डॉ उर्मिल कुमार थपलियाल के जाने से फीका हो गया मंच का रंग, रंगकर्मियों ने दी भावांजलि
शुक्रवार को बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रख्यात रंगकर्मी डा उर्मिल कुमार थपलियाल को शहर के रंगकर्मियों ने भावांजलि अर्पित की। दर्पण संस्था की ओर से भारतेंदु नाट्य अकादमी के थ्रस्ट सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। अनुभवी चेहरों के स्मृति पटल पर यादें तैर रही थीं। कोई उनके अभिनय कौशल को शब्दों में पिरोने का प्रयास करता, तो कोई उनके निर्देशकीय रूप को नमन करता। व्यंग्य के तौर पर समाज के विद्रुप पर उनकी पैनी नजर को भी अद्वितीय बताया गया। जिस समर्पण से वह रंगमंच में रमे, उसी भाव से साहित्य सेवा भी की। शुक्रवार को बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रख्यात रंगकर्मी डा उर्मिल कुमार थपलियाल को शहर के रंगकर्मियों ने भावांजलि अर्पित की। दर्पण संस्था की ओर से भारतेंदु नाट्य अकादमी के थ्रस्ट सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था। डा उर्मिल कुमार थपलियाल के प्रति शहर के रंगमंच और साहित्य जगत के दिग्गजों के शब्द सुमन का सार रहा कि उनके जाने से मंच का रंग फीका हो गया। वरिष्ठ रंगकर्मी और दर्पण में 50 वर्षों से अधिक समय तक उर्मिल कुमार थपलियाल के साथ जुड़े रहे डा अनिल कुमार रस्तोगी ने कहा कि रंगमंच में उन्होंने कई प्रयोग किए। पारसी शैली का नाटक भी किया। उनकी एक विशेषता यह भी थी कि वह हर स्क्रिप्ट को री-राइट करते थे, उसमें हमेशा अपना कुछ डालने का प्रयास करते थे। नाटकों में संगीत और कविता का बेजोड़ समन्वय रहता। 'कन्यादानÓ नाटक में उन्होंने नरेश सक्सेना की कविता प्रयोग की। उन्होंने सफदर हाशमी की कविता भी इस्तेमाल की। वह अपने कलाकारों के साथ मेहनत करते। अंत में रुंधे गले से डा रस्तोगी बोले- दर्पण का आधार स्तंभ चला गया...।
वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा कि उनके जैसा काम, शैली और जुनून कम देखने को मिलता है। उन्होंने शुद्ध नौटकी नहीं, आधुनिक रंगमंच और नौटंकी को मिलाकर नवप्रयोग किया। उनकी वैचारिकी की भी चर्चा हो। दलित विमर्श हो या ब्रेख्त की विचारधारा को प्रस्तुत करना, उन्होंने हर काम मजबूती से किया।
वरिष्ठ रंगकर्मी आतमजीत सिंह ने कहा कि उनसे सीधे तौर पर तो सीखने का मौका नहीं मिला, पर एक तरीके से मैं उनका एकलव्य था। उनको देखकर नौटंकी विधा को अपनाने की प्रेरणा मिली। वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल सिन्हा ने कहा कि 1974 में जब मैंने रंगमंच में प्रवेश किया तब उनके नाटक देखकर बहुत कुछ सीखा। उर्मिल जी ने मंच पर पहला रोल भारत माता का किया, फिर सीता के किरदार को खूबसूरती से निभाया। वह मुझे रंगदीपन के लिए हमेशा सराहते और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते। रंगकर्मी संध्या ने कहा कि वह कभी रंगकर्म नहीं सिखाते, विचार देते। इस मौके पर डा उर्मिल के लिए देश भर से भेजे श्रद्धांजलि संदेश भी पढ़े गए। इस मौके पर भारतेंदु नाट्य अकादमी के अध्यक्ष रवि शंकर खरे, वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश, वरिष्ठ रंगकर्मी संगम बहुगुणा, कलाकार एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मिश्र, वरिष्ठ रंगकर्मी चित्रा मोहन, वरिष्ठ कथक नृत्यांगना कुमकुम धर समेत कई लोग मौजूद रहे। संचालन दर्पण संस्था के सचिव राधे श्याम सोनी ने किया।