कोरोना से कम घातक नहीं है यह बीमारी, लापरवाही पड़ेगी भारी; रखिए इन बातों का ध्‍यान

लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि कोरोना का सीधा असर हमारे फेफड़ों और सांस लेने की क्षमता पर होता है और ऐसे में कहीं अगर आपको अस्थमा की तकलीफ है तो यह बेहद घातक हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 02:27 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 02:28 PM (IST)
कोरोना से कम घातक नहीं है यह बीमारी, लापरवाही पड़ेगी भारी; रखिए इन बातों का ध्‍यान
अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंट्रोलर इनहेलर हमेशा समय से लें।

लखनऊ, जेएनएन। अस्थमा (दमा) एक आनुवांशिक रोग है जिसमें रोगी की सांस की नलियां अतिसंवेदनशील हो जाती हैं एवं कुछ कारकों के प्रभाव से उनमें सूजन आ जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे कारकों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूमपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पेड़ पौधों एवं फूलों के परागकण, वायरस एवं बैक्टीरिया आदि के संक्रमण प्रमुख होते हैं।

बचपन में ही हो जाता है हावी: ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। भारत में यह संख्या तीन करोड़ के लगभग है। दो तिहाई से अधिक लोगों में अस्थमा बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही शारीरिक विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में अस्थमा के लक्षण युवावस्था में प्रारंभ होते हैं। इस तरह अस्थमा बचपन या युवावस्था में प्रारंभ होने वाला रोग है।

अस्थमा के इलाज में इनहेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है। इसका असर सीधा एवं शीघ्र होता है एवं दवा के दुष्प्रभाव बहुत ही कम होते हैं। जब अस्थमा के कारक मरीज के संपर्क में आते है तो शरीर में मौजूद विभिन्न रसायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं जिनसे सांस नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं और इनकी भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से अस्थमा के लक्षण पैदा होते हैं तथा बार-बार कारकों के संपर्क में आने से इन नलिकाओं में स्थायी रूप से बदलाव हो जाते हैं।

तो हो जाएं सावधान खांसी आना, रात में समस्या और गंभीर हो जाती है। सांस लेने में कठिनाई, जोकि दौरों के रूप में तकलीफ देती हो। सीने में कसाव/जकड़न। सीने से घरघराहट जैसी आवाज आना। गले से सीटी जैसी आवाज आना। बार-बार जुकाम होना।

लापरवाही पड़ेगी भारी: अस्थमा के रोगी जो अपनी इनहेलर चिकित्सा ठीक से व नियमित रूप से नहीं लेते है, उनका अस्थमा अनियंत्रित रहता है। ऐसे मरीजों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे लोग जो अस्थमा के साथ-साथ कोरोना संक्रमित भी हैं, उनको कोरोना की गंभीर समस्याएं हो जाती है। चूंकि अस्थमा एक सांस की नलियों एवं फेफडे़ की बीमारी है तथा कोरोना संक्रमण भी इन्हीं को प्रभावित करता है, जिससे ऐसे रोगियों में निमोनिया व एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्टेंर्स ंसड्रोम (ए.आर.डी.एस.) का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे रोगियो का अॉक्सीजन स्तर भी तेजी से कम होता है तथा वेंटीलेटर व आई.सी.यू. में इलाज की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही गंभीर प्रभावों के कारण मृत्यु होने की आशंका भी बढ़ जाती है। अत: अस्थमा के रोगियों को अपनी चिकित्सा ठीक से करनी चाहिएव कोरोना संक्रमण के बचाव के सभी नियमों का पालन करना चाहिए।

निदान व उपचार की रखें खबर: अस्थमा का निदान अधिकतर लक्षणों के आधार पर व कुछ परीक्षण जैसे सीने में आला लगाकर, म्यूजिकल साउंड (रॉन्काई) सुनकर तथा फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ.आर. व स्पाइरोमेट्री) की जाती है। अन्य जांचें- खून की जांच, छाती एवं पैरानेजल साइनस का एक्सरे इत्यादि। अस्थमा के इलाज के लिए वायुमार्ग खोलने, एलर्जी कारकों के प्रति आपके शरीर की प्रतिक्रिया कम करने, वायुमार्ग की सूजन कम करने की दवाइयां मौजूद हैं। इसके लिए इनहेलर होते हैं जिससे कि सांस के जरिए दवा सीधे फेफड़े में पहुचंती है, जिससे कि दवा सीधे फेफड़े पर असर करती है और उसका शरीर के अन्य अंगों पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। अस्थमा के इलाज के लिए दो प्रमुख तरीके के इनहेलर होते हैं।

1. रिलीवर इनहेलर: ये जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हैं और तुरंत असर करते हैं। इनको सांस फूलने पर लेना होता है। 

