Corona effect in Lucknow Zoo: वन्यजीवों के घरौंदे में कोरोना की दोहरी मार, दर्शकों के नहीं आने से खाने के लाले

Corona effect in Lucknow Zoo वर्तमान समय यहां 6 टाइगर और 4 टाइगर के शावक है। ये शावक पीलीभीत जंगल से रेस्क्यू करके लाए गए थे। इसी तरह छह बबर शेर 12 तेंदुआ और तीन सफेद बाघ हैं। कीपर हर दिन उसके हाव-भाव को भांपते हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 11:15 AM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 04:47 PM (IST)
Corona effect in Lucknow Zoo: वन्यजीवों के घरौंदे में कोरोना की दोहरी मार, दर्शकों के नहीं आने से खाने के लाले
इटावा की शेरनी में कोरोना संक्रमण पाए जाने के बाद लखनऊ के च‍िड़‍ियाघर में सतर्कता बढ़ी।

लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। शहर में इंसानी जीवन के साथ ही जंगली जीवों का भी एक संसार है। घेरे में कैद ये वन्यजीव चिडिय़ाघर में रहते हैं और सालों से शहर ही नहीं बाहर से आने वाले दर्शकों को दर्शन देकर उनका मनोरंजन करते हैं। अब वन्यजीवों की यह दुनिया कोरोना संक्रमण के दो-दो खतरों से गुजर रही है। एक तो दर्शकों का आना कम हो गया है और लॉकडाउन से पहले भी उनके आने का क्रम भी खत्म हो गया दूसरा सबसे चिंता की बात यह हो गई है कि इटावा में शेरनी में कोरोना संक्रमण के लक्षण मिलने के बाद से चिडिय़ाघर भी सतर्क हो गया है। शेर, टाइगर, तेंदुआ और बिग कैट पर अधिक नजर रखी जा रही है।

वर्तमान समय यहां 6 टाइगर और 4 टाइगर के शावक है। ये शावक पीलीभीत जंगल से रेस्क्यू करके लाए गए थे। इसी तरह छह बबर शेर, 12 तेंदुआ और तीन सफेद बाघ हैं। कीपर हर दिन उसके हाव-भाव को भांपते हैं और यह देखा जा रहा है कि उसने गोश्त खाने की मात्रा तो कम नहीं कर दी है। वह सुस्त तो नहीं दिख रहा है। वैसे तो बंदी के कारण चिडिय़ाघर में सन्नाटा पसरा है और हर दिन सैनिटाइज कराया जा रहा है। अब इटावा में शेरनी में संक्रमण किसी इंसान से पहुंचा था? यह तो जांच का विषय है, लेकिन अब चिंता यह भी हो रही है कि अगर चिडिय़ाघर खुलने के बाद दर्शक आएंगे तो वह कैरियर का काम न करें? दूसरी चिंता यह है कि अगर दर्शक नहीं आएंगे तो चिडिय़ाघर का बेड़ा कैसे पार हो पाएगा। हालांकि चिडिय़ाघर के उपनिदेशक डा. उत्कर्ष शुक्ला कहते हैं कि अभी सभी वन्यजीव स्वस्थ है और पूरी डाइट ले रहे हैं। उसमें किसी तरह के भिन्न लक्षण नहीं दिख रहे हैं। हर दिन सैनिटाइज कराया जा रहा है।

फिर कैसे भरेगा इन वन्यजीवों का पेट

पिछले साल की तरह इस बार भी चिडिय़ाघर में कोरोना और लॉकडाउन का ग्रहण नजर आने लगा है। यहां लॉकडाउन से पहले कोरोना की बढ़ती महामारी के कारण चिडिय़ाघर में एक दिन बारह ही दर्शक आए थे, जबकि सामान्य दिनों में दो से ढ़ाई हजार दर्शक आए थे। पिछले साल तो लॉकडाउन के कारण चिडिय़ाघर प्रशासन को आर्थिक मदद के लिए हाथ तक फैलाना पड़ा था। अगर सामान्य स्थितियां नहीं बनी तो वन्यजीवों के भोजन से लेकर कर्मचारियों के वेतन पर इसका असर दिखने लगेगा।

हाल यह है कि 2019 में मई माह में ही डेढ़ लाख दर्शक आए थे, जिनसे टिकट से एक करोड़ की आय हुई थी और अप्रैल में ही 90 लाख की आय टिकट से हुई थी। दरअसल गर्मी की छुट्टियों के कारण दर्शकों की संख्या बढ़ जाती थी लेकिन पिछले साल से गणित उल्टी हो गई है।

गोश्त की अधिक चिंता

चिडिय़ाघर में सबसे अधिक खर्च मांसाहारी वन्यजीवों पर होता है। हर दिन करीब 150 किलो मछली और 250 किलो गोश्त यहां आता है। पिछले साल तो लॉकडाउन के कारण कानपुर और उन्नाव से भैंस का गोश्त मंगाया गया था। यह गोश्त भी फ्रोजन था, जिसे खाना मांसाहारी वन्यजीवों के लिए मजबूरी सा था। इसी तरह शाकाहारी वन्यजीवों के भोजन का इंतजाम करना मुश्किल भरा हो जाएगा।

लखनऊ के च‍िड़‍ियाघर पर एक नजर हर साल चिडिय़ाघर में आते हैं सोलह लाख दर्शक टिकट से होती है सालाना आय नौै करोड़ सरकार से हर साल अनुदान मिलता है छह करोड़ कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होते हैं सात करोड़ वन्यजीवों के भोजन व इलाज पर खर्च होता है 3.50 करोड़ बिजली पर खर्च होता है एक करोड़ कुल खर्च 14 करोड़ सालाना, मरम्मत व आफिस खर्च मिलाकर।

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