जैविक प्रबंधन से मालामाल होंगे लखनऊ के किसान, केले की खेती का हब बना रहा बख्शी का तालाब

जैविक प्रबंधन और केले के अधिक उत्पादन वाली किस्म का प्रयोग करके किसान मालामाल हो रहे हैं। बख्शी का तालाब व इटौजा में किसानों ने केले की खेती को नकदी खेती का दर्जा देकर साथी किसानों को प्रात्साहित करने कार्य शुरू कर दिया है।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 06:50 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 06:50 PM (IST)
जैविक प्रबंधन से मालामाल होंगे लखनऊ के किसान, केले की खेती का हब बना रहा बख्शी का तालाब
यह कीट अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में तनों में लंबी-लंबी सुरंग बनाकर नुकसान करते हैं।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। जैविक प्रबंधन और केले के अधिक उत्पादन वाली किस्म का प्रयोग करके किसान मालामाल हो रहे हैं। बख्शी का तालाब व इटौजा में किसानों ने केले की खेती को नकदी खेती का दर्जा देकर साथी किसानों को प्रात्साहित करने कार्य शुरू कर दिया है। इस समय केले में गहर निकल रही है इस समय फसल की देखरेख की अधिक आवश्यकता होती है। बख्शी का तालाब के चंद्रभानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य व कृषि विशेषज्ञ डा.सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस समय केले में गहर निकल रही है। खेतों में पोषक तत्व का प्रबंधन कर लेना चाहिए। इस समय 100 ग्राम नत्रजन 150 ग्राम फास्फोरस तथा 100 ग्राम पोटाश के साथ में तीन ग्राम प्रति पौधे की दर से कैल्शियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। पोषक तत्वों को पौधे के पास डालकर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। खरपतवार बिल्कुल नहीं होने चाहिए और पौधों को गहर निकलते समय सहारे की आवश्यकता होती है। 

कीट एवं बीमारियों के लिए करें प्रबंधनः जून में रोपाई की गई फसल पर तना बेधक कीट का प्रकोप अधिक होता है, इसके कीट गहरे लाल रंग से लेकर भूरे रंग के लगभग 25 मिली मीटर लंबे भृंगक होते हैं। इनका मुंह लंबा और चमकीला होता है तथा सिर नुकीला होता है। यह कीट अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में तनों में लंबी-लंबी सुरंग बनाकर नुकसान करते हैं, एक तने में बहुत से भृंगक पाए जाते हैं। क्षतिग्रस्त पौधे मुरझाए हुए दिखाई देते हैं, इनकी बढ़वार कम हो जाती है। जिन केले के पौधों में गहर निकल रही होती है उनके केले छोटे हो जाते हैं और हल्की हवा आने पर वह शीघ्र टूट जाते हैं। इस प्रकार उपज में भारी कमी आ जाती है। इस कीट की मादाएं काफी समय तक जीवित रहती हैं और नवंबर माह के पहले जो मादाएं अंडे देती हैं उन से निकले हुए कैटरपिलर तनो के अंदर काफी समय तक सुसुप्ता अवस्था में पड़े रहते हैं। विशेषज्ञ डा.सत्येंद्र सिंह ने बताया कि इस कीट का समय से समंवित प्रबंधन करने से फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। समय-समय पर केले की बागों में सफाई का कार्य करते रहना चाहिए। सूखी पत्तियां डंठल आदि काटकर निकाल देनी चाहिए। क्षतिग्रस्त पौधों को तने समेत नष्ट कर देना चाहिए। इसके प्रबंधन में जैविक कीटनाशक अधिक प्रभावी होते हैं। इसके लिए ब्यूबेरिया बेसियाना की दो ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में तथा ढाई सौ ग्राम गाय का मूत्र घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। गाय का मूत्र मिला देने से जैविक कीटनाशक की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इस जैविक उत्पाद के प्रयोग से कीट के जीवन चक्र की सभी अवस्थाएं नष्ट हो जाती हैं। यह काफी प्रभावी जैविक फफूंदी जनित उत्पाद है जो फसलों के ऊपर अवशेष भी नहीं छोड़ता और वातावरण को प्रदूषित नहीं करता,जब केले के बागों में एक पौधे के ऊपर अधिकतम दो वीविल दिखना प्रारंभ हो जाएं तो लैम्डा-साईहेलोथ्रिन नामक कीटनाशक की 1.5 एमएल मात्रा को एक लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करना चाहिए। अक्टूबर माह में अधिक तापक्रम एवं आद्रता होने पर उकठा रोग की समस्या अधिक होती है। यह बीमारी फ्यूजेरियम फफूंदी के द्वारा फैलती है, इस बीमारी को पनामा विल्ट भी कहते हैं। इस बीमारी से बचने हेतु जैविक फफूंदी नाशक ट्राइकोडरमा का प्रयोग करना चाहिए। जड़ों के पास 20 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर को मिट्टी में सीधे या गोबर की खाद के साथ मिलाकर जमीन में मिला देना चाहिए जिससे इस बीमारी का प्रबंधन हो जाता है। 

फफूंदीनाशक का करें प्रयोगः बीमारी का अधिक प्रकोप होने पर कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत फफूंदी नाशक की पांच ग्राम मात्रा को 200 ग्राम नीम की खली के साथ मिलाकर प्रति पौधा प्रयोग करना चाहिए, इसे अच्छी तरह से केले के जड़ों के पास गुडांई करके मिला देना चाहिए। पनामा विल्ट बीमारी में बचाओ बहुत जरूरी होता है। इसके लिए सदैव स्वस्थ सकर ( बीज) का प्रयोग करना चाहिए, पौध रोपाई के समय जड़ों में किसी भी प्रकार का कोई भी घाव या खरोच नहीं होनी चाहिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए।

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