Lucknow Coronavirus News: Sorry dad...मैंने कई लोगों को बचाया, लेकिन आपको नहीं बचा सका
आमजन ही नहीं डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी अपनों को अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे रो रहे हैं तड़प रहे हैं बिलख रहे हैं विनती कर रहे हैं। हाथ तक जोड़ रहे हैं लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है।
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना से पिछले चार दिनों में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। आमजन ही नहीं, डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी अपनों को अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे रो रहे हैं, तड़प रहे हैं, बिलख रहे हैं, विनती कर रहे हैं। इतना ही नहीं, हाथ तक जोड़ रहे हैं, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे हैं। वे जल्दी पीडि़तों का फोन नहीं उठाते। उठा भी लिया तो ब्योरा भेजने की बात कहकर फोन रख देते हैं। इसके बाद मरीज एंबुलेंस की सिर्फ राह तकते रहते हैं। इसी लापरवाही ने लोकबंधु अस्पताल के एक डाक्टर के पिता की जान ले ली। वहीं, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) के कर्मचारी की मासूम बच्ची की भी भर्ती नहीं हो पाने से मौत हो गई।
आइ एम सॉरी पापा... मैंने कई लोगों की जिंदगियां बचाईं, लेकिन आपको नहीं बचा सका। आइसीयू में इलाज करते-करते खुद भी संक्रमण की चपेट में आ गया। इसके बाद घर में पिता समेत परिवार के चारों सदस्य कोरोना संक्रमित हो गए। मैं अपने बुजुर्ग पिता के इलाज के लिए गुहार लगाता रहा, लेकिन समय पर उनको भर्ती नहीं करा सका। मैं सिस्टम से हार गया। डाक्टर होते हुए भी अपने पिता को नहीं बचा पाया। यह खौफनाक दास्तान डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल (सिविल) के कार्डियोलॉजिस्ट डा. दीपक की है। वह अपने 74 वर्षीय पिता अर्जुन चौधरी को संक्रमण होने के बाद अस्पताल में भर्ती करने की गुहार लगाते रहे। सीएमएस डा. एसके नंदा कहते हैं कि डा. दीपक के पिता शुगर और हार्ट के भी मरीज थे। वह पहले आइसोलेशन में रहे, मगर तबीयत बिगड़ी तो अस्पताल में भर्ती होने के लिए परेशान होने लगे। उन्हें समय पर बेड नहीं मिल पाया। आखिरकार, उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनके पिता ने दम तोड़ दिया।
समय पर नहीं मिली एंबुलेंस
डा. दीपक पिता के लिए घर पर ही ऑक्सीजन सिलिंडर खरीद कर लाए। उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा। इस बीच वह लगातार कोविड-19 कंट्रोल रूम को फोन करते रहे। इतना ही नहीं, जब एंबुलेंस नहीं आई तो वह अपनी कार से पिता को ऑक्सीजन का सपोर्ट देते हुए लोकबंधु अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन यहां भी आइसीयू में बेड नहीं खाली थे। फिर उन्होंने अपने पिता को किसी तरह निजी मेडिकल कालेज में भर्ती कराया, लेकिन डाक्टर मरीज को देखने में लापरवाही करते रहे। बुधवार शाम उनके पिता ने दम तोड़ दिया। समस्या यहीं खत्म नहीं हुई। पिता की मौत के बाद अंतिम संस्कार का नंबर अगले दिन आया।
एसजीपीजीआइ में नर्स सीमा शुक्ला संस्थान में कार्यरत अपनी एक सहेली की बच्ची को भर्ती कराने के लिए सीएमएस से लेकर अन्य डाक्टरों से मिन्नतें करती रहीं, लेकिन बच्ची को भर्ती नहीं किया गया। लिहाजा, घरवाले बच्ची को लेकर निजी अस्पताल भागे, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। इसके बाद सीमा का गुस्सा कुछ इस रूप में सामने आया...
आप सभी को बता दें, जिस बच्ची को लेकर मैं शाम से परेशान थी, वो भी चली गई। संस्थान की लापरवाही की हद हो गई। ऐसे तो हमारे अपने मरते रहेंगे। मेरे पास इमरजेंसी से फोन आया कि कर्मचारी सरिता की आठ माह की बच्ची गंभीर है। उसे कोई भर्ती नहीं कर रहा है। इसलिए वह उसे निजी अस्पताल ले जा रही हैं। मैंने सीएमएस मैडम से बात की, लेकिन वहीं ढाक के तीन पात। उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया। मैं उनसे बात कर ही रही थी, तभी मेरे पास बच्ची की मौत की सूचना आई। मैं उस बच्ची के लिए कुछ नहीं कर पाई। मैं सविता से हाथ जोड़कर माफी मांगती हूं। मुझे क्षमा कर दो। डायलिसिस कर्मचारीकी बच्ची को इलाज नहीं मिल सका। अब डायलिसिस स्टाफ में सभी को काम बंद कर देना चाहिए। मैं किसी को नहीं छोडूंगी।