शहरनामा : लखनऊ के चौराहोंं पर...अतिथि देवो भव:

जैसे ही कोई मेहमान यानी दूसरे जिले की गाड़ी दिखती है उनके अंदर का मेजबान मचलने लगता है। शिष्टाचार से डंडा दिखाने की परंपरा निभाते हुए उन्हें सड़क के किनारे किया जाता है ताकि अतिथि को भीड़भाड़ से कष्ट न हो।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 04 Jan 2021 09:00 PM (IST) Updated:Mon, 04 Jan 2021 09:00 PM (IST)
शहरनामा : लखनऊ के चौराहोंं पर...अतिथि देवो भव:
अतिथि लाख मना करे, लेकिन तहजीब के साथ गाड़ी की चाबी सिपाही निकाल ही लेता है।

लखनऊ, [अंब‍िका वाजपेयी]। सनातन परंपरा है कि अतिथि देवो भव:। इस परंपरा का पालन शहर के चौराहों पर तैनात पुलिस बखूबी करती है। जैसे ही कोई मेहमान यानी दूसरे जिले की गाड़ी दिखती है, उनके अंदर का मेजबान मचलने लगता है। शिष्टाचार से डंडा दिखाने की परंपरा निभाते हुए उन्हें सड़क के किनारे किया जाता है, ताकि अतिथि को भीड़भाड़ से कष्ट न हो। अतिथि लाख मना करे, लेकिन तहजीब के साथ गाड़ी की चाबी सिपाही निकाल ही लेता है। आने में तकलीफ तो नहीं हुई! ऐसा पूछते हुए सिपाही मेहमान को चौराहे के केबिन में ले जाता है। अंदर बैठे मुख्य मेजबान प्रदूषण, इंश्योरेंस, आरसी डीएल की कमी पर चिंता जताते हैं। इसके बाद मेहमान जेब में हाथ डालकर मुस्कराते हुए बाहर आ जाते हैं। वैसे भी जब मेहमान आते हैं तो बच्चों के हाथ पर दस-बीस रुपये रख ही देते हैं। लोगों का क्या है, वो तो कुछ भी कहते रहते हैं।

भरोसा कर रहे हैं, कायम रखिएगा

आजकल तमाम मुहल्लों में लोगों की नींद गाना सुनकर टूट रही है। जी हां, गाड़ी वाला आया... घर से कचरा निकाल...की धुन जोरों से गूंज रही है। इसके बावजूद कचरा निकालने में दो अड़चनें हैं। एक तो ठंड में रजाई से निकलकर जाने में घर के आगे से गाड़ी निकल न जाए। दूसरे कचरा उठा रहे ठेलिया वाले को हटाए कौन। एक सज्जन से पूछा तो बोले-इस सरकारी व्यवस्था का क्या भरोसा, इससे पहले भी डोर टू डोर कूड़ा उठाने की तमाम योजनाएं आती जाती रहीं। अभी तो गाना सुना रहे हैं कि घर से कचरा निकाल, कुछ दिन बाद कचरा निकला रखा रहेगा और इनका पता नहीं चलेगा। तब क्या करोगे? ठेलिया वाला ठीक है, सौ पचास लेता है, लेकिन रेगुलर आता तो है। बात तो ठीक ही लगी। इसी अनियमितता के कारण तमाम योजनाएं भरोसा नहीं जीत पातीं। हम तो खैर भरोसा कर रहे हैं। कायम रखिएगा। 

कई जगह बीस कर गया बीता साल

नववर्ष पर शुभकामनाओं के आदान-प्रदान की परंपरा इस बार भी निभाई गई, लेकिन अंदाज बदला दिखा। सोशल मीडिया से लेकर वाट्सएप स्टेटस पर स्वागत 2021 से ज्यादा बाय-बाय 2020 का ज्यादा जोर दिखा। उम्मीद पर दुनिया कायम है और हमें उम्मीद है कि यह साल बीते वर्ष से बेहतर होगा। बेहतर होने के मायने निश्चित तौर पर अपने-अपने होंगे। कोरोना काल में अपनों को खोने का दुख और सब कुछ बंद होने के बीच जिंदगी जीने का अनुभव ताउम्र साथ रहेगा। बीता साल कई चीजों में वाकई हमें बीस करके गया। मॉल की चकाचौंध के बीच हमने पड़ोस के परचून वाले को याद किया। परिवार का साथ मिलने से बुजुर्गों की हंसी झुर्रियों से बाहर आई। साफ हवा के बीच प्रकृति के बदले स्वरूप को महसूस किया। जाम के चंगुल में फंस चुकी शहर की सड़कों का चौड़ापन देखा तो खाने-पीने की पोटली लेकर दौड़ते दानवीरों को भी।

नहीं मिल रही जमीन

कभी राष्ट्रीय फलक पर चमकने वाली पार्टी के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं। लगातार पार्टी को मुख्यधारा में लाने के तमाम दावे कमरों और मीडिया के सामने होते रहते हैं। इसके बावजूद दावे फलीभूत होते नहीं दिखते। शायद इस बात से तमाम लोग अनजान हैं कि राजनीति तो सड़कों पर संघर्ष से ही चलती है। बीते दिनों पार्टी ने प्रत्येक गली-मुहल्ले में सरकार के खिलाफ लोगों को जगाने के लिए यात्रा का उद्घोष किया। मगर पार्टी का प्रयास उन चंद कार्यकर्ताओं को भी नहीं जगा सका, जो जमीन से जुड़े हैं। दरअसल, लगातार सत्ता से बेदखली और नेतृत्व को लेकर चर्चाओं के बीच कार्यकर्ता भी असमंजस में है कि जाएं तो कहां जाएं। यही वजह है कि तमाम दावों के बावजूद पार्टी की जागरूकता यात्रा चंद लोगों को ही बटोरने में कामयाब रही। हाल यह था कि नेताओं को फोटो खिंचाने के लिए भी भीड़ मैनेजमेंट करना पड़ रहा था।

chat bot
आपका साथी