2. कंट्रोलर इनहेलर: ये सांस नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उनको अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और गंभीर दौरे का खतरा कम करते हैं। इनको लक्षण न होने पर भी लगातार लेना चाहिए।

अस्थमा के अन्य उपचार

ओमेलीजुमेब या एंटी आईजीई थैरेपी: यह नए प्रकार का उपचार है जो उपरोक्त उपचारों के असफल होने पर दिया जाता है।

ब्रोंकियल थर्मोप्लास्टी: इस विधि में सांस नलियों में उपस्थित बढ़ी हुई मांसपेशियों को गर्मी उत्पन्न करने वाली मशीनों द्वारा घटाया जाता है। इस विधि पर अभी विश्व की विभिन्न प्रयोगशालाओं में प्रयोग किए जा रहे हैं।

इन बातों का रखें ध्यान अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंट्रोलर इनहेलर हमेशा समय से लें। सिगरेट, सिगार के धुएं से बचें तथा प्रमुख एलर्जन से बचें। फेफड़े मजबूत बनाने के लिए सांस संबंधी व्यायाम करें। खुद को ठंड से बचाकर रखें। यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए तो तुरंत ये बनते हैं कारणअस्थमा प्रमुख तौर पर आनुवांशिक एवं पारिवारिक कारणों से होता है। इसके अलावा अस्थमा उत्तेजित करने वाले कारक भी जिम्मेदार होते हैं। घर के अंदर उपस्थित कारक (इनडोर एलर्जन) बाहर उपस्थित कारक (आउडोर एलर्जन) भोज्य पदार्थ तथा उनमें उपस्थित तत्व धूल में उपस्थित कीट, जानवरों के शरीर पर उपस्थित एलर्जन, कॉकरोच, यीस्ट एवं कवक घर के अंदर के कारण (इनडोर एलर्जन) कहलाते हैं। पौधे के फूलों में पाए जाने वाले परागकण प्रमुख बाह्य कारक होते हैं। बात अगर अस्थमा की तकलीफ बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थों की करें तो इनमें अंडा, मांस, मछली, फास्टफूड, शीतल पेय एवं आइसक्रीम आदि भोज्य पदार्थ होते हैं। इनके अलावा विषाणुओं का संक्रमण जैसे कि इन्फ्लूएंजा, कोरोना वायरस, जीवाणुओं का संक्रमण, दवाइयां जैसे कि एस्परिन, कुछ व्यायाम, कार्यस्थल में मौजूद कारक, एसिडिटी, तनाव, प्रदूषण, धूमपान, अंत:ग्रंथियों में मौजूद हार्मोन और मोटापा भी अस्थमा की तकलीफ में इजाफा करते हैं।

चिकित्सक से मिलें।

पालतू या अन्य जानवरों से दूरी बरतें।

घर में धूल को न जमने दें।

बचाव ही है बेहतर

मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ जाती है तो मौसम बदलने के चार से छह सप्ताह पहले ही सजग हो जाना चाहिए और उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।इनहेलर व दवाएं विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए। समुचित इलाज होने पर आने वाले दिनों में या तो सांस का दौरा पड़ता ही नहीं है या बहुत कम पड़ता है व इसकी दर भी कम हो जाती है। ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को जन्म देते हैं, उनसे बचाव करना चाहिए। ऐसे खाद्य पदार्थ, जो रोगी के संज्ञान में स्वयं आ जाते हैं कि वे नुकसान कर रहे हैं, का परहेज करना चाहिए। साधारणत: शीतलपेय, फास्टफूड तथा केमिकल व प्रिजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थों (चाकलेट, टॉफी, कोल्डड्रिंक आदि) से परहेज करना चाहिए। सर्दी, जुकाम, गले की खराश या फ्लू जैसी बीमारी का तुरंत इलाज कराना चाहिए, क्योंकि इससे स्थिति बिगड़ने का खतरा रहता है। सेमल की रूई वाले बिस्तरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा कारपेट, बिस्तर व चादरों की नियमित तथा सोने से पूर्व सफाई अवश्य करनी चाहिए। व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर अवश्य लेना चाहिए। यदि रात में सांस फूलती है तो रात में सोने से पहले ही इनहेलर चिकित्सीय सलाह से लेनी चाहिए। घर हवादार, सीलनमुक्त हो तथा कुछ देर खुली धूप जरूर आनी चाहिए। रोगी को तेज व ठंडी हवा से बचाएं, यात्रा के दौरान खिड़की के पास न बैठें। घर की सफाई, पुताई व पेंट आदि होने के समय रोगी को वहां नहीं रहना चाहिए। रोगी के कमरे में असली व कृत्रिम पौधे न रखें। घर में पालतू जानवर न लाएं। कोरोना काल में अस्थमा रोगी घर पर ही रहें तथा सुबह-शाम भाप लें। लोगों से दूर से ही मिलें, नमस्ते करें व मास्क अवश्य लगाएं।

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