कोरोना महामारी से यूपी में किसानों की परेशानी बढ़ी, प्रदेशभर में गहराया खाद का संकट
रबी फसलों की बोवाई के समय खाद की किल्लत बढ़ाने में कोरोना महामारी अहम वजह रही है। वर्ष में खाद की सबसे अधिक मांग रबी के समय होती है इसलिए सहकारी और निजी क्षेत्र में कई माह पहले से ही खाद का स्टाक शुरू होता रहा है।
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। रबी फसलों की बोवाई के समय खाद की किल्लत बढ़ाने में कोरोना महामारी अहम वजह रही है। वर्ष में खाद की सबसे अधिक मांग रबी के समय होती है, इसलिए सहकारी और निजी क्षेत्र में कई माह पहले से ही खाद का स्टाक शुरू होता रहा है लेकिन, इस बार मार्च से जून तक कोरोना की दूसरी लहर प्रभावी होने से अपेक्षित स्टाक नहीं बन सका। जो खाद दुकान और गोदामों में उपलब्ध रही वह गन्ने की बोवाई व खरीफ फसलों में इस्तेमाल हुई। अब मांग व आपूर्ति का अंतर पाटने के लिए खाद की रैक मंगाई जा रही है।
प्रदेश के कई जिलों में किसानों को मांग के सापेक्ष खाद नहीं मिल पा रही है। कृषि विभाग के अफसरों का कहना है कि बोवाई के समय किसान फास्फेटिक खाद ही मांगते हैं। देश में इफको व अन्य कंपनियां डीएपी आदि खाद बनाती हैं। इफको को मार्च से जून तक साढ़े चार लाख टन खाद तैयार करने का लक्ष्य रहा, जो केवल ढाई लाख टन ही हो सका। वजह, कोरोना महामारी के विकट दौर में देश और विदेश में फैक्ट्रियां आदि बंद रही। साथ ही देश में खाद आयात की जाती है, वह भी बोवाई से पहले शुरू हो सका। जो खाद देश में बनती है उसका कच्चा माल विदेश से मंगाया जाता है, उसमें समय लगा।
खाद आपूर्ति का लक्ष्य तय करते ही रबी की बोवाई शुरू हो गई। उसी बीच बारिश हो जाने से जिलों में एक साथ बोवाई हुई और मांग तेजी से बढ़ी। सरकार ने उसी रफ्तार से खाद की रैक मंगवाई। यही वजह है कि पिछले साल 30 नवंबर तक छह लाख 13 हजार टन खाद मिली थी, जबकि इस साल 24 नवंबर तक ही छह लाख 30 हजार टन खाद आ चुकी है और 30 नवंबर तक करीब एक लाख टन और खाद मिलने का दावा किया जा रहा है। यानी कम समय में ही खाद व आपूर्ति के अंतर को पाटा गया है लेकिन, अभी मांग बरकरार है। खाद के नोडल अधिकारी अनिल कुमार पाठक ने बताया कि हर जिले में खाद उपलब्ध है, जहां मांग अधिक है वहां तेजी से आपूर्ति कराई जा रही है। केंद्र सरकार ने अब हर दिन आठ से दस रैक खाद भेजने का आश्वासन दिया है। अगले कुछ दिनों में मांग से अधिक स्टाक होगा।
ऐसे हो रही खाद आपूर्ति
नोट : 23 नवंबर के यह आंकड़ें लाख टन में हैं।