लखनऊ में एसजीपीजीआइ के जंगल को खतरे में डाल रहे यूकेलिप्टस और आग, डाक्टर ने किया शोध

लखनऊ के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में शामिल एसजीपीजीआइ जहां लखनऊ और दूरदराज के इलाकों से आने वाले मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराता है वहीं उसके परिसर से लगे घने जंगल शहर के बाशिंदों को स्वच्छ हवा और तमाम पशु-पक्षियों को आसरा भी उपलब्ध कराते हैं।

By Dharmendra MishraEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 08:36 AM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 01:50 PM (IST)
लखनऊ में एसजीपीजीआइ के जंगल को खतरे में डाल रहे यूकेलिप्टस और आग, डाक्टर ने किया शोध
लखनऊ में खतरे में पड़े एसजीपीजीआइ के जंगल पर डाक्टर तान्या ने किया रोशनी डालने वाला शोध।

लखनऊ, जागरण संवाददाता।  राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में शामिल संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (एसजीपीजीआइ) जहां लखनऊ और दूरदराज के इलाकों से आने वाले मरीजों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराता है, वहीं उसके परिसर से लगे घने जंगल शहर के बाशिंदों को स्वच्छ हवा और तमाम पशु-पक्षियों को आसरा भी उपलब्ध कराते हैं। मगर समय के साथ इस जंगल पर मंडाराते खतरे से शहर और आसपास के इलाकों की आबोहवा बिगड़ने के साथ ही तमाम दुर्लभ जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ रहा है।

इसी खतरे पर तान्या दास ने अपने शोध के माध्यम से रोशनी डालने का प्रयास किया है। उन्होंने इस जंगल पर मंडराते खतरे और उसके कारणों और निवारणों पर चर्चा की है। तान्या दास ने जतुन सशा बायोलॉजिकल स्टेशन, अमेजन रेनफारेस्ट, इक्वाडोर से वन संरक्षण में विशेषज्ञता प्राप्त की है। एनस्थेसिया एजुकेशन ट्रस्ट में फारेस्ट रिसर्चर तान्या के शोध का मुख्य उद्देश्य इस रिजर्व फारेस्ट में प्राणि और पादप प्रजातियों की पहचान कर उन्हें चिन्हित करना था। वह बताती हैं कि परिसर में घुसते ही आपको पेड़ों के कटने की आवाजें सुनाई पड़ने लगती हैं। स्थानीय लोग लकड़ियां ले जाते हुए दिखने लगते हैं। ये मंजर इस जंगल की लगातार हो रही दुर्दशा को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। इस मामले में जब तान्या ने वन विभाग से बात की तो बताया गया कि पेड़ों और जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए फारेस्ट गार्ड तैनात किए गए हैं, लेकिन तान्या का सामना कभी ऐसे गार्ड से नहीं हुआ। अन्यथा वह वन विभाग से इस संबंध में सवाल ही नहीं करतीं। हां तान्या को नीलगाय से लेकर सारस जैसे पक्षी अवश्य दिखे। उत्तर प्रदेश का यह राजकीय पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है।

हायना या तेंदुआ जैसे जानवर भी दूसरे जंगलों की ओर कूच करत हुए इस जंगल को आवाजाही के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इस लिहाज से भी इस जंगल की सुरक्षा अहम हो जाती है। मगर यहां आग के बढ़ते मामले खतरनाक साबित हो रहे हैं। ये अग्निकांड न केवल प्राणियों, पेड़ों, बल्कि यहां 10 से 15 अलग-अलग प्रजातियों की उस घास के लिए भी घातक सिद्ध हो रहे हैं, जो शाकाहारी प्राणियों का प्रमुख खाद्य है। इस घास को आग से बचाने के लिए हर साल निविदाएं बुलाई जाती हैं, लेकिन उनसे भी समाधान निकलता नहीं दिखता।

इस पर भी प्रशासन की अपनी दलीलें हैं। आग लगने के वाकयों पर तान्या ने जब प्रशासन से बात की तो जवाब मिला कि जंगल की साफ-सफाई का बड़ा क्षेत्र होने की वजह से वह आग का इस्तेमाल करते हैं। वहीं शोधार्थी का दावा है कि सूखे जंगल होने की वजह से यह आग फैलकर जंगल और उनमें रहने वाले तमाम जीवों को नुकसान पहुंचा रही है। आग पर काबू पाने के प्रशासनिक दावों के बावजूद यह रिजर्व फारेस्ट तक फैलकर उसे भी अपनी चपेट में ले लेती है। एसजीपीजीआइ रिजर्व फारेस्ट में 16 से 18 प्रजातियों के पेड़ मौजूद हैं। यहां जारी निर्वनीकरण को रोकने के लिए यूकेलिप्टस का पौधारोपण भी कारगर साबित नहीं हुआ। उसने न केवल अन्य वनस्पतियों के उगने पर अंकुश लगा दिया, बल्कि उस इलाके की जमीन का पानी भी निगल लिया। जबकि यह क्षेत्र पहले से ही शुष्क माना जाता है।

तान्या दास ने यह शोध दिसंबर 2020 से नवंबर 2021 के बीच किया है। इस रिजर्व फारेस्ट पर इससे पहले ऐसा कोई व्यापक शोध नहीं किया गया। तान्या ने इस जंगल को चुना, क्योंकि उन्होंने अपना बचपन यहीं बिताया है। यह उस दौर की बात थी जब पूरे शहर में सूखे के बावजूद यहां की रंगत में हरियाली घुली होती थी, लेकिन अब यहां की तस्वीर भी बदरंग होती जा रही है, जो लखनऊ में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को देखते हुए नवाबों की नगरी के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है।

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