दैनिक जागरण की आनलाइन परिचर्चा में बोले विशेषज्ञ, अंक सब कुछ नहीं देंगे-मेधा ही आएगी काम

कोरोना ने विशेषकर बच्चों की पढ़ाई पर भी बहुत असर डाला है। अब जब सरकार ने सभी बोर्ड परीक्षाओं को निरस्त करने का निर्णय लिया तो बच्चों की उलझन और बढ़ गई। विद्यार्थियों की उलझन को सुलझाने के लिए दैनिक जागरण विशेषज्ञों को एक मंच पर लेकर आया।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 10:07 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 10:07 AM (IST)
दैनिक जागरण की आनलाइन परिचर्चा में बोले विशेषज्ञ, अंक सब कुछ नहीं देंगे-मेधा ही आएगी काम
कोरोना संक्रमण ने विशेषकर बच्चों की जिंदगी और उनकी पढ़ाई पर काफी असर डाला है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। कोरोना ने विशेषकर बच्चों की जिंदगी को बहुत प्रभावित किया। उनकी पढ़ाई पर भी इसका असर हुआ। अब जब सरकार ने सभी बोर्ड परीक्षाओं को निरस्त करने का निर्णय लिया तो बच्चों की उलझन और बढ़ गई। विद्यार्थियों की इस उलझन को सुलझाने के लिए दैनिक जागरण विशेषज्ञों को एक मंच पर लेकर आया। बुधवार को ऑनलाइन आयोजन 'समाधान' हुआ। जूम एप पर आयोजित परिचर्चा को फेसबुक पर लाइव भी किया गया। इस मौके पर दैनिक जागरण के संपादक (उप्र) आशुतोष शुक्ल ने कहा कि शिक्षक से ज्यादा आपके बच्चे का हित कोई नहीं चाह सकता। शिक्षक हमारे समाज का सबसे मजबूत आधार हैं। 

बच्चों को नंबर गेम में मत पड़ने दें

कोरोना काल में पिछले डेढ़ साल से बच्चे घर से निकले नहीं है, इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हुआ है। इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बच्चों को सामाजिक जीवन से इस तरह से अलग कर देना, ठीक नहीं है। बच्चे स्कूल जाते थे, उन्हें एक-दूसरे से प्रतियोगिता करने का मौका मिलता था। आइसोलेशन में रहने से बच्चों में तनाव बढ़ा है। खासकर उन बच्चों में जिन्होंने सालभर खूब मेहनत की, पर परीक्षा नहीं दे पाए। कुछ बच्चों ने आशाएं रखी थीं कि हम अच्छे नंबर पाकर किसी बड़े संस्थान में दाखिला पा जाएंगे। ज्यादातर बच्चों को लगा कि परीक्षा न होने से कॅरियर अधर में लटक गया। जो बच्चे तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, उन पर कोरोना काल का असर पड़ा है। उनमें कॅरियर और भविष्य को लेकर तनाव आ गया। बच्चे सोचते हैं, मैं बेहतर कर सकता था, पर प्री बोर्ड के आधार पर नंबर दिए गए। कहीं न कहीं अनकही अपेक्षाओं के कारण भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर देखने को मिला। हमें खुद भी समझना होगा और बच्चों को समझाना होगा कि परेशानी बताकर नहीं आती, जिन चीजों पर नियंत्रण नहीं है, उसको लेकर पैनिक करेंगे तो नुकसान हमारा ही होगा। बहुत सारे स्किल पर काम करने की जरूरत है। बुद्धिमानी को समझदारी में बदलने की आवश्यकता है। हटकर सोचें, रचनात्मकता को बढ़ाएं, धैर्य से काम लें। उन्हें नंबर गेम में नहीं पडऩे देना है। शिक्षक और अभिभावक बच्चों को बताएं कि माक्र्स सब कुछ नहीं देंगे, अंतत: हमारी मेधा ही काम आएगी। - डा. रश्मि सोनी, मनोविज्ञान

भरोसा रखें, बच्चों का अहित नहीं होगा 

हर बोर्ड ने अपना एक प्रारूप निर्धारित किया है। इसमें विशेषज्ञ लगे हैं। भरोसा रखें, बच्चों का अहित नहीं होगा। अगर बच्चा नंबर से संतुष्ट नहीं है तो दोबारा परीक्षा दे सकता है। परीक्षा होगी, नहीं होगी, संशय बना रहा, कई चरणों के बाद वैकल्पिक व्यवस्था भी की गई। अंत में मेरा मानना है कि जो भी पॉलिसी बार्ड ने बनाई है, वह अपने आप में पूर्ण है। इसको लेकर बच्चों, अभिभावकों से बात की गई। विशेषज्ञ भी बैठे हैं। रेगुलर मॉनीटङ्क्षरग सिस्टम के तहत काम हो रहा। फिर भी बच्चे को लगता है कि नंबर ज्यादा आते तो वह परीक्षा दे सकता है। बच्चा स्कूल और शिक्षक से बात कर सकता है। मुझे कई फोन आते हैं, अधिकतर बच्चे बोर्ड परीक्षा के लिए पूछते हैं। ज्यादातर बच्चों ने कहा कि परीक्षा निरस्त करने का निर्णय ठीक है। सरकार ने पॉलिसी सही बनाई है। कुछ बोर्ड को छोड़ दें तो सभी ने इसे स्वीकार किया है। - डा. मुकेश कुमार सिंह, डीआइओएस 

