यूपी ही नहीं, अब तो दक्षिण भारत में भी दशहरी आम की खेती

दशहरी के शौकीनों को देखते हुए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने दशहरी की दो किस्मों को आंध्र प्रदेश में लगवाया। महाराष्ट्र गुजरात और ओडिशा में भी इसकी खेती हो रही है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 05:58 PM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 12:22 PM (IST)
यूपी ही नहीं, अब तो दक्षिण भारत में भी दशहरी आम की खेती
यूपी ही नहीं, अब तो दक्षिण भारत में भी दशहरी आम की खेती

लखनऊ (रूमा सिन्हा)। बेजोड़ स्वाद वाला मलिहाबादी दशहरी आम पसंद करने वाले दूसरे राज्यों के लोगों को अब मनमसोस कर नहीं रहना पड़ेगा। आंध्र प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी दशहरी उगाने में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की कोशिशें रंग लाने लगी हैं। यहां दशहरी का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा है।

दशहरी का स्वाद जुबान पर चढ़ने से मलिहाबादी दशहरी जोकि स्वाद में बेजोड़ है, की मांग दक्षिण राज्यों में जबर्दस्त बढ़ी है। यहां दशहरी की फसल अप्रैल में पककर तैयार हो जाती है। इससे दशहरी का स्वाद चख चुके लोग जून से आने वाली मलिहाबादी दशहरी का भी लुत्फ उठाने में पीछे नहीं रहते। नतीजतन यहां के बागवानों को दक्षिण भारत में बड़ा बाजार मिल रहा है।

संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन बताते हैं कि तेलंगाना केसंगारेड्डी स्थित शोध केंद्र के सहयोग से दशहरी के दो क्लोन डी 35 और डी 28 को अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना केअंतर्गत आंध्र प्रदेश के संग्गारेड्डी में लगाया गया। तेलंगाना में लगायी गई दशहरी के क्लोन 35 की उपज अधिक पाई गई। इससे उत्साही आंध्र प्रदेश के किसानों ने दशहरी के पौधों को बागों में लगाना आरंभ कर दिया है। तेलंगाना में डी 35 ने लगातार अन्य दशहरी के मुकाबले अधिक उपज दी, जिसके चलते प्रदेश में इसका जबर्दस्त व्यावसायीकरण हो गया। दशहरी के पौधे बनाकर किसानों को दिये गये। साथ ही साथ ग्राफ्टिंग के लिये मदर ब्लॉक भी नर्सरी में बनाया गया।

आकार में अंतर, लेकिन स्वाद मिलता-जुलता

तेलंगाना में दशहरी के व्यावसायिक हो जाने से उत्तर प्रदेश के दशहरी उत्पादकों को कम्पीटिशन नहीं ङोलना पड़ रहा है। वरन, दशहरी का सवाद जुबां पर चढ़ने के कारण यहां की दशहरी को भी अच्छा बाजार मिलने लगा है। डॉ. राजन कहते हैं कि तेलंगाना में दशहरी की फसल अप्रैल केअंत तक पककर तैयार हो जाती है। हालांकि, फलों का आकार मलिहाबाद के बराबर तो नहीं है लेकिन मिलता- जुलता स्वाद होने के कारण स्थानीय लोग इसके मुरीद हो गये हैं।

किसानों को हो रही अच्छी आय

डॉ. राजन कहते हैं कि मलिहाबाद दशहरी को हैदराबाद में पैठ बनाने में ज्यादा समस्या इसलिए नहीं आई क्योंकि इसको अपनाने वाले किसानों को अच्छी आय हुई। केवल आंध्र प्रदेश ही नहीं, महाराष्ट्र, गुजरात एवं ओडिशा में भी दशहरी के पौधे काफी अधिक संख्या में लगाए गए हैं। दरअसल, उत्तर भारतीयों की बढ़ती संख्या के कारण देश के बड़े शहरों में दशहरी की मांग बढ़ रही है। स्वाद भले ही मलिहाबादी दशहरी को टक्कर न दे पाए लेकिन पेड़ों में आ रहे अधिक फल और आम की मिठास स्थानीय लोगों को लुभा रही है। यही वजह है कि दशहरी की मुरीद देश में तेजी से बढ़ रहे हैं।

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