CSIR Coronavirus Research: सीएसआइआर तैयार कर रहा कोरोनावायरस की कुंडली, जान‍िए क्‍या होगा इसका फायदा

CSIR Coronavirus Research फीनोम प्रोजेक्ट के तहत सीएसआइआर की देश में मौजूद 38 प्रयोगशालाएं कर रही सहयोग। इससे वायरस की प्रकृति का अनुमान लग सकेगा। कोविड-19 संक्रमण के पश्चात शरीर में एंटीबॉडी कितने दिन मौजूद रहती हैं इसका भी पता लगाया जाएगा।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 04:39 PM (IST) Updated:Fri, 25 Sep 2020 06:58 AM (IST)
CSIR Coronavirus Research: सीएसआइआर तैयार कर रहा कोरोनावायरस की कुंडली, जान‍िए क्‍या होगा इसका फायदा
देश में मौजूद सभी 38 प्रयोगशालाएं फीनोम प्रोजेक्ट के तहत इसमें सहयोग कर रही हैं।

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। CSIR Coronavirus Research: वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) कोरोना वायरस की कुंडली तैयार करने में जुटा है। सीएसआइआर की देश में मौजूद सभी 38 प्रयोगशालाएं फीनोम प्रोजेक्ट के तहत इसमें सहयोग कर रही हैं। इसके तहत किए जा रहे सीरो सर्वे में जहां वायरस की अलग-अलग जगहों पर प्रकृति को देखा जाएगा। वहीं, कोविड-19 संक्रमण के पश्चात शरीर में एंटीबॉडी कितने दिन मौजूद रहती हैं, इसका भी पता लगाया जाएगा।

सीएसआईआर कि लखनऊ में स्थित प्रयोगशालाएं सीडीआरआइ, एनबीआरआइ, आइआइटीआर व सीमैप में वैज्ञानिकों व कर्मचारियों के ब्लड सैंपल एकत्र करके दिल्ली स्थित सीएसआइआर की आइजीआइबी लैब भेजे जा चुके हैं। वही देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद अन्य प्रयोगशालाओं से भी सैंपल भेजे जा रहे हैं। सीरोलोजिकल सर्वे के बारे बताते हुए सीडीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.संजीव यादव बताते हैं कि वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए यह पता लगाया जाना बेहद जरूरी है कि इंफेक्शन के बाद एंटीबॉडी कितने दिन तक शरीर में मौजूद रहती है। साथ ही एंटीबॉडी टाइटर (संख्या) कितना होता है, विस्तृत अध्ययन के जरिए इसका पता लगाया जाएगा। डॉ. यादव बताते हैं कि फिनोम इंडिया प्रोजेक्ट में वायरस सीक्वेंसिंग स्टडीज के परिणामों का भी उपयोग किया जा रहा है। इससे वायरस की प्रकृति का भी अनुमान लग सकेगा। वहीं कितने फीसद लोग अभी तक संक्रमित हो चुके हैं यानी हम हर्ड इम्यूनिटी के कितने करीब या दूर हैं इसका भी आकलन किया जा सकेगा।

वह बताते हैं कि सीएसआइआर द्वारा किए जा रहे इस अध्ययन का प्रयोग वैश्विक स्तर पर वैक्सीन तैयार करने में जुटी संस्थाएं भी कर सकेंगी। यही नहीं, वैक्सीन की डोज तय करने में भी इससे मदद मिल सकेगी। दरअसल इस अध्ययन में बहुत सारे मानकों पर काम किया जा रहा है। जैसे अलग-अलग जलवायु में वायरस का क्या असर है? भारतीय आबादी में महिला, पुरुष व बच्चों में अलग-अलग इसका व्यवहार भी देखा जाएगा। खास बात यह है कि अभी तक यह माना जा रहा है कि डायबिटीज, थायराइड जैसे अन्य बीमारियों से पहले से ग्रस्त व्यक्ति के संक्रमित होने पर खतरा ज्यादा होता है। वैज्ञानिक जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए इसका भी पता लगाएंगे। उम्मीद की जा रही है कि अगले माह तक इस सीरोलोजिकल अध्ययन को पूरा कर लिया जाएगा और जल्द ही रिपोर्ट भी जारी की जाएगी।

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