रुचि के विषय में ज्ञान का विस्तार करें 

छात्र-छात्राओं के बीच यह संदेश देना गलत है कि परीक्षा निरस्त नहीं होनी चाहिए थी। परीक्षा निरस्त करने का निर्णय विद्यार्थियों के पक्ष में है। हमने सर्वे किया था, 70 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि ये स्वास्थ्य का बड़ा मुद्दा है, ऐसी परिस्थिति में परीक्षा न लेने का निर्णय ही सही है। अब अच्छी क्वालिटी के यूनिवर्सिटी और कालेज हैं, सीट हैं, सही कोर्स और कैंपस का चुनाव जरूरी है। कई कालेजों ने तय किया कि वे प्रवेश परीक्षा लेंगे। लाभ ये है कि परीक्षा निरस्त हो गई, आप साक्षात्कार की तैयारी करें। साक्षात्कार में पूछा जा रहा कि आपने कोरोना में क्या किया? आप अपना प्रोफाइल बढ़ाइए। आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत से सफलता के शिखर पर पहुंच सकते हैं। मुझे लगता है कि पोस्ट कोविड के कारण नए डिजिटल का अवतार हुआ है। डिजिटल को लेकर कई नए विषय सामने आए हैं। बच्चों के पास अच्छे अवसर हैं। इतिहास और गणित को जोड़ दें तो भविष्य के स्कोप और बेहतर होंगे। कई और इंडस्ट्री ने हॉस्पिलिटी के बच्चों को जॉब दी है। लिबरल आट्र्स के छात्रों की भी मांग है, जिसमें आपकी रुचि हो, उसमें अपने ज्ञान का विस्तार करें। कोविड के बावजूद बच्चों के पास कॅरियर के अच्छे अवसर हैं। यह बच्चों को खुद निर्णय लेना होगा कि उनकी अपनी पसंद क्या है। अगर अपने विषय में गहन जानकारी लें तो अच्छा कर पाएंगे। तीसरी लहर की बात चल रही है। विदेश में जाने पर रोक है। ऐसे में जिन छात्रों ने विदेश में दाखिला लिया, उन्होंने पहला सेमेस्टर ऑनलाइन ही पूरा किया। यह भी देखना होगा कि किन देशों में पोस्ट कोविड वीजा मिल रहा है। मेरे हिसाब से अभी पढऩे के लिहाज से विदेश जाना ठीक नहीं है। स्नातक की पढ़ाई भारत में ही करें, भविष्य में स्थिति ठीक होने पर मास्टर्स डिग्री के लिए बाहर जा सकते हैं। छात्रों के लिए यह भी एक अवसर है कि आप दो साल यहां पढ़ें और दो साल वहां भी पढ़ सकते हैं।- डा. अमृता दास, शिक्षाविद् 

कोरोना तो हर परीक्षा में आएगा 

जीवन में परिस्थितियां आती हैं, उसके अनुसार हमें अपने आपको तैयार करना होता है। ऑनलाइन पढ़ाई अच्छा माध्यम है। कोरोना काल में बच्चों को इसका बहुत फायदा मिला। कोरोना के कारण परीक्षाओं को निरस्त किया गया, यह निर्णय सराहनीय है, पर हमें यह भी देखना होगा कि फिलहाल कोरोना का असर कम हो रहा है। तमाम विश्वविद्यालय परीक्षा आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। परीक्षा निरस्त होना खासकर उन बच्चों के लिए बहुत अच्छा है जो पढ़ाई में औसत हैं, लेकिन प्रतिभाशाली बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। वेटेज देकर उत्तीर्ण किया जाना, मेधावियों के लिए अवैध है। उनके भविष्य को बर्बाद नहीं किया जा सकता। ये फार्मूला बच्चों को पसंद नहीं है। कोरोना तो हर परीक्षा में आएगा। ऐसे में सिर्फ बोर्ड परीक्षा को निरस्त करना कहां तक उचित है। - जगदीश गांधी, संस्थापक सीएमएस 

कोरोना रोकथाम की करनी होगी कोशिश 

बच्चों का स्कूल न जा पाना इस महामारी का बहुत ही दुखद नतीजा है। इससे बच्चों की शिक्षा पर ही नहीं, पर उनके जीवन और भविष्य पर भी बहुत गहरा असर पड़ा है। शहरी बच्चों ने ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा ग्रहण की, पर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे, विशेषकर बालिकाएं इससे भी वंचित रह गईं। बाल मजदूरी और बाल विवाह जैसी प्रथाएं फिर बढऩे लगी हैं। हम सबको मिलकर कोरोना की रोकथाम के लिए हर संभव कोशिश करनी होगी ताकि स्कूल जल्द खुलें और बच्चे फिर से शिक्षा से जुड़ें। - गीताली त्रिवेदी, कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ

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