"विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के हृदय में भारत की अस्मिता व राष्ट्रीयता का अहसास अधिक"
Non Resident Indian समाजशास्त्र से संबंधित एक शोध में यह पता चला है कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के हृदय में भारत की अस्मिता व राष्ट्रीयता का अहसास यहां के लोगों की तुलना में अधिक है।
डॉ. विशेष गुप्ता। भारतीय मूल के लोगों को एक साझा मंच देने और उन्हें सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष नौ जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता रहा है। इस बार कोविड संक्रमण के चलते यह दिवस 16 जनवरी को आत्मनिर्भर भारत विषय के रूप में मनाया गया। आपको याद होगा पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ऑस्ट्रेलिया, फीजी, अमेरिका और जापान की यात्रा पर गए थे, तो वहां उनके स्वागत में भव्य समारोह आयोजित किया गया था। उस समय नरेंद्र मोदी ने भारतीय मूल के लोगों से जिस तरह संवाद स्थापित किया उससे विश्व में फैले भारतवंशियों में भारत के प्रति एक नई आशा का संचार हुआ था। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत की कूटनीति को एक मानवीय चेहरा मिलने के साथ भारत की विदेश नीति में भी एक नया आयाम जुड़ा है। साथ ही विदेशों में बसे भारतवंशियों को एक नई पहचान मिली है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया में भारतवंशियों की संख्या लगभग दो करोड़ है। सबसे अधिक भारतवंशी अमेरिका, यूएई और सऊदी अरब में रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इन्हें सर्वाधिक विविधता और जीवंतता वाला समुदाय माना है। फिलहाल इनको तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है। एक तो वे है जो फीजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद, टोबैगो, मलेशिया, ट्यूनीशिया व दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में बस गए हैं। भारत छोड़ते समय इनकी स्थिति काफी कमजोर थी। परंतु आज वे सभी बेहतर स्थिति में हैं। दूसरे वे लोग हैं जो नौकरी के सिलसिले में खाड़ी आदि देशों में आते-जाते रहते हैं। ये भारत के ही मूल नागरिक हैं। ये लोग बड़ी मात्रा में अपनी बचत को भारत भेजते हैं।
भारत के भुगतान संतुलन को बेहतर करने में भारतवंशियों की इस बचत का बड़ा योगदान रहा है। तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो अपेक्षाकृत बहुत संपन्न हैं। ये लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में बसे हैं। भारत में निवेश करने की उम्मीद इनसे की जा सकती है। इन लोगों ने भारत को छोड़ा ही इसलिए था कि इन्हें यहां काम करने का अच्छा माहौल नहीं मिला। परंतु अपने देश के प्रति कुछ करने की ललक इनमें आज भी मौजूद है। आज दुनिया के 200 देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। दुनिया में 27.2 करोड़ प्रवासी है, जिनमें करीब सात फीसद भारतीय हैं।
विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों से अनिवासी भारतीयों द्वारा अपने मूल देश को पैसा भेजने के मामले में भारत आज दुनिया का अव्वल देश है। वर्ष 2014 में भारतवंशियों द्वारा भारत में लगभग 71 अरब डॉलर भेजा गया था। आज यह राशि बढ़कर 110 अरब डॉलर पहुंच गई है। सच यह है कि 2013 में इन प्रवासियों की जमा राशि को बढ़ावा देने के लिए आरबीआइ ने जो विशेष योजना शुरू की थी, उसका बेहतर असर हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी भारतीय अपने देश में जितना धन भेजते हैं, वह भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी अधिक बैठता है। समाजशास्त्रीय शोध बताते हैं कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के हृदय में भारत की अस्मिता और राष्ट्रीयता का अहसास यहां के लोगों की तुलना में अधिक है। वे भले ही यहां से सात समंदर पार हैं, लेकिन उनके हृदय में मातृभूमि के प्रति सेवा करने की उत्कंठा हर समय बनी रहती है।
आज कई राजनीतिक दलों ने इन भारतवंशियों के बीच अपनी पैठ बनाकर विदेशों में उनके लिए अपने ओवरसीज चैप्टर भी खोल दिए हैं। आजकल वहां अन्य संस्थाओं के मुकाबले ओवरसीज फ्रेंड ऑफ बीजेपी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इसकी करीब 15 देशों में शाखाएं हैं। इसमें अमेरिका, कनाडा व इंग्लैंड की शाखाएं बहुत सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों विदेशों में बसे भारतवंशियों के सहयोग व समर्थन को संस्थागत रूप देने का प्रयास किया है। उन्हें यहां आने में जो अड़चनें आती है, उनको कम करने का काम किया है।
अब प्रवासी भारतीयों की यह भी इच्छा है कि भारत में उनके लिए संपत्ति खरीदने के नियमों का सरलीकरण हो। यहां उन्हें उद्योग लगाने में नौकरशाही की बाधाओं से छुटकारा मिलते हुए रियायतें भी मिलें। उनकी एक अन्य महत्वपूर्ण इच्छा दोहरी नागरिकता को लेकर भी है। यानी जिस देश में वे रह रहे है, उसके अलावा भारत में भी उन्हें मतदान का अधिकार हासिल हो। उन्हें भारत में अपनी समस्याएं सुलझाने के लिए अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हो। पूर्व में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें दोहरी नागरिकता का अधिकार देने का वादा भी किया था। परंतु भारत का संविधान उन्हें दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है। अगर किसी भारतीय ने किसी दूसरे देश की नागरिकता ले भी ली, तो उसे भारतीय नागरिकता को छोड़ना पड़ेगा। आज दुनिया के करीब 40 देशों में दोहरी नागरिकता का प्रविधान है।
कहना न होगा कि भारतवंशी विदेशों में अपनी कार्य संस्कृति, अनुशासन और वहां सांस्कृतिक समन्वय बनाने में कामयाब रहे हैं। भारत के लिए आज ये बहुत बड़े संसाधन हैं। कई बार यह भी देखने में आया है कि भारतीय मूल के लोग अपने राष्ट्र और यहां की राष्ट्रीयता से सीधे जुड़ना ही नहीं चाहते, बल्कि भारत में भारी निवेश करने के इच्छुक भी हैं। देश को आशा है कि विश्व में फैले भारतवंशियों को देश से जोड़ने की उनकी मुहिम राष्ट्र को और अधिक सशक्त बनाने में एक नया आयाम जोड़ेंगी।