसीबत के बावजूद हम सबके साथ एक मजबूत ढाल बनकर रहते थे। वह जीना चाहते थे, पर उन्हें आखिरी समय पर इलाज नहीं मिला। बीते 24 अप्रैल को उनकी कोरोना से मौत हो गई। उनकी सिखाई हर बात याद आती है। उनके अंदर दृढ़ता और ममता दोनों थी। मैं बस यही कहूंगी कि नसीब अच्‍छा होता है, जिसे ऐसे पिता पाने का सौभाग्य मिलता है।

- रितु वर्मा, विकास नगर

बरगद की छांव की तरह थे मेरे पिता

कई जिलों में अधिकारी के रूप में तैनात रहने के बावजूद मेरे पिता आरएन त्रिपाठी ने कभी खुद के अंदर घमंड नहीं आने दिया। वह पिता के साथ एक अच्‍छे दोस्त के रूप में भी हमारे साथ रहे। जीवन के हर रंग को मैने उनके साथ महसूस किया है। नौ मई को उनके निधन के बाद मेरे जीवन के खाली जगह तो कोई नहीं भर सकता, लेकिन उनकी यादें हमेशा बनीं रहेंगी। कहना चाहूंगा कि तेज धूप में बरगद की छांव की तरह थे मेरे पिता। पापा आप हमेशा मेरे दिल में रहोगे।

- मनु त्रिपाठी 